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MID DAY MEAL : नाम बड़े और दर्शन छोटे

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Published on: 18 May 2023 7:36 PM GMT
MID DAY MEAL  : नाम बड़े और दर्शन छोटे
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MID DAY MEAL : नाम बड़े और दर्शन छोटे

श्रीधर अग्निहोत्री

लखनऊ: मिड-डे मील योजना पर भले ही सवाल उठते रहे हों परन्तु सरकार की यह योजना अपने शैशवकाल से ही आकर्षक रही है। यह बात अलग है कि थोड़ी सी चूक के कारण कई बार मिड डे मील को लेकर समाज में गलत संदेश भी गया। आज भी मिड डे मील को लेकर लोगों की नकारात्मक सोच बनी हुई है, लेकिन कुछ वर्षों में खासतौर पर प्रदेश में योगी सरकार के आने के बाद हालातों में काफी सुधार हुआ है और इसमें पहले से काफी परिवर्तन हुआ है। इस समय यूपी में 1.14 लाख प्राथमिक विद्यालयों व 54 लाख उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 1.76 करोड़ बच्चे इस योजना का लाभ उठा रहे है । प्रदेश में एक बच्चे पर औसतन 11 रुपए मिड डे मील में खर्च किए जाते हैं।

क्या है मिड डे मील योजना

15 अगस्त 1995 को लांच हुई यह योजना केन्द्र और राज्य सरकार के साझा प्रयासों से चलाई जा रही है। इसके तहत कक्षा एक से पांच तक प्रदेश के सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले सभी बच्चों को 80 प्रतिशत उपस्थिति पर हर महीने तीन किलो गेहूं या चावल दिए जाने की व्यवस्था की गयी थी। कुछ समय बाद योजना के नतीजे का अध्ययन करने पर पता चला कि इससे बच्चों को फायदा कम और उनके घर वालों को ज्यादा हो रहा है। 28 नवंबर 2001 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद प्रदेश में एक सितम्बर 2004 से पका पकाया भोजन बच्चों को देने की योजना शुरू की गई। अक्टूबर 2007 से इसे शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े ब्लाकों के उच्च प्राथमिक स्कूलों और अप्रैल 2008 से सभी ब्लाकों व नगर क्षेत्र के स्कूलों तक बढ़ा दिया गया। इसके अलावा कक्षा आठ तक के मदरसों में भी योजना चलाई जा रही है।

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विशेष श्रमिक विद्यालयों में यह योजना 2010-11 से शुरू की गयी है। इस योजना को चलाने के लिए मध्यान्ह भोजन प्राधिकरण 2006 में बनाया गया। मिड डे मील योजना के तहत भोजन बनाने का काम ग्राम पंचायतों, वार्ड समितियों और गैर सरकारी संस्थाओं की तरफ से किया जाता है। भोजन बनाने के लिए गेेहूं व चावल भारतीय खाद्य निगम की तरफ से मुफ्त दिया जाता है। मिड डे मील स्कूलों में ही बनी रसोई में पकाया जाता है। खाना बनाने के लिए आवश्यक सामग्री की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी ग्राम पंचायतों की होती है। शहरों में इसकी जिम्मेदारी एनजीओ की तरफ से की जाती है।

अक्षयपात्र ने बदली तस्वीर

अक्षयपात्र फाउंडेशन नामक एनजीओ अपनी स्थापना के समय से ही मथुरा में भोजन का इंतजाम करता आ रहा है। यह संस्था अपने ही संसाधनों से 2004 से स्कूलों को भोजन उपलब्ध करा रही है। आज अक्षयपात्र फाउंडेशन मशीनों के जरिये तैयार किया गया भोजन 2073 स्कूलों में लगभग 1 लाख 61 हजार बच्चों को मुहैया करा रहा है। फाउंडेशन लखनऊ में 1.36 लाख प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों के बच्चों को गरम पका पकाया भोजन उपलब्ध कराने का काम कर रहा है। अक्षयपात्र फाउंडेशन की सेंट्रलाइज्ड किचन 11 जिलों में है। इसके लिए राज्य सरकार की तरफ से मदद की गई है। अब गोरखपुर, वाराणसी तथा चार अन्य जिलों में भी यही संस्था खाना बनाने का काम शुरू कर देगी।

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क्या मिलता है भोजन

हर बच्चे को हफ्ते में चार दिन चावल तथा दो दिन गेहूं से बना भोजन दिया जाता है।

प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों को रोजाना 100 ग्राम अनाज तथा उच्च प्राथमिक विद्यालय के बच्चों को 150 ग्राम अनाज एफसीआई से उपलब्ध कराया जाता है।

अनाज से भोजन बनाने के लिए प्राथमिक विद्यालयों में 4.35 रुपए तथा उच्च प्राथमिक विद्यालयों 5.51 रुपए प्रतिदिन दिए जाते हैं। इस पैसे से सब्जी, तेल, मसाला व अन्य खाद्य सामग्री की व्यवस्था की जाती है। इसमें केन्द्र का 60 प्रतिशत तथा राज्य का योगदान 40 प्रतिशत होता है।

प्राथमिक स्कूलों में भोजन में 450 कैलोरी ऊर्जा व 12 ग्राम प्रोटीन तथा उच्च प्राथमिक स्तर पर 700 कैलोरी ऊर्जा व 20 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध कराने की व्यवस्था है।

हर बुधवार को प्राथमिक स्तर पर 150 मिलीलीटर व उच्च प्राथमिक स्तर पर हर बच्चे को 200 मिलीलीटर दूध दिया जाता है।

हर बच्चे को भोजन करने के लिए स्टेनलेस स्टील की एक थाली और एक गिलास भी दिया जाता है।

निगरानी की व्यवस्था

दैनिक आधार पर एमडीएम की निगरानी के लिए वर्ष 2010-11 से आईपीआरएस आधारित सिस्टम शुरू किया गया। इसमें टीचरों को मोबाइल फोन से कॉल करके उनके स्कूलों में उस दिन भोजन ग्रहण करने वाले बच्चों की सूचना प्राप्त की जाती है। इस प्रणाली को देश-विदेश में पुरस्कार मिल चुका है। शुरुआत में टीचर ही खाना बनाते थे, लेकिन अब भोजन बनाने के लिए रसोइयों को रखा गया है। योगी सरकार ने अप्रैल 2019 से दस महीने तक रसोइयों को 500 रुपए देने का फैसला लिया है। खास बात यह है कि विद्यालय में वही रसोइया रखा जाता है जिसका बेटा या बेटी उस विद्यालय में पढ़ता हो। जब रसोइये का बेटा या बेटी विद्यालय छोड़ देते हैं तो रसोइये की सेवा भी समाप्त कर दी जाती है।

ग्राम पंचायत समिति का गठन

पके-पकाए भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए नगर क्षेत्र पर वार्ड समिति व ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम पंचायत समिति का गठन किया गया है। मंडल स्तर पर योजना के अनुश्रवन एवं पर्यवेक्षण के लिए मंडलीय सहायक निदेशक (बेसिक शिक्षा) को दायित्व सौंपा गया है। राज्य सरकार ने जनपद स्तर पर योजना के अनुश्रवन एवं पर्यवेक्षण के लिए एक जिला स्तरीय कमेटी का गठन कर रखा है। जिलाधिकारी को नोडल अधिकारी का दायित्व सौंपा गया है। विकासखंड स्तर पर उपजिलाधिकारी की अध्यक्षता में टास्क फोर्स गठित की गयी है, जिसमें सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी एवं प्रति उप विद्यालय निरीक्षक को सदस्य सचिव के रूप में नियुक्त किया गया है।

हर स्कूल में छह माताओं का समूह

इस योजना की निगरानी व सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा देने के लिए हर स्कूल में 'मां समूह' का गठन किया गया है। इसके तहत हर स्कूल में छह माताओं का एक समूह है जिसमें रोस्टर के आधार पर हर मां हर स्कूल में भोजन की क्वालिटी चेक करती हैं। इनमें वही माताएं होती हैं जिनके बच्चे उस स्कूल में पढ़ रहे होते हैं।

पारदर्शी व्यवस्था

राज्य परियोजना निदेशक विजय किरण आनन्द बताते हैं कि इस योजना के तहत बेहद पारदर्शी तरीके से बच्चों को भोजन आदि की व्यवस्था की जाती है। इसकी मानिटिरिंग के लिए कमेटी गठित की गई है। इसके अलावा कई अन्य तरीकों से भी योजना पर बराबर निगाह रखी जाती है।

बच्चों के लिए फल की भी व्यवस्था

योजना से जुड़े प्रशासनिक अधिकारी समीर कुमार बताते हैं कि यह योजना एक लाख 68 हजार स्कूलों में एक करोड़ 80 लाख बच्चों के लिए 2187.26 करोड़ रुपए के वार्षिक बजट वाली है। इस योजना में राज्य सरकार बच्चों को फल आदि भी उपलब्ध कराती है। इसके लिए सरकार 166.7083 करोड़ का बजट अलग से उपलब्ध कराती है जिससे गरीब बच्चों को फल आदि भी खाने को मिल सके।

रसोइयों को प्रशिक्षण

पोषण विशेषज्ञ तरुणा सिंह बताती है कि रसोइयों को बकायदा प्रशिक्षण आदि भी दिया जाता है जिससे बच्चों के भोजन आदि में किसी तरह की भी लापरवाही न हो सके। उनके प्रशिक्षण के लिए यूनीसेफ से एक 20 मिनट की फिल्म बनवाई गयी है जो सभी विद्यालयों में उपलब्ध है। इस फिल्म के माध्यम से रसोइये ट्रेनिंग लेते हैं। उन्हें प्रतिमाह एक हजार रुपये दिया जाता है जिसमें 600 रुपये केन्द्र सरकार तथा 400 रुपये राज्य सरकारें देती हैं। यूपी में इस समय 395092 रसोइये काम कर रहे हैं।

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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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