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ऐसे निपटेंगे चीन से, मोहन भागवत ने बताया उपाय, सरकार कर रही है तैयारी
नागपुर में विजय दशमी के मौके पर अपने भाषण में जो कुछ संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा वह देश के सभी नागरिकों के लिए बेहद अहम है। उन्होंने अपने भाषण में न केवल वाह़य शक्तियों से निपटने का रास्ता सुझाया बल्कि भारत में आंतरिक शांति बनाए रखने को भी जरूरी करार दिया।
लखनऊ: भारत की सीमा पर अशांति उत्पन्न करने की कोशिश में जुटे चीन को हमेशा के लिए ठीक करना होगा। राष्ट्रीय सवयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने चीन से निपटने का उपाय ऐसा उपाय बताया है जो भारत के उत्थान के साथ ही चीन के पतन का भी रास्ता है। उनहोंने कहा कि भारतीय सेना की वीरता और नागरिकों की देशभक्ति ने चीन को झटका दिया है लेकिन अगर उसे सदैव के लिए औकात में लाना है तो भारत को आर्थिक और सामरिक दोनों ही मोर्चे पर चीन से बडी शक्ति बनना पड़ेगा।
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नागपुर में विजय दशमी के मौके पर अपने भाषण में जो कुछ संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा
नागपुर में विजय दशमी के मौके पर अपने भाषण में जो कुछ संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा वह देश के सभी नागरिकों के लिए बेहद अहम है। उन्होंने अपने भाषण में न केवल वाह़य शक्तियों से निपटने का रास्ता सुझाया बल्कि भारत में आंतरिक शांति बनाए रखने को भी जरूरी करार दिया। आंतरिक शांति की कीमत पर राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों को उन्होंने लताड़ भी लगाई है। उन्होंने भारत को अपने पड़ोसी देशों से अच्छे रिश्ते बनाए रखने की भी वकालत की है। संघ प्रमुख के नागपुर में भाषण के अन्य अंश भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं।
भारत की सीमा पर अतिक्रमण करने वाले चीन को सेना के जवानों से मिले कड़े जवाब के बाद भारतीय नागरिकों की ओर से चीन के सामान के बहिष्कार को चीन के दिमाग ठिकाने लगाने वाला करार देते हुए उन्होंने कहा कि चीन इससे चुप बैठने वाला नहीं है। इस बार उसके साथ जो कुछ हुआ वह अप्रत्याशित था इसलिए वह खामोश दिख रहा है लेकिन हमें अधिक सजग रहने की आवश्यकता है क्योंकि चीन ने जो नहीं सोची थी, ऐसी परिस्थिति उसके सामने खड़ी हो गई।
उसकी प्रतिक्रिया में वह क्या करेगा कोई नहीं जानता। इसलिए इसका उपाय क्या है सतत सावधानी, सजगत और तैयारी। सामरिक तैयारी में, आर्थिक अपनी स्थिति में , अंतरराष्ट्रीय राजनय में अपने संबंधों में और पडोसी देशों के साथ अपने संबंधों में हमको चीन से शक्ति में व्यापित में हमें बडा होना पड़ेगा। दूसरा उपाय नहीं है। हमको यह करते रहना पडेगा। ऐसा करेंगे तो हम चीन को रोक सकते हैं।
भारत को अपने पड़ोसी देशों से अच्छे रिश्ते बनाने की सलाह देते हुए संघ प्रमुख ने
भारत को अपने पड़ोसी देशों से अच्छे रिश्ते बनाने की सलाह देते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि पड़ोसी देश ब्रहम देश म्यांमार है श्रीलंका है बांग्लादेश, नेपाल है यह केवल हमारे पड़ोसी थोड़े हैं यह तो हजारों वर्षों से हमसे संबंधित, हमारी प्रकृति वाले हमारे स्वभाव वाले देश हैं। तो इनको साथ जल्दी हमें जोड लेना चाहिए। मतांतर तो होते हैं , मतभेद होते हैं विवाद के विषय भी होते हैं। सीमाएं जब लगती हैं तो विवाद होते ही हैं। घर एक-दूसरे के साथ लगता है तो कुछ तो विवाद थोड़ा बहुत रहता है। इन सारी समस्याओं से मनमुटाव न होने देते हुए हमको इनको दूर करने का प्रयास अधिक गति से करना होगा। क्योंकि हम तो सभी से मित्रता करने वाले हैं।
हमारा स्वभाव किसी से लड़ाई करने का नहीं है
हमारा स्वभाव किसी से लड़ाई करने का नहीं है। लेकिन हम मित्रता करने वाले हें इसका मतलब हम दुर्बल नहीं हैं। हमारी मित्रता की वृत्ति को दुर्बलता समझकर और जो लोग ऐसा सोचते कि हम इनको चाहे जैसे झुका सकते हैं इनको, हम चाहे जैसे इनको मोड सकते हैं उनकी गलतफहमी कम से कम अब तो दूर हो गई होगी। हमारी सेना की देशभक्ति, वीरता, हमारे शासनकर्ताओं की आज की स्वाभिमानी नीति और भारत के लोगों का ऐसे प्रसंगों में एकजुट खड़ा होकर नीति, धैर्य के साथ आने वाली परिस्थिति का मुकाबला करना, चीन को यह पहली बार अनुभव मिला होगा।
उससे उसको समझ जाना चाहिए
उससे उसको समझ जाना चाहिए। ऐसा मानस जो रखते हैं उनको सबको समझ जाना चाहिए कि इतने कच्चे हम नहीं है। ऐसी कोई भी परिस्थिति आएगी तो हम लोगों की तैयारी,सजगता और दृढता किसी प्रकार कम नहीं पड़ेगी। सारे राष्ट्र में आज यह हवा चल रही है। हमको उस सजगता को , उस सावधानी को उस एकता को बनाए रखना पड़ेगा और अपनी तैयारी को बढाकर रखना पड़ेगा।
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आंतरिक सुरक्षा व शांति महत्वपूर्ण
संघ प्रमुख ने कहा कि हमें अपनी तैयारी पूरी रखनी होगी क्योंकि एक चीन ही नहीं है जिससे हमें सावधान रहना पडेगा। अपनी सीमाओं की वाह्य सुरक्षा जितनी महत्वपूर्ण है उसी दृष्टि से, देश की सुरक्षा की दृष्टि से ही आंतरिक सुरक्षा भी महत्वपूर्ण है। समाज की सावधानी, शासन –प्रशासन की तत्परता कितनी महत्वपूर्ण है यह सब ध्यान में आता है तो आंतरिक शांति व सुरक्षा का महत्व समझ में आता है। अपने यहां प्रजातंत्र है तो अनेक दल है। दल है तो विरोध है। परंतु इसमें भी एक विवेक है। चुनाव कोई दुश्मनों की लडाई नहीं है।
लेकिन चुनाव के इन दांव पेच की वजह से समाज में अगर दूरी बढती है ,विभाजन होता है समाज के दो वर्गों में कटुता बढती है तो यह ठीक नहीं है। यह राजनीति नहीं है। ऐसी परिस्थिति का लाभ लेकर भारत को दुर्बल बनाने के लिए खंडित रखने के लिए , भारत के समाज को विभाजित मन –मुटाव भरा , भेदों से जर्जर समाज बनाने के लिए उत्सुक ऐसी कई शक्तियां है जो भारत में भी है और दुनिया में भी हैं। भारत में उनके समर्थक भी हैं। जो अपनी विविधताओं को बेहतर बताते हैं और आपस में झगडा लगाते हैं। इससे देश और समाज को सजग रहना होगा।
अखिलेश तिवारी
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