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मूर्छित पड़े रालोद को किसान आंदोलन से मिली संजीवनी, जानिए आगे की रणनीति

पिछले दो लोकसभा चुनावों और यूपी विधानसभा चुनाव में रालोद की राजनीतिक पकड़ कमजोर ही होती रही है, पर किसान आंदोलन के चलते मूर्छित पडे रालोद को अगले विधानसभा चुनाव में संजीवनी मिल सकती है। इसलिए चौधरी अजित सिंह ने अपने बेटे जयंत चौधरी को इस आंदोलन से जुड़ने को कहा है।

Ashiki
Published on: 29 Jan 2021 4:03 PM GMT
मूर्छित पड़े रालोद को किसान आंदोलन से मिली संजीवनी, जानिए आगे की रणनीति
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मूर्छित पड़े रालोद को किसान आंदोलन से मिली संजीवनी, जानिए आगे की रणनीति

लखनऊ: पिछले दो लोकसभा चुनावों और यूपी विधानसभा चुनाव में रालोद की राजनीतिक पकड़ कमजोर ही होती रही है, पर किसान आंदोलन के चलते मूर्छित पडे रालोद को अगले विधानसभा चुनाव में संजीवनी मिल सकती है। इसलिए चौधरी अजित सिंह ने अपने बेटे जयंत चौधरी को इस आंदोलन से जुड़ने को कहा है।

‘मोदी उदय’ के बाद कमजोर पड़ी राजनीति

किसानों के सबसे बड़े नेता चौधरी चरण सिंह की विरासत उनके बेटे चो अजित सिंह ने संभाली और किसानों के दम पर ही कई सालों तक सत्ता से जुडे रहे पर 2014 में ‘मोदी उदय’ के बाद उनकी राजनीति कमजोर पडती गयी। इसके बाद उनके बेटे जयंत चौधरी ही उनकी विरासत संभाल रहे हैं, लेकिन अब तक किसानों को लेकर उन्होंने कोई बड़ा आंदोलन नहीं किया। अब इस आंदोलन के बहाने वह अगले विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल को चुनावी लाभ दिलाना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने आज अपने भाषण में अपने दादा चौ चरण सिंह और किसान नेता महेन्द्र सिंह टिकैत के वर्षो पुराने सम्बन्धों का हवाला देकर आंदोलन से भावानात्म रूप से जोड़ने का प्रयास किया।

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महापंचायत में पहुंचे रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी

महापंचायत में पहुंचे रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने कहा मुख्यमंत्री योगी के आदेश पर बागपत पुलिस ने बुधवार रात को बुजुर्ग किसानों पर लाठीचार्ज किया। जयंत ने किसानों से कहा गाजीपुर बॉर्डर पर पहुंचना सही है लेकिन, आपके आसपास जहां भी किसान आंदोलन चल रहा है, वहीं पर शामिल होकर भी आंदोलन को मजबूत बनाए।

चुनावों में राजनीतिक दलों की हवा पश्चिमी यूपी से ही बनती आई

दरअसल, हर चुनाव में राजनीतिक दलों की हवा पश्चिमी यूपी से ही बनती आई है। इसलिए जयंत चैधरी इस आंदोलन को भुनाने की कोशिश में हैं। रालोद पिछले कई चुनावों कई दलों से गठबन्धन करता आ रहा है। पर वह कभी एक दल के होकर नहीं रहे। समय समय पर वह गठबन्धन बनाते और तोड़ते रहे। पिछले विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल का गठबन्धन कांग्रेस के साथ था लेकिन इसका लाभ नहीं मिल पाया। उसे केवल 9 सीटे ही हासिल हो सकी थी।

ऐसा रहा रालोद राजनीतिक इतिहास

2014 के लोकसभा चुनाव में भी उसका पत्ता साफ ही रहा। इसके पहले 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में चै अजित सिंह का भाजपा के साथ गठबन्धन हुआ था। भाजपा ने उनके लिए 9 सीटे छोड़ी थी जिसमें 5 पर रालोद को विजय मिली। लेकिन चुनाव बाद में वह मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री बन गए। लोकसभा का जब 1991 में चुनाव हुआ तो छोटे चौधरी परम्परागत विरोधी पार्टी कांग्रेस के साथ हो लिए और केन्द्र में मंत्री बन गए। जबकि इसके पहले वह कांग्रेस के विरोध में ही जनता दल मे हुए थें। और जनता दल-भाजपा की सरकार में शामिल होकर मंत्री बने थे।

1996 में वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लडे़ और जब राव सरकार सत्ता से बाहर हो गयी तो उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा देकर भारतीय किसान कामगार पार्टी का गठन करके मुलायम सिंह यादव के साथ चुनावी गठबन्धन कर विधानसभा का चुनाव लड़ा। जब यह गठबन्धन सरकार नहीं बना पाया तो 1999 में चै अजित सिंह को कांग्रेस प्रेम एकबार फिर परवान चढ़ा। उन्होंने कांग्रेस से दोस्ती कर चुनाव तो लड़ा लेकिन जब केन्द्र में भाजपा की सरकार बन गयी तो वह भाजपा के साथ हो लिए और केन्द्र में मंत्री बन बैठे।

भाजपा के साथ मिलकर लड़ा 2002 में यूपी विधानसभा का चुनाव

साल 2002 में जब यूपी में विधानसभा का चुनाव हुआ तो उन्होंने यह चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ा। लेकिन मायावती की सरकार गिरने पर जब यूपी में मुलायम सिंह की सरकार बनी तो उनकी पार्टी इस सरकार में सत्ता की भागीदार बन बैठी। चौधरी अजित सिंह की बसपा से भी दोस्ती रही। लेकिन इस बारे में चौधरी अजित सिंह बराबर सफाई देते रहे कि केन्द्र में अटल सरकार के साथ होने के कारण ही वह यूपी में भाजपा बसपा गठबन्धन में साझीदार हैं। वह इस सरकार में 2002 से 2003 तक साथ रहे। 2004 का लोकसभा चुनाव सपा से मिलकर लड़ा लेकिन जब विधानसभा चुनाव 2007 नजदीक आए तो उन्हे सपा बुरी लगने लगी और सपा से अलग होकर अकेले अपने दम पर चुनाव लड़े।

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फिर 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के हमराही हो गए। 1986 में जब चै अजित सिंह राजनीति में आए तो वह सीधे राज्यसभा में दाखिल हो गए। इसके बाद उन्होंने लोकदल (अ) का गठन किया। 1988 में उन्होंने अपने दल का जनता पार्टी में विलय कर पार्टी के अध्यक्ष हो गए। 1989 में जब जनता दल बना तो उन्होंने अपनी पार्टी का इसमें विलय कर दिया और इसके महासचिव हो गए। जब इसी साल वीपी सिंह की सरकार बनी तो वह इसमें षामिल होकर केन्द्र में मंत्री बन गए।

फिर जब कांग्रेस की सरकार बनी तो वह फिर केन्द्र में मंत्री बन गए। 1996 में कांग्रेसी विरोधी लहर देखकर वह काग्रेस से अलग हो गए और उन्होंने भारतीय किसान कामगार पार्टी का गठन कर लिया। लेकिन 1998 में लोकसभा का चुनाव हारने के बाद उन्होंने राष्ट्रीय लोकदल का गठन कर लिया।

श्रीधर अग्निहोत्री

Ashiki

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