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उपचुनाव में तीन सीटों पर सपा-भाजपा की सीधी टक्कर, तीन सीटों पर पेंच फंसा
उपचुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। यह हाल तब है जबकि मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी नेतृत्व ने चुनावी सभाओं से किनारा कर रखा है।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा की सात सीटों पर हो रहे उपचुनाव में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ही भाजपा को सबसे कड़ी चुनौती पेश कर रही है। सपा एक सीट पर चुनाव नहीं लड़ रही है तो तीन ऐसी सीट हैं जहां दूसरे दलों के प्रत्याशी भी संघर्ष का कोण बना रहे हैं।
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उपचुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है
उपचुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी को खासी मशक्कत करनी पड़ रही है। यह हाल तब है जबकि मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी नेतृत्व ने चुनावी सभाओं से किनारा कर रखा है। सपा नेतृत्व व बड़े नेताओं की चुनाव सभाओं का आयोजन नहीं होने के बावजूद जमीनी धरातल पर भाजपा प्रत्याशी को सपा से ही भिड़ना पड़ रहा है। आम तौर पर उपचुनाव को सत्ताधारी दल का चुनाव माना जाता है लेकिन समाजवादी पार्टी ने बगैर चुनाव प्रचार अभियान छेड़े ही भाजपा के सामने मुश्किल खड़ी कर दी है। यह पहला ऐसा उपचुनाव होने जा रहा है जिसमें भाजपा प्रत्याशी को वॉकओवर मिलता दिखाई नहीं दे रहा है जबकि कई सीटों पर भाजपा सहानुभूति वोट बैंक के सहारे चुनाव लड़ रही है।
भाजपा के कई मंत्री इस सीट पर कैंप कर रहे हैं
देवरिया सीट पर भाजपा, सपा, कांग्रेस व बसपा चारों दलों ने ब्राह्मण प्रत्याशी ही मैदान में उतारा है इसके बावजूद यहां भी लड़ाई सीधे भाजपा और सपा के बीच सिमट गई है। भाजपा के कई मंत्री इस सीट पर कैंप कर रहे हैं इसके बावजूद पूर्व मंत्री ब्रह्माशंकर त्रिपाठी की साइकिल को रोकने में नाकाम दिख रहे हैं।
जौनपुर की मल्हनी सीट इससे पहले समाजवादी पार्टी की रही है
जौनपुर की मल्हनी सीट इससे पहले समाजवादी पार्टी की रही है। भाजपा कभी इस सीट पर अपना दावा नहीं जता सकी है। भाजपा प्रत्याशी मनोज सिंह की नोट बांटने वाली तस्वीर ने भी नकारात्मक असर किया है। इस सीट पर बाहुबली नेता धनंजय सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। समाजवादी पार्टी ने दिवंगत नेता व पूर्वमंत्री पारसनाथ यादव के बेटे लकी यादव को मौका दिया है। ऐसे में यहां धनंजय और लकी यादव के साथ संघर्ष होता दिख रहा है।
उन्नाव की बांगरमऊ सीट भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के बर्खास्त होने से खाली हुई है लेकिन इस सीट पर समाजवादी पार्टी पहले से मजबूत स्थिति में है। भाजपा व सपा के संघर्ष वाली इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी आरती वाजपेयी ने नई चुनौती पेश संघर्ष को त्रिकोणीय बना दिया है।
घाटमपुर सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है
घाटमपुर सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है। इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी के साथ पूर्व सांसद राजाराम पाल खड़े हैं। वह बसपा के बड़े नेता रहे हैं। इस वजह से सीट पर कांग्रेस ने भी पेंच फंसा रखा है। बसपा-कांग्रेस और भाजपा के बीच बन रहे संघर्ष में राजाराम पाल कितने प्रभावी होंगे। यह मतदाताओं के फैसले से तय होगा।
भाजपा प्रत्याशी के बजाय लोगों का आकर्षण बसपा प्रत्याशी पर दिखाई दे रहा
टूंडला विधानसभा सीट भी सुरक्षित है लेकिन यहां भाजपा प्रत्याशी के बजाय लोगों का आकर्षण बसपा प्रत्याशी पर दिखाई दे रहा है। समाजवादी पार्टी का यह इलाका गढ़ रहा है ऐसे में सपा और बसपा में संघर्ष की तस्वीर बन रही है।
बुलंदशहर सीट भाजपा के विधायक के निधन से रिक्त हुई है और पार्टी ने दिवंगत विधायक की पत्नी को चुनाव मैदान में उतारा है। इससे सहानुभूति वोट मिलने की संभावना की जा रही है लेकिन यह क्षेत्र समाजवादी पार्टी का माना जाता है और सपा ने समझौते के तहत यह सीट राष्ट्रीय लोकदल को सौंप दी है। राष्ट्रीय लोकदल ने जाट प्रत्याशी उतारा है जबकि भाजपा का प्रत्याशी भी इसी समुदाय से है।
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अमरोहा की नौगवां सादात सीट मुस्लिम और जाट बाहुल्य है। यहां सपा, बसपा ने मुस्लिम को प्रत्याशी बनाया है जबकि भाजपा ने दिवंगत कैबिनेट मंत्री व पूर्व अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी चेतन चौहान की पत्नी को मौका दिया है। ऐसे में यहां संघर्ष त्रिकोणीय होने की वजह से भाजपा का पलड़ा भारी लग रहा है।
अखिलेश तिवारी
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