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बंगाल में कांग्रेस-लेफ्ट के गठबंधन में फंसा पेच, चौधरी ने ठोकी इस पद पर दावेदारी

पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस की चुनौतियों का सामना करने के लिए हाथ मिलाने को तैयार कांग्रेस और वाम मोर्चे के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर पेच फंस गया है। दोनों ही पक्ष मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी छोड़ने को तैयार नहीं हैं

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Published on: 31 Dec 2020 9:53 AM IST
बंगाल में कांग्रेस-लेफ्ट के गठबंधन में फंसा पेच, चौधरी ने ठोकी इस पद पर दावेदारी
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बंगाल में कांग्रेस-लेफ्ट के गठबंधन में फंसा पेच, चौधरी ने ठोकी इस पद पर दावेदारी

नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस की चुनौतियों का सामना करने के लिए हाथ मिलाने को तैयार कांग्रेस और वाम मोर्चे के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर पेच फंस गया है। दोनों ही पक्ष मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी छोड़ने को तैयार नहीं हैं और दोनों पक्षों की यही जिद महागठबंधन की राह में बड़ा रोड़ा बन गई है। लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी पेश की है मगर वाम मोर्चे को चौधरी की यह दावेदारी मंजूर नहीं है।

चौधरी ने किया था यह एलान

कांग्रेस नेता चौधरी ने पिछले दिनों भाजपा और तृणमूल कांग्रेस की चुनौतियों का सामना करने के लिए कांग्रेस और वाम मोर्चे के मिलकर चुनाव लड़ने का एलान किया था। चौधरी के मुताबिक इस महागठबंधन को कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी मंजूरी दे दी है। चौधरी ने यह भी कहा था कि किसी को भी कांग्रेस और वाम मोर्चे को कमजोर आंकने की भूल नहीं करनी चाहिए और विधानसभा चुनाव के दौरान महागठबंधन अपनी ताकत दिखाने में जरूर कामयाब होगा।

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गठबंधन की राह में सीएम पद बना रोड़ा

चौधरी के इस एलान के बाद में महागठबंधन की राह में मुख्यमंत्री पद बड़ा रोड़ा बन गया है। चौधरी ने खुद को महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद का दावेदार बनाकर पेश किए जाने का प्रस्ताव दिया है मगर लंबे समय तक पश्चिम बंगाल में राज करने वाले वाम मोर्चे को चौधरी का यह प्रस्ताव मंजूर नहीं है। अब देखने वाली बात यह होगी कि दोनों दलों के वरिष्ठ नेता गठबंधन की राह में पैदा हुई इस मुसीबत को कैसे दूर करते हैं।

दोनों ने मिलकर लड़ा था पिछला चुनाव

पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भी कांग्रेस और वाम मोर्चे ने मिलकर चुनाव लड़ा था। पश्चिम बंगाल की 294 विधानसभा सीटों में कांग्रेस ने 92 सीटों पर किस्मत आजमाई थी और पार्टी 44 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। दूसरी ओर सीपीएम ने 148 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे मगर पार्टी केवल 26 सीटें ही जीत सकी थी। बाकी बची 55 सीटों पर फारवर्ड ब्लाक, आरएसपी और सीपीआई के उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे थे मगर उनका भी स्ट्राइक रेट काफी खराब रहा और वे भी महज 6 सीटें ही जीत सके थे।

इस बार ज्यादा सीटें मांग रही है कांग्रेस

पिछले विधानसभा चुनाव में बेहतर स्ट्राइक रेट के आधार पर कांग्रेस इस बार अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। इसके साथ ही पार्टी ने मुख्यमंत्री पद पर भी दावा ठोक दिया है। दूसरी ओर पश्चिम बंगाल पर लगातार 34 साल शासन करने वाली सीपीएम को कांग्रेस का यह दावा स्वीकार नहीं है। हालांकि सीपीएम केंद्रीय समिति के एक सदस्य ने कहा कि अभी इसे लेकर कोई भी टिप्पणी करना काफी जल्दबाजी होगी। समय के साथ सारे विवादों को सुलझा लिया जाएगा।

साझा कार्यक्रम की तैयारी मगर फंसा पेच

पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस और वाम मोर्चे ने सिर्फ सीटों को लेकर तालमेल किया था। गठबंधन का न कोई साझा कार्यक्रम बना था और न तो साझा चुनाव प्रचार किया गया था। दोनों दलों की ओर से एक बार भी मंच साझा नहीं किया गया था। इस बार दोनों दलों ने गठबंधन को मजबूत बनाने के लिए साझा घोषणापत्र के साथ ही मिलकर प्रचार करने का फैसला किया था मगर चौधरी के प्रस्ताव से गठबंधन में ही पेच फंस गया है।

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भाजपा व टीएमसी से पिछड़ी चुनावी तैयारियां

भाजपा और तृणमूल कांग्रेस की अपेक्षा कांग्रेस और वामदलों की चुनाव की तैयारियां भी काफी पिछड़ी हुई नजर आ रही हैं। भाजपा की ओर से पार्टी के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने चुनाव अभियान की कमान संभाल रखी है और दोनों नेता हर माह पश्चिम बंगाल का दौरा कर रहे हैं। इससे पार्टी की चुनावी तैयारियों में काफी तेजी आ गई है। दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस की मुखिया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी लगातार चुनावी तैयारियों में जुटी हुई हैं। उनकी नजर में भी इस बार उनका मुकाबला भाजपा से होना है। उन्होंने भी विभिन्न जिलों का दौरा करके पार्टी की चुनावी तैयारियों में ताकत झोंक दी है। अब देखने वाली बात यह होगी कि भाजपा और तृणमूल कांग्रेस की इन चुनौतियों से कांग्रेस और वाम दलों का गठबंधन कैसे निपटता है।

अंशुमान तिवारी



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