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सबसे बड़ा सचः मां को वृद्धाश्रम छोड़ आए पुत्र को जब पता चला वो लावारिस है

सुमन बुआ रिश्तेदार के यहाँ शादी से लौटकर आई तो अम्मा को देखकर बहुत प्रसन्न हुईं। अम्मा सुमन बुआ को देख कहने लगी -बड़े दिनों से इच्छा थी कि तीर्थ कर आऊँ। अब साकेत को कहाँ फुर्सत है ले जाने की सो जिद करके अकेले ही चली गयी पर सच कहूँ ज़रा भी दिक्कत नहीं हुई सारी व्यवस्था इसने करवा दी थी।

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Published on: 28 Nov 2020 4:41 PM GMT
सबसे बड़ा सचः मां को वृद्धाश्रम छोड़ आए पुत्र को जब पता चला वो लावारिस है
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Meenu Tripathi's touching story biggest truth

मीनू त्रिपाठी

अम्मा की लाड़ली इकलौती ननद सुमन बुआ को अचानक आया देख कुमुद और साकेत एकबारगी हतप्रभ रह गए। वह जब फ्रेश होने गयी तो कुमुद परेशान होकर साकेत से बोली, ‘सुनो, ये सुमन बुआ कहाँ से कहाँ बिना बताए आ गयी। इन्हें जल्दी से जल्दी चलता करो...अभी अम्मा को गए तो हफ़्ता भी नहीं बीता है।‘

सुमन बुआ का आना

कुमुद के कहने पर साकेत धीमे से बोला, ‘सुमन बुआ को अम्मा ने बेटी की तरह माना है। अम्मा वृद्धाश्रम में हैं यह जानकर तो यह हाय-तौबा मचा देंगी। अभी तो वह तीर्थ पर गयी हैं यह कहकर बात संभाल ली है पर सोचता हूँ कभी न कभी तो इन्हें पता ही चल जाएगा।‘

‘अरे नहीं, कुछ पता नहीं चलेगा ... मॉरीशस घूम आयें फिर अगले महीने दो-चार दिन के लिए अम्मा को घर ले आएँगे। तब दो-चार उनके चहेते रिश्तेदारों से फोन पर बात करवा देना। फिर भेज देंगे वृद्धाश्रम।‘

कुमुद की योजना पर साकेत कुछ असहज दिखा तो वजह बोली, ‘हमने जो तय किया था उसी हिसाब से चलेंगे। वृद्धाश्रम में बेशक साल भर के पैसे देकर साल में दो चार दिन के लिए हर महीने दो महीने में बुला लिया करेंगे।

आजकल किसे फुर्सत है जो दूसरों की खबर ले। अब ये इत्तफाक ही है कि सुमन बुआ यहाँ किसी शादी में आई हैं तो यहाँ आ गईं। अब देखो न अम्मा को साथ रखने में कितनी दिक्कत थी बुढ़ापे की समस्याएं तो थी ही साथ ही कहीं आना-जाना भी मुश्किल था।

सवाल से हकबका जाना

सुमन बुआ फ्रेश होकर आईं तो उन्हें फुसफुसाते देख मज़ाक में बोलीं - क्या मंत्रणा चल रही है तुम दोनों के बीच। भाई सच कहूँ तो भाभी के बिना घर बड़ा सूना-सूना है। तुम्हारा कोई बाल-बच्चा हो तो भी घर में कुछ रौनक आए। क्यों रे कुमुद कब तक फैमिली प्लानिंग चलेगी। सुमन बुआ के अचानक आने और पूछे गए सवाल पर साकेत ने तो हकबका कर सामने रखी एक पत्रिका उठा ली।

पर कुमुद बुआ के सवालों से बच नहीं पाई। सुमन बुआ ने कुमुद से कबुलवा लिया की वह प्रयासों के बाद भी माँ नहीं बन पा रही है। यह सब सुनकर सुमन बुआ के चेहरे पर चिंता की रेखाएं उभरी देखकर देख कुमुद बोली -आजकल सरोगेसी और आई.वी.एफ जैसी सुविधाएं होते हुए चिंता की बात नहीं।

यह सुनते ही सुमन बुआ बोलीं - क्यों अपने शरीर की दुर्दशा करने पर तुली हो। एक बच्चा गोद क्यों नहीं ले लेतीं।

यह सुनकर कुमुद तपाक से बोली - अरे न बुआ, अपना बच्चा तो अपना ही होता है।

हमेशा की तरह अपने अधिकार का समुचित प्रयोग करते सुमन बुआ कुमुद से बोलीं - तुम पढ़े लिखे लोग गोद लिए बच्चे के प्रति ऐसी धारणा रखते हो ये आश्चर्य है जबकि आजकल तो जितने महीने दिन का चाहो बच्चा गोद मिल जाता है।

कुमुद चिढ़ कर बोली - अरे बस करो बुआ ये गोद लेने वाली बात तो आप पकड़ कर ही बैठ गईं। गोद लेना होता तो अब तक ले न लेते। गोद लिया बच्चा किसका खून है, क्या पता। जब आधुनिक चिकत्सकीय सुविधाओं का लोग लाभ ले रहे हैं तो क्या बुरा है। कुमुद ने दो टूक शब्दों में कहा तो सुमन बुआ साकेत की आँखों में देखकर बोलीं - तू भी राज़ी है क्या साकेत? अचानक हुए प्रश्न के हमले से साकेत हकबका गया और कुमुद की ओर देखकर उसने हामी भरी।

सुमन बुआ गंभीर हो गईं। कुछ मौन के बाद वह कुमुद के सर पर हाथ फेरकर बोलीं - भाभी ने कसम दिलाई थी कि ये राज न खोलूँ। पर तुम्हारे दकियानूसी विचार सुनकर बोले बगैर न रह पा रही हूँ कि जो तुम्हारी सास ने भी यही सोचा होता कि अपना बच्चा तो अपना ही होता है तो तुम इस घर की बहू न होतीं और साकेत पूरा जीवन यतीमखाने में गुजार देता।

इस धमाके से साकेत और कुमुद के कानों में मानो सीटियाँ गूंजने लगीं।

सुमन बुआ आज सारे राज खोलने पर आमादा थीं - अपने ही घर में देख कुमुद, साकेत ने बेटे होने का कौन सा धर्म नहीं निभाया? श्रवण कुमार बनकर इसने अपने माँ-बाप की सेवा की है। भैया जब तक रहे इस पर नाज़ करते रहे और अब देखो भाभी को तीर्थ यात्रा पर भेजा है। कितनी सेवा करता है। बुढ़ापे में अपनी माँ की लाठी बना है। ईश्वर खूब बरकत दे।

सर झुकाए सब सुनते हुए साकेत और कुमुद मानो काठ के से हो गए।

साकेत की आँखों में प्रश्न और ह्रदय में तूफ़ान का वेग भांपकर सुमन बुआ नम आँखों से बोलीं - आज तुम्हारे पास किस चीज की कमी है बताओ। घर है, धनदौलत है। सब भाभी भैया के कारण ही न। अपना बच्चा, अपना होता है। यही भैया भाभी मानते तो तू घर कैसे आता। इस घर में रौनक कैसे आती। भाभी को बुढ़ापे में किसका सहारा मिलता। बोल?

सुमन बुआ धमाका करके कमरे में सोने जा चुकी थीं।

अपराधी से सर झुकाए साकेत और कुमुद एक दूसरे से आँखें नहीं मिला पा रहे थे। साकेत के सामने वह मंजर घूम गया जब वह अपनी बूढ़ी अम्मा को वृद्धाश्रम छोड़ने गया था और अम्मा उससे कह रही थीं - सुन साकेत बस एक बात की चिंता है वहां वृद्धाश्रम में कोई जान-पहचान वाला तो नहीं मिलेगा न। कोई पूछे तो यही बताना कि मैं तीर्थ पर गई हूँ। किसी का फोन आया भी तो अव्वल तो उठाऊंगी नहीं और जो उठाया तो तीर्थ में हूँ। ऐसा ही बताऊंगी।

अम्मा के चेहरे पर भय और शर्मिंदगी के भाव देख क्यों नहीं वह शर्म से गड़ गया। वृद्धाश्रम जाते हुए भी अम्मा की उम्मीद टूटी नहीं थी। मारीशस घूम आना तो आ जाना लेने। इंतज़ार करूंगी।

दिल फटा जा रहा था सोचकर कि वहाँ अम्मा घर आने के मंसूबे संजोए हैं और यहाँ कुमुद वृद्धाश्रम में पूरे एक साल की फीस जमा करवा ली है।

सुनो, तुम नहीं जानते थे कि अम्मा ने तुम्हें गोद लिया?

कुमुद के विस्फारित स्वर से उसका ध्यान टूटा। भर्राए स्वर में वह किसी तरह से बोला पाया - कैसे जानता, कभी किसी रिश्तेदार नातेदार से यह आभास ही नहीं मिला कि मुझे गोद लिया गया है।

मस्तिष्क में अनेक प्रश्न हथौड़े लिए चोट कर रहे थे। अम्मा कैसे और कब लेकर आई थीं यह जानने के लिए छटपटाहट भरा बेकल मन लिए वह बुआ के कमरे का दरवाज़ा खटखटा आया। और उनके क़दमों से लिपटकर बिलख पड़ा - बुआ मैं कौन हूँ? कहाँ से आया हूँ? मेरा सच क्या है बताओ?

यह सुनकर बुआ उसे सीने से लगाती हुई बोलीं - तू तो भैया भाभी का लाड़ला है। उनकी दुआओं के कारण इस घर में आया है और क्या। यही सबसे बड़ा सच है।

बुआ अपनी रुलाई रोककर किसी तरह बोलीं - आज के बाद इस बात पर कभी कोई चर्चा न होगी कसम खा।

सुमन बुआ बताने लगीं - उस दिन भैया का जन्मदिवस था। भाभी अनाथ बच्चों के लिए कपड़ा खाना लेकर अनाथालय में गयीं थीं। वहाँ उनकी नज़र पालने में पड़े बच्चे पर नज़र पड़ी। अनाथालयवालों ने बताया कि तुझे कूड़े के ढेर में डाल कर चले गए थे। अनाथालय वालों ने तुझे अपनाया। भाभी भैया तुझे अनाथालय से मांगकर पूरी लिखा पढ़ी के साथ अपने इसी घर लाए। जो भी मिलने आता उनसे हाथ जोड़कर विनती करते कि ये राज किसी को पता न चले कि वो तेरी यशोदा है देवकी नहीं।

भैया भाभी का तेरे प्रति स्नेह, प्यार देखकर सब भूल ही गए कि तूने भाभी की कोख से जन्म नहीं लिया है। सच कहती हूँ जो आज कुमुद बहू गोद लिए बच्चे के प्रति ऐसी भावनाएँ प्रकट न करती तो ये राज न खुलता। अब खुल गया है तो विनती करती हूँ इसे राज ही रहने देना। आज तक भैया भाभी इस राज पर पर्दादारी करते आए अब तुम करना।

यह सुनकर साकेत की रुलाई छूट गई। कुमुद पति की दशा देखकर व्यथित थी। सुमन साकेत को संभालने की कोशिश करते हुए बोली - क्या हो गया तुझे संभाल खुद को। मैंने तो तुझे इसलिए बताया ताकि गोद लिए जाने वाले बच्चों के प्रति तू कोई पूर्वाग्रह न पाले। क्या अपनी अम्मा की ममता में तुझे कोई खोट मिला?

कुमुद भरे गले से बोली - बुआ, आप आराम करो। हम कल बात करते हैं।

सुबह सुमन बुआ रिश्तेदार की शादी में जाने लगी तो साकेत भीगे स्वर में बोला - बुआ शादी के बाद यहाँ आ जाना कल तक शायद अम्मा आ जायें।

वृद्धाश्रम में साकेत अपनी बूढ़ी माँ से लिपट कर रो पड़ा तो अम्मा बड़े शांत मन से उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोली - मुझे विशवास था मेरा बच्चा मेरे बगैर रह नहीं पाएगा। यूं ही नौ माह पेट पर नहीं रखा।

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यह सुनकर साकेत उनको एकटक देखता रह गया। क्या वाकई अम्मा भूल चुकी थी कि वो उनका दत्तक पुत्र है।

सुमन बुआ रिश्तेदार के यहाँ शादी से लौटकर आई तो अम्मा को देखकर बहुत प्रसन्न हुईं। अम्मा सुमन बुआ को देख कहने लगी -बड़े दिनों से इच्छा थी कि तीर्थ कर आऊँ। अब साकेत को कहाँ फुर्सत है ले जाने की सो जिद करके अकेले ही चली गयी पर सच कहूँ ज़रा भी दिक्कत नहीं हुई सारी व्यवस्था इसने करवा दी थी।

कुमुद भरे गले से बोली - अम्मा तो अपने हिस्से का तीर्थ कर आई अब बस हमें तीर्थ करना है। उसके कहे का मर्म समझकर अम्मा का सर सुमन बुआ के सामने गर्व से ऊँचा हो गया।

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