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इन ग्रहों की स्थिति से प्रेम विवाह होते हैं असफल, कहीं आपकी कुंडली में तो नहीं ये पापयोग

प्यार एक ऐसा जज्बात है जिसमें पड़कर लोग बड़े-बड़े से सकंट को पार करने को तैयार रहते है। प्यार में पड़कर मनपसंद साथी से शादी करने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते है। आज के समय में ज्यादातर लोग अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनते है

suman
Published on: 18 Aug 2019 10:12 AM IST
इन ग्रहों की स्थिति से प्रेम विवाह होते हैं असफल, कहीं आपकी कुंडली में  तो नहीं ये पापयोग
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जयपुर: प्यार एक ऐसा जज्बात है जिसमें पड़कर लोग बड़े-बड़े से सकंट को पार करने को तैयार रहते है। प्यार में पड़कर मनपसंद साथी से शादी करने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते है। आज के समय में ज्यादातर लोग अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनते है और लव मैरिज करते है, लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि लव मैरिज करने के बाद से दोनों के विचारों में परिवर्तन हो जाता है और अंतत: दोनों में छोटी-छोटी बातों पर विवाद होते ही नौबत तलाक तक पहुंच जाती है।

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ज्योतिष के अनुसार प्रेम विवाह के जातक की कुंडली में योग बन जाते हैं। ग्रहों की दिशा के अनुसार प्रेम विवाह के योग बनते हैं, लेकिन यह जरुरी नहीं कि सभी प्रेम विवाह सफल हों। अनेक उदाहरण ऐसे होते हैं जो लड़के और लड़की प्रेम विवाह तो कर लेते हैं, लेकिन शादी के कुछ समय बाद ही उनमें अनबन होना शुरू हो जाती है। जानिए प्रेम विवाह असफल होने के क्या हैं कारण....

* कुछ ग्रहों के कारण ही व्यक्ति प्रेम करता है और इन्हीं ग्रहों के प्रभाव से दिल भी टूटता हैं और प्रेम विवाह असफल भी होता है ।

*शुक्र व मंगल की स्थिति और प्रभाव प्रेम संबंधों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। यदि किसी जातक की कुंडली में सभी अनुकूल स्थितियां होते हुई भी, शुक्र की स्थिति प्रतिकूल हो तो प्रेम संबंध टूटकर दिल टूटने की घटना होती है।

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*सप्तम भाव या सप्तमेश का पाप पीड़ित होना, पापयोग में होना प्रेम विवाह की सफलता पर प्रश्नचिह्न लगाता है। पंचमेश व सप्तमेश दोनों की स्थिति इस प्रकार हो कि उनका सप्तम-पंचम से कोई संबंध न हो तो प्रेम की असफलता दृष्टिगत होती है।

*शुक्र का सूर्य के नक्षत्र में होना और उस पर चन्द्रमा का प्रभाव होने की स्थिति में प्रेम संबंध होने के उपरांत या परिस्थितिवश विवाह हो जाने पर भी सफलता नहीं मिलती। शुक्र का सूर्य-चन्द्रमा के मध्य में होना असफल प्रेम का कारण है।

*पंचम व सप्तम भाव के स्वामी ग्रह यदि धीमी गति के ग्रह हों तो प्रेम संबंधों का योग होने या चिरस्थायी प्रेम की अनुभूति को दर्शाता है। इस प्रकार के जातक जीवनभर प्रेम प्रसंगों को नहीं भूलते चाहे वे सफल हों या असफल।

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