TRENDING TAGS :
Dialogue In The Dark: जन्मदिन का उपहार ये कैसा उपहार, अंधेरा, स्पर्श और गंध और अंत में निकल गई चीख जब सच सामने आया
Dialogue In The Dark: हम बैठ गए। मैंने सामने टेबल पर हाथ फिराया। जब टेबल ही नहीं दिख रहा तो खाना कैसे दिखेगा ? हम खाना कैसे खाएँगे ? ये कैसा जन्मदिन का उपहार है ?
Dialogue In The Dark: इंसान चाहे तो तमाम कमज़ोरियों के बावजूद क्या कुछ हासिल नहीं कर सकता है। और वह भी ऐसी कमज़ोरी जिसमें उस इंसान की कोई गलती नहीं बल्कि उसे यह ईश्वर द्वारा प्रदान की गई हो या किसी हादसे के चलते। दिव्यांगता (disability) इंसान चुनता नहीं है बल्कि जीवन भर उसी के साथ रहना इंसान का भाग्य (Luck) है लेकिन इन सबके बावजूद यदि हमारे-आपके द्वारा उनकी कमी को बार-बार उजागर ना किया जाए तो शायद यह समाज और भी अधिक बेहतर बन सकता है। यदि कोई व्यक्ति देख नहीं सकता तो हम और आप उसकी मुश्किलों का अंदाज़ा नहीं लगा सकते हैं। हम-आप आंख बंद करके दो कदम नहीं चल सकते लेकिन उस इंसान का सोचिए जो इसी विषमता के साथ अपना पूरा जीवन व्यतीत करता है।
सरकार और तमाम स्वयंसेवी संस्थाओं (voluntary organizations) द्वारा मृत्यु के पश्चात आंखें दान (eyes donating ) करने को लेकर हमेशा से जागरूकता फैलाई जाती रही है, जिससे हमारी तरह वह लोग भी दुनिया देख सकें जो अभी ऐसा नहीं कर पा रहे हैं। लेकिन शायद अभी तक इसका सार्थक रूप से परिणाम हमारे सामने नहीं आया है। समाज में कितने ही लोग हैं जिन्हें हमारी ज़रूरत है, ज़रा सोचिए हमारी आंखें कितने घर-परिवारों को खुशियां दे सकती हैं।
रोशनी की किरण को खोजने की जरूरत
आज कि यह कहानी भी इसी मुद्दे पर आधारित है जिसमें सुचित्रा के जन्मदिन पर उसका पति उसे एक ऐसे रेस्टोरेंट में खाना खाने ले जाते हैं जहां घोर अंधेरा है। इतना अंधेरा की आप अपनी सामने की मेज पर रखा भोजन भी ना देख पाएं लेकिन इस अंधकार के पीछे एक रोशनी की किरण भी मौजूद है जो हमें और आपको खोजनी है। इस रोशनी की किरण को खोजने के बाद हमें उसे खुद तक सीमित भी नहीं रखना है बल्कि समाज के उन लोगों तक पहुंचाना है जो खुद इसको हासिल नहीं कर सकते हैं।
पढ़िए दिल को छू जाने वाली एक कहानी-
कहानी की शुरुआत सुचित्रा के जन्मदिन और उसके संवादों से, जिसमें वह अपने पति सचिन द्वारा सुबह बोली गई बातों को याद करती है।
मैं सुचित्रा, आज मेरा जन्मदिन है !!
सचिन ने सुबह ही कहा :- "आज कुछ बनाना नहीं। लंच के लिए हम बाहर चलेंगे। तुम्हारे जन्मदिन पर आज तुम्हें एक अनोखी ट्रीट मिलेगी।"
15 साल हो गए हमारी शादी को, मैं सचिन को बहुत अच्छे से जानती थी !!
दोनों बच्चे शाम 4 बजे स्कूल से लौटेंगे । यानी लंच पर मैं और सचिन ही जाएँगे और बच्चों के आने से पहले लौट भी आएँगे।
एक नए बने मॉल की पार्किंग में हमारी गाड़ी पहुँची।
5वी मंजिल पर खाने पीने के ढेरों स्टॉल्स थे । फाइनली एक बंद द्वार पर हम पहुँचे। द्वार पर एक बोर्ड लगा था, जिसपर लिखा था : "Dialogue in the dark"
मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। "अंधेरे में संवाद" ? ये कैसा नाम है, रेस्टॉरेंट का ?
बड़ा विचित्र लग रहा था सब कुछ। अगले मोड़ के बाद इतना अंधेरा हो गया कि, मैंने सचिन का हाथ पकड़ लिया और फिर शायद हम एक हॉल में पहुँचे।
एक सूटबूट धारी आदमी ने किसी को आवाज लगाई :- "संपत" ।
"ये आज के हमारे स्पेशल गेस्ट हैं। आज मैडम का बर्थडे है। गिव देम स्पेशल ट्रीट। ऑर्डर मैंने ले लिया है, तुम इन्हें इनकी टेबलपर लेकर जाओ।
अब उस दूसरे आदमी संपत ने हमारे हाथ थामे और हमें टेबल पर पहुँचाया।
हम बैठ गए। मैंने सामने टेबल पर हाथ फिराया। जब टेबल ही नहीं दिख रहा तो खाना कैसे दिखेगा ? हम खाना कैसे खाएँगे ? ये कैसा जन्मदिन का उपहार है ? ऐसे न जाने कितने प्रश्न मेरे दिमाग में घुमड़ रहे थे। लेकिन मुझे सचिन पर भरोसा था फिर टेबल पर प्लेट्स आदि सजाए जाने की आवाजें आने लगीं। वेटर्स का आना जाना समझ में आ रहा था। फिर वो प्लेट्स में खाना सर्व करने लगा।
"मैंने परोस दिया है। अब आप लोग शुरू कीजिए। आपको कुछ दिखेगा नहीं । लेकिन मुझे विश्वास है कि, स्पर्श और खुशबू से आपको खाने में एक अलग ही आनंद प्राप्त होगा।"
उस घनघोर अंधेरे में मैंने रोटी तोड़ी, प्लेट में रखी सब्जी को लपेटा और पहला निवाला लिया। उल्टे हाथ से मैंने प्लेट पकड़ी हुई थी अतः प्रत्येक पदार्थ की जगह सीधे हाथ के स्पर्श से मुझे ज्ञात हो रही थी।और फिर, आहा... अंधेरे में भी खाने के पदार्थ तो अपने स्वाद का मजा दे ही रहे थे। लेकिन साथ ही मैं पूछ रही थी और ऐसे ही सचिन मुझसे पूछता जा रहा, खुशबू, स्पर्श और आवाज बस यही काम कर रहे थे। बीच बीच में संपत, सब्जियाँ या अन्य कुछ और परोस देता।
मेरा जन्मदिन, अंधेरे में लंच, एक अनोखा आनंद दे गया कैंडल लाइट डिनर से भी अधिक आनंददायक रहा।
"आप जब, बाहर जाना चाहें तो बताइएगा। मैं आपको बाहर छोड़ आऊँगा।" ---संपत ने कहा।
तो सचिन बोल पड़ा : "हाँ.... हाँ.... अब चलो। बिल भी तो बाहर ही पे करना है। चलो संपत, ले चलो हमें।"
फिर संपत ने हम दोनों के हाथ थामे और हमें बाहर को ले चला। अंधेरे हॉल से बाहर निकल हमें दो मोड़ों के बाद प्रकाश दिखने लगा और हम संपत का हाथ छोड़ उसके पीछे चलते रहे। उसका आभार मानने के लिए मैंने उसे आवाज लगाई तो संपत पलटा और मेरी ओर देखने लगा।
तब कमरे के प्रकाश में मैंने संपत का चेहरा देखा और "मेरे मुँह से हल्की चीख निकल गई क्योंकि, संपत की आँखों की जगह दो अंधेरे गढ्ढे नजर आ रहे थे। वो पूर्ण रूप से अँधा था" !!!
संपत बोला :- "यस मैडम ?"
मैं समझ नहीं पा रही थी कि, क्या कहूँ ? फिर मैंने कहा :- "संपत, अपनी ऐसी हालत में भी तुमने, हमारी खूब सेवा, इतनी बढ़िया खातिरदारी की। मैं ये बात सारी जिंदगी नहीं भूलूँगी।"
संपत :- "मैडम, आपने जिस अंधेरे को आज अनुभव किया है वो तो हमारा रोज का ही है। लेकिन हमने उसपर विजय पा ली है। We are not disabled, we are differently able people. We can lead our life without any problem with all joy and happiness as you enjoy."
बिना किसी की सहानुभूति के मोहताज एक सशक्त व्यक्ति से आज सचिन ने मुझे मिलवाया। ऐसा जन्मदिन मुझे कभी नहीं भूलेगा।
सचिन बिल देकर मेरे पास आया हमेशा सचिन को उसकी फिजूलखर्ची के चिल्लाने वाली मैंने, बिल को देखा तो मेरी नजर बिल पर सबसे नीचे लिखे प्रिंटेड शब्दों पर ठहर गई.......
लिखा था : "We do not accept tips, Please think of donating your eyes, which will bring light to somebody's life"...
(हम टिप्स स्वीकार नहीं करते। कृपया अपने नेत्रदान के बारे में सोचें, जो किसी के जीवन में रोशनी ले आएगा )
——————————
लेखक- विनय टण्डन