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Metaverse In Hindi: इन्टरनेट हुआ पुराना, अब सिर पर चढ़ा मेटावर्स का जादू

Metaverse In Hindi: फेसबुक का नाम आज से बदल गया है। टेक्नोलॉजी की दुनिया में एक शब्द की बहुत चर्चा है- मेटावर्स की। क्या आपको पता है कि मेटावर्स क्या है। आइए जानते है इसके बारे में...

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Chitra Singh
Published on: 29 Oct 2021 2:52 PM IST
Facebook Meta
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Meta (Photo- @Meta Twitter)

Metaverse In Hindi: टेक्नोलॉजी की दुनिया में एक शब्द की बहुत चर्चा है – मेटावर्स (Metaverse) की। इसका असर इतना ज्यादा है कि फेसबुक (facebook) ने तो अपना नाम ही बदलकर 'मेटा' (Meta) रख लिया है। दुनिया भर की टेक कम्पनियाँ अब मेटावर्स में ही भविष्य खोज रही हैं। इसे भविष्य का इंटरनेट कहा जा रहा है जिसमें वर्चुअल रिएलिटी और अन्य तकनीकों का मिक्सचर होगा। एक अनुमान है कि अगले चार साल में यानी 2025 तक मेटावर्स 82 अरब डालर का बिजनेस हो जायेगा, जिसमें गेमिंग (metaverse game), बिजनेस, कम्युनिकेशन और एडवरटाइजिंग शामिल है।

क्या है मेटावर्स (Metaverse kya hai)?

मेटावर्स को कुछ इस तरह से समझिए कि इंटरनेट जिंदा हो जाए तो क्या होगा? यानी जो कुछ भी वर्चुअल वर्ल्ड में स्क्रीन के पीछे हो रहा है, वह एकदम आपके इर्द गिर्द होने लगे। यानी आप स्क्रीन को देखेंगे नहीं, उसके भीतर प्रवेश कर जाएंगे। इस रूप में देखा जाए तो कल्पना की कोई सीमा नहीं है। मिसाल के तौर पर अभी आप वीडियो कॉल करते हैं तो सामने वाले को देखते हैं । लेकिन मेटावर्स में आप वीडियो कॉल के अंदर होंगे। यानी आप सिर्फ एक दूसरे को देखेंगे नहीं, उसके घर, दफ्तर या जहां कहीं भी हैं, वहां आभासी रूप में मौजूद होंगे। ऑनलाइन होने वाली हर गतिविधि को आप इसी संदर्भ में देख सकते हैं।

सो तैयार हो जाइए इन्टरनेट के अगले लेवल के लिए। यह वो लेवल है जो दुनिया को पूरी तरह वर्चुअल या आभासी बना देगा। ये है मेटावर्स की दुनिया। दुनिया की टॉप सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक ने तो अपना नाम ही 'मेटा' कर दिया है। अब उसकी प्लानिंग एक अरब लोगों को बहुत जल्दी मेटावर्स में पहुंचा देने की है। इस काम में सिर्फ इसी साल में दस अरब डालर खर्च कर दिए जायेंगे। सिर्फ फेसबुक ही नहीं, अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल वगैरह सभी कंपनियों ने दुनिया को मेटावार्स में पहुँचाने की तैयारी कर ली है। बहुत जल्द यह सब होने जा रहा है।

मेटावर्स को एक उदाहरण से ज़रा यूं समझिये – पहले आप लोगों से फोन पर बात करते तो उनको देख नहीं पाते थे, अब विडियो कॉल होती है । लेकिन मेटावर्स की दुनिया में आप किसी को कॉल करके जब बात करेंगे तो लगेगा मानो वो इंसान आपके बगल में बैठा है। यानी पूरी तरह वर्चुअल। आप ऑफिस की ज़ूम मीटिंग करेंगे तो लगेगा आप एक दूसरे को छू सकते हैं। ये होगी मेटावर्स की दुनिया। सवाल है कि मेटावर्स ही नाम क्यों? तो जान लीजिये कि मेटा एक ग्रीक शब्द है जिसका मतलब होता है बियॉन्ड यानी 'आगे' और वर्स है यूनिवर्स यानी ब्रम्हांड, तो मेटावर्स हुआ इस यूनिवर्स यानी ब्रम्हांड से आगे की बात।

दरअसल, दुनिया कुछ हद तक मेटावर्स को फिलहाल बस छू भर रही है। इसकी एक अवांछित वजह है , कोरोना महामारी। महामारी के दौरान जीवन का बहुत कुछ मजबूरन डिजिटल हो गया है। सोशलाईजिंग से लेकर शॉपिंग और मीटिंग तक सब कुछ डिजिटल हो चुका है। मेटावर्स की बात तो पिछले कुछ सालों से चल रही थी । लेकिन 2021 में लोग इसके बारे में गंभीरता से बात करना शुरू किया है शायद ये कोई इत्तेफाक नहीं है क्योंकि कोरोना की वजह से इन बातों में तेजी आई है । लेकिन अभी हम जितना डिजिटल हुए हैं , वो मेटावर्स का तिनका भर नहीं है। क्योंकि मेटावर्स वास्तविकता या असली दुनिया में ऊपर, नीचे, चारों ओर तैरती सच्चाई की एक डिजिटल परत है। यह असली दिखती है ।लेकिन असली नहीं होती है।

एक कल्पना कीजिये कि आप सड़क पर जा रहे हैं और आपको कोई प्रोडक्ट याद आता है। तुरंत ही सड़क के किनारे एक वेंडिंग मशीन प्रगट हो जाती है, जिसमें वो सब प्रोडक्ट भरे पड़े हैं , जिनके बारे में आप सोच रहे थे। आप रुक कर अपना आइटम चुनते हैं। ये सब वर्चुअल हो रहा है। इसके बाद वो आइटम आपके घर पहुंचा दिया जाता है।

एक और कल्पना कीजिये - पति और पत्नी किसी दुकान में जाते हैं। पत्नी जी को कुछ चाहिए । लेकिन प्रोडक्ट का नाम याद नहीं आ रहा है। कोई बात नहीं, उन्होंने एक डिवाइस पहन रखी है जो उनके ब्रेन से उस आइटम की जानकारी प्राप्त कर लेता है। उस आइटम का लिंक पति की डिवाइस में भेज देता है। ये भी जानकारी दे दी जाती है कि वह आइटम किन स्टोर्स में किस सेक्शन में और किस जगह पर रखा है। पति जी वहां जा कर आइटम खरीद लेते हैं।

इसकी कोई हद नहीं है कि आप मेटावर्स में क्या क्या आभासी रूप से कर पाएंगे। आप किसी नाटक या कॉन्सर्ट में जा पाएंगे, ऑनलाइन सैर कर पाएंगे, कलाकृतियां देख या बना पाएंगे. कपड़े ट्राई करके खरीद पाएंगे।

कई नाम हैं मेटावर्स के

ये है मेटावर्स, जिसे मिरर वर्ल्ड, एआर क्लाउड, मैजिकवर्स, स्पेटियल इन्टरनेट या लाइव मैप्स इन सभी नामों से जाना जाता है। इसमें भौतिक वास्तविकता, ऑगमेंटेड रियलिटी, वर्चुअल रियलिटी और क्रिप्टोकरेंसी (metaverse crypto) के मिक्सचर से एक वर्चुअल शेयरिंग जगत बन जाता है, जिसमें यूजर वर्चुअली एक दूसरे से संवाद करते हैं। ऑगमेंटेड रियलिटी में हमारी सुनने-देखने और महसूस करने की क्षमताओं का इस्तेमाल किया जाता है। वास्तविक दुनिया की सेटिंग में इन्हीं क्षमताओं के कंपोनेंट डाले जाते हैं जिससे यूजर को एक दम अलग लेवल का अनुभव होता है। ऑगमेंटेड का मतलब ही है बढ़ा देना । सो ऑगमेंटेड रियलिटी का मतलब हुआ रियलिटी को बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत करना।

दूसरी तरफ वर्चुअल रियलिटी पूरी तरह वर्चुअल होती है, जिसमें नकली चीजें असली लगने लगती हैं। अभी कंप्यूटर या विडियो गेमिंग में वर्चुअल रियलिटी का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें जब यूजर वीआर हेडसेट पहन कर गेम खेलते हैं तो उनको ऐसा लगता है मानों वे खुद खेल के मैदान में हैं। वहां सभी यूजर एक दूसरे से इंटरैक्ट करते हैं। फोर्टनाईट जैसे वीडियो गेम डेवलपर तो डिजिटल दुनिया में जिन्दगी शुरू भी कर चुके हैं। जो नहीं जानते उनके लिए बता दें कि फोर्टनाईट, प्लेस्टेशन का एक टॉप गेम है, जिसमें खेलने वाले व्यक्ति को प्रतीत होता है कि वह गेम के भीतर पहुँच चुका है।

मेटावर्स में हमारी भौतिक या फिजिकल वास्तविकता डिजिटल यूनिवर्स में मर्ज हो जाती है। यानी हमारा सब कुछ डिजिटल जुड़वां हो जाता है, हमारा मकान, देश, दफ्तर और यहाँ तक कि हमारी जिन्दगी तक के हूबहू डिजिटल संस्करण बन जाते हैं। इसमें लोग कुछ डिवाइस के जरिये प्रवेश कर सकेंगे और डिजिटल जिन्दगी जीने लगेंगे जो असली होगी और नकली भी लेकिन दोनों का अंतर समझ नहीं पायेंगे।

लोगों को मेटावर्स में ले जाने के लिए फेसबुक समेत तमाम कंपनियों ने बहुत बड़ी रकम दांव पर लगा राखी है। फेसबुक ही इस साल 10 अरब डालर मेटावर्स डेवलप करने पर खर्च करेगा । क्योंकि जुकरबर्ग का मानना है कि मेटावर्स मोबाइल इन्टरनेट का उत्तराधिकारी होने वाला है। निवेशक और कम्पनियाँ इन्टरनेट के अगले युग का हिस्सा बनने को आतुर हैं, कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता।

डिजिटल भविष्यवेत्ताओं का कहना है कि डिजिटल ब्रह्माण्ड में संभवतः लोग ट्रेवल, खेल, अपना पेशागत काम, संगीत समारोह जैसे आयोजन, शॉपिंग, खरीद फरोख्त जैसे रोजमर्रा के काम अपने खुद के थ्रीडी अवतार के जरिये कर सकेंगे। मेटावर्स में वर्चुअल इकॉनमी का रास्ता खुलेगा जो एकदम अलग तरह से ऑपरेट करेगी।

खतरे भी हैं

फ्रेंच दार्शनिक और समाजशास्त्री ज्यां बौद्रिल्लार्द ने एक शब्द गढ़ा था - हाइपररियलिटी। एक ऐसी अवस्था जहाँ सच्चाई और कल्पना आपस में इतना घुलमिल जाते हैं कि लोग इनमें फर्क नहीं कर पाते। ऐसे में कल्पना, सच्चाई पर हावी हो जाती है। मेटावर्स में भी ऐसा ही जोखिम है जहाँ लोग सच्चाई से कट जायेंगे और एक भ्रम में जीने लगेंगे।

एक ख़तरा समाज में विघटन का होगा। जिस तरह दुनिया में इन्टरनेट के आगमन के दशकों के बाद भी इन्टरनेट का इस्तेमाल और पहुँच सामान रूप से नहीं है। बहुत बड़ी तादाद ऐसे लोगों की है जिन तक इन्टरनेट पहुँच ही नहीं सका है। ऐसे में मेटावर्स डिजिटल दरार को और बढ़ाएगा। मानी हुई बात है कि मेटावर्स सबको एक साथ न तो मिलेगा और न सबकी हैसियत इसे इस्तेमाल करने की होगी। यानी मेटावर्स से समाज और भी बंटेगा। कुछ विशेषज्ञ इसे लेकर चिंतित भी हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इस तकनीक के जरिए इतना निजी डेटा टेक कंपनियों तक पहुंच जाएगा कि निजता की सीमा पूरी तरह खत्म हो जाएगी। टेक कंपनियों को अभी इस बात पर सहमत होना है कि वे अपने-अपने प्लैटफ़ॉर्म एक दूसरे से कैसे जोड़ेंगी। इसके लिए सभी को कुछ नियम-कायदों पर सहमत होना होगा ताकि ऐसा ना हो कि कुछ लोग फेसबुक मेटावर्स में हैं और कुछ माइक्रोसॉफ्ट मेटावर्स में।

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सभी कम्पनियाँ जुटीं

माइक्रोसॉफ्ट और निविडिया जैसे कई और कंपनियां मेटावर्स पर काम कर रही हैं। वीडियो गेमिंग कंपनियों की मेटावर्स में खास दिलचस्पी है। फोर्टनाइट गेम बनाने वाली कंपनी एपिक गेम्स ने मेटावर्स बनाने के लिए निवेशकों से एक अरब डॉलर जुटाए हैं। रोब्लॉक्स भी इस दौड़ की एक बड़ी खिलाड़ी है। अपने मेटावर्स के बारे में रोब्लॉक्स ने कहा है कि यह ऐसी जगह होगा जहां करोड़ों थ्रीडी एक्सपीरियंस के बीच लोग एक साथ आकर खेल सकेंगे, सीख सकेंगे काम कर सकेंगे और एक दूसरे से मिलजुल सकेंगे। फैशन ब्रैंड्स भी इस ट्रेंड में कूद रही हैं। इटली की फैशन ब्रैंड गुची ने जून में रोब्लॉक्स के साथ एक साझीदारी की और सिर्फ डिजिल एक्ससेसरी बेचने की योजना बनाई है। कोका-कोला और क्लीनिके ने मेटावर्स के लिए डिजिटल टोकन बेचे हैं।

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यूजर डाटा का बड़ा कारोबार

फेसबुक ने कंपनियों के लिए मीटिंग सॉफ्टवेयर भी लॉन्च कर दिया है। इसे होराइजन वर्करूम्स का नाम दिया गया है। इसमें ऑक्युलस वीआर हेडसेट का प्रयोग होता है। हालांकि इस सॉफ्टवेयर के शुरुआती रिव्यूज तो अच्छे नहीं आए हैं। ऑक्युलस हेडसेड 300 डॉलर यानी 20 हजार रुपये से ज्यादा के आते हैं, जिस कारण यह बहुत से लोगों की पहुंच से बाहर है। जूकरबर्ग ने फेसबुक कंपनी का नाम बदलने की घोषणा करते वक्त कहा कि मेटावर्स के बहुत से अनुभव एक से दूसरे में टेलीपोर्ट हो जाने से जुड़े होंगे।



Chitra Singh

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