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Shri Dham Vrindavan: श्री धाम वृन्दावन के वृक्ष को मर्म ना जाने कोय, डाल-डाल और पात-पात श्री राधे राधे होय

Shri Dham Vrindavan Ki Mahima: सनातन धर्म में श्री वृंदावन धाम की अद्भभुत भक्ति और शक्ति है। जो भी व्यक्ति एक बार दर्शन करने श्री वृंदावन धाम पहुंच जाता है वह वापस नहीं आ सकता।

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Newstrack NetworkPublished By Shashi kant gautam
Published on: 1 May 2022 10:07 PM IST
Shri Vrindavan Dham has amazing devotion and power in Sanatan Dharma civilization.
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श्री वृंदावन धाम की महिमा: Photo - Social Media

रिपोर्ट - सचिन सिंगला

Shri Dham Vrindavan Ki Mahima: सनातन धर्म सभ्यता में श्री वृंदावन धाम की अद्भभुत भक्ति और शक्ति है। जो भी व्यक्ति एक बार दर्शन करने श्री वृंदावन धाम पहुंच जाता है तो फिर वह कभी भी हृदय से वापस नहीं आ सकता। शरीर तो वह वापस ला सकता है लेकिन हरेक का हृदय अवश्य वहीं छूट जाता है। ऐसा ही अदभुत और अलौकिक है श्री वृंदावन धाम (Shri Vrindavan Dham) का संसार, जो यहां गया वो यहीं का होकर रह गया। ऐसा कहा जाता है कि जो वृदांवन में शरीर को त्यागता है, तो उन्हें अगला जन्म श्री वृदांवन में ही प्राप्त होता है। और अगर कोई मन में ये सोच ले, संकल्प कर ले कि हम वृदावंन जाएंगे और यदि रास्ते में ही मर जाए तो भी उसका अगला जन्म वृदांवन में ही होगा। किसी भी इंसान का जन्म केवल उसके संकल्प मात्र से उसका श्री धाम में होता है। इस कथ्य से जुड़े दो प्रसंग आज हमारे समक्ष हैं, जिन्हें पढ़कर हम प्रभु की महिमा और श्री वृंदावन धाम की अदभुत महानता का समझने और उसे अपने भीतर समाने का सफल प्रयास करेंगे।

प्रसंग-1- तीन मित्रों की कहानी

ऐसा ही एक प्रसंग श्री धाम वृन्दावन है, तीन मित्र थे जो युवावस्था में थे तीनों बंग देश के थे। तीनों में बडी गहरी मित्रता थी, तीनो में से एक बहुत सम्पन्न परिवार का था पर उसका मन श्रीधाम वृदांवन में अटका था, एक बार संकल्प किया कि हम श्री धाम ही जाएंगे और माता-पिता के सामने इच्छा रखी कि आगे का जीवन हम वहीं बिताएंगे, वहीं पर भजन करेंगे। पर जब वो नहीं माना तो उसके माता-पिता ने कहा - ठीक है बेटा! जब तुम वृदांवन पहुँचोगे तो प्रतिदिन तुम्हें एक पाव चावल मिल जाएंगे जिसे तुम पाकर खा लेना और भजन करना।

Photo - Social Media

जब उसके दो मित्रों ने सुना तो वे बोले कि अगर तुम जाओगे तो हम भी तुम्हारे साथ वृदांवन जाएगें। तो वो मित्र बोला - कि ठीक है पर तुम लोग क्या खाओगे? मेरे पिता ने तो ऐसी व्यवस्था कर दी है कि मुझे प्रतिदिन एक पाव चावल मिलेगा पर उससे हम तीनों नहीं खा पाएगें। तो उनमें से पहला मित्र बोला - कि तुम जो चावल बनाओगे उससे जों माड निकलेगा मैं उससे जीवन यापन कर लूँगा । दूसरे मित्र ने कहा - कि तुम जब चावल धोओगे तो उससे जो पानी निकलेगा तो उसे ही मैं पी लूँगा ऐसी उन दोंनों की वृदावंन के प्रति उत्कुण्ठा थी उन्हें अपने खाने-पीने रहने की कोई चिंता नहीं है। तो जब ऐसी इच्छा हो तो समझना साक्षात राधारानी जी की कृपा है, तीनों अभी किशोर अवस्था में थे।

तीनों वृदांवन जाने लगे तो मार्ग में बड़ा परिश्रम करना पड़ा और भूख-प्यास से तीनों की मृत्यु हो गई और वो वृदांवन नहीं पहुँच पाए। अब जब बहुत दिन हो गए तो तीनों की कोई खबर नहीं पहुँची तो घरवालों को बड़ी चिंता हुई कि उन तीनों में से किसी की भी खबर नहीं मिली, तो उन लड़कों के पिता ढूढते-ढूढते वृदांवन आए, पर उनका कोई पता नहीं चला क्योंकि तीनों रास्ते में ही मर चुके थे। तत्पश्चात किसी ने बताया कि आप ब्रजमोहन दास जी के पास जाओ वे बडे सिद्ध संत है।

सभी के पिता ब्रजमोहन दास जी के पास पहुँचे और बोले- कि महाराज ! हमारे पुत्र कुछ समय पहले वृदांवन के लिए घर से निकले थे पर अब तो उनकी कोई खबर नहीं है ना वृदांवन में ही किसी को पता है। तो कुछ देर तक ब्रजमोहन दास जी चुप रहे और बोले कि आप के तीनों बेटे यमुना जी के तट पर, परिक्रमा मार्ग में वृक्ष बनकर तपस्या कर रहे हैं। वैराग्य के अनुरूप उन तीनों को नया जन्म वृदांवन में मिला है। जब वे श्री धाम वृंदावन में आ रहे थे तभी रास्ते में ही उनकी मृत्यु हो गई थी और जो वृदावंन का संकल्प कर लेता है, उसका अगला जन्म चाहे पक्षु के रूप या पक्षी के या वृक्ष के रूप में वृदांवन में होता है।

आप तीनों के बेटे भी यमुना नदी के किनारे वृक्ष है वहाँ परिक्रमा मार्ग में है और ये भी बता दिया कि कौन-सा किसका बेटा है। बोले कि जिसने ये कहा था कि मैं चावल खाकर रहूँगा वो "बबूल का पेड़ " है जिसने ये कहा था कि मैं चावल का माड़ ही पी लूँगा वह "बेर का वृक्ष" है। जिसने ये कहा था कि चावल के धोने के बाद जो पानी बचेगा उसे ही पी लूँगा तो वो बालक "अश्वथ का वृक्ष" है। उन तीनों को ही वृदावंन में जन्म मिल गया, उन तीनों का उददेश्य अभी भी चल रहा है। वो अभी भी तप कर रहे हैं पर उनके पिता को यकीन नहीं हुआ तो ब्रजमोहन जी उनको यमुना के किनारे ले गए और कहा कि देखो ये बबूल का वृक्ष है, ये बैर का और ये अश्वथ का। पर उन लेागों के दिल में सकंल्प की कमी थी तो उन्होंने संत की बातों पर यकीन नहीं किया पर मुंह से कुछ नहीं बोले और उसी रात को वृदांवन में ही सो गए।

जब तीनों पिता रात में सोए, तब तीनों के वृक्ष बने बेटे सपने में आए और कहा कि पिताजी जो सूरमा कुंज के संत है श्री ब्रजमोहन दास जी है, वो बड़े महापुरूष हैं उनकी दिव्य दृष्टि है। उनकी बातों पर संदेह नहीं करना वे झूठ नहीं बोलते है और ये राधा जी की कृपा है कि हम तीनों वृदांवन में तप कर रहे है। अब तीनों को विश्वास हो गया और ब्रजमोहन दास जी से क्षमा माँगने लगे कि आप हमें माफ कर दो हमें आपकी बात पर संदेह हो गया था। सपने की पूरी बात बता दी तो ब्रज मोहनदास जी ने कहा कि इस में आपकी कोई गलती नहीं है तीनों बड़े प्रसन्न मन से अपने घर चले गए।

Photo - Social Media

प्रसंग- 2- जब ब्रजमोहन दास जी के चरणों में गिर पड़े श्री रामहरिदास जी

एक संत ब्रजमोहनदास जी के पास आया करते थे श्री रामहरिदास जी, उन्होंने। पूछा कि बाबा लोगों के मुँह से हमेशा सुनते आए कि "वृदांवन के वृक्ष को मर्म ना जाने कोय, डाल-डाल और पात-पात श्री राधे राधे होय" तो महाराज क्या वास्तव में ये बात सत्य है कि वृदावंन का हर वृक्ष राधा-राधा नाम गाता है। यह सुनकर ब्रजमोहनदास जी ने कहा, क्या तुम ये सुनना या अनुभव करना चाहते हो? तो श्री रामहरिदास जी ने कहा - कि बाबा! कौन नहीं चाहेगा कि साक्षात अनुभव कर ले और दर्शन भी हो जाए। आपकी कृपा हो जाए, तो हमें तो एक साथ तीनों मिल जाएंगे। ब्रजमोहन दास जी ने दिव्य दृष्टि प्रदान कर दी और कहा कि मन में संकल्प करो और देखो सामने "तमाल का वृक्ष" खड़ा है उसे देखो, रामहरिदास जी ने अपने नेत्र खोले तो क्या देखते हैं कि उस तमाल के वृक्ष के हर पत्ते पर सुनहरे अक्षरों से राधे-राधे लिखा है उस वृक्ष पर लाखों पत्ते हैं।

जहां जिस पत्ते पर नजर जाती है उस पर राधे-राधे लिखा है, और जब पत्ते हिलते तो राधे-राधे की ध्वनि हर पत्ते से स्वतः निकल रही है। मेरे तो आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा और ब्रजमोहन दास जी के चरणों में गिर पड़े, कहा कि बाबा आपकी और राधा जी की कृपा से मैनें वृदांवन के वृक्ष का मर्म जान लिया इसको कोई नहीं जान सकता कि वृदांवन के वृक्ष क्या है? ये हम अपने शब्दों में बयान नहीं कर सकते।

ये तो केवल संत ही बता सकता है हम साधारण दृष्टि से देखते हैं जहाँ पर हर डाल, हर पात पर, राधे श्याम बसते हैं।

"व्रज की महिमा को कहे, को वरने व्रज धाम, जहां बसंत हर सांस में श्री राधे और श्याम"
"व्रज रज जकू मिली गई, बकी चाट ना शेष, व्रज की चाहत में रहे, ब्रह्मा विष्णु महेश"

वृदांवन की महिमा को कौन अपनी एक जुबान से गा सकता है, स्वंय शेष जी अपने सहस्त्र मुखों से वृदांवन की महिमा का गुणगान नहीं कर सकते हैं। जहाँ ब्रज की रज में राधे श्याम बसते हैं, ब्रज की चाहत ब्रम्हा-महेश-विष्णु करते है।

"ब्रज के रस कु जो चखे, चखे ना दूसर स्वाद एक बार राधा कहे, तो रहे ना कुछ ओर याद"
"जिनके रग-रग में बसे श्री राधे ओर श्याम ऐसे व्रज्वासिन कु शत-शत नमन प्रणाम"

क्योंकि संत को वो वृदांवन दिखता है जो साक्षात गौलोंक धाम का खंड है, लेकिन हमें साधारण वृदांवन दिखता है क्योंकि हमारी दृष्टि मायिक है, हम संसार के विषयों में डूबे हुए हैं। जब किसी संत कि कृपा होती है तभी वे किसी विरले भक्त हो या दिव्य द्रष्टि देते हैं जिससे हम उस दिव्य वृंदावन को देख सकते हैं और अनुभव कर सकते हैं कि ब्रज का हर पत्ता और हर डाल राधा रानी जी के गुणों का बखान करता है।

श्री कुञ्ज बिहारी श्री हरिदास।

जय श्री राधे कृष्णा जी



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