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जानिए कौन है ये शख्स, बचपन के वादों को निभाने के लिए बन गया दूसरे का बेटा

Aditya Mishra
Published on: 19 July 2018 10:20 AM GMT
जानिए कौन है ये शख्स, बचपन के वादों को निभाने के लिए बन गया दूसरे का बेटा
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लखनऊ: मेजर प्रतीक मिश्रा जम्मू कश्मीर के उरी में आये विनाशकारी भूकम्प के दौरान अपने साथियों को बंकर से निकालते हुए देश के लिए शहीद हो गये थे। उन्होंने अपने दो साथियों को बंकर के अंदर से सकुशल बाहर निकाल लिया था। लेकिन जैसे ही वे तीसरी बार बंकर के अंदर ये देखने के लिए दाखिल हुए की अंदर कोई फंसा तो नहीं है, उसके बाद से वे फिर कभी वापस नहीं लौटे। उनकी डेथ के बाद से उनके दोस्त विजय मिश्रा अपने वादों को पूरा करने के लिए उनके घर पर बेटा बनकर रह रहे है।

आर्मी परिवारों के जन कल्याण के लिए काम करने वाले सौमित्र त्रिपाठी और विजय मिश्रा ने newstrack.com से बात की और अपनी दोस्ती की इस अनटोल्ड स्टोरी को बयां किया।

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जंग में ऐसे हुए थे शहीद

मेजर प्रतीक का जन्म 11 मई 1979 को लखनऊ के इंदिरा नगर में हुआ था। लखनऊ के क्रिश्चियन कालेज से बी. काम की पढाई और एनसीसी की ट्रेनिंग ली।

उसके बाद 2001 में चेन्नई आफिसर्स एकेडमी में प्रवेश लिया। 17 सितम्बर 2002 को सेना में कमीशन प्राप्त कर 7 डोगरा रेजीमेंट में लेफ्टिनेंट की पोस्ट पर तैनात हुए।

8 अक्टूबर 2005 को जम्मू कश्मीर के उरी सेक्टर में सुबह 6 बजे के करीब भूकम्प आने की सूचना मिली। उन्हें बताया गया कि बंकर के अंदर कुछ साथी फंस गये है।

कमांडर होने के कारण वे बंकर में घुसकर दो साथियों को निकाल लाये। तीसरी बार वे फिर दाखिल हुए। तभी दोबारा से भूकम्प आ गया। बंकर में फंसने से उनकी डेथ हो गई।

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18 साल से ये शख्स निभा रहा है अपना वादा

विजय मिश्रा का जन्म 27 मई 1980 को बाराबंकी में हुआ था। वे 1999 में क्रिश्चियन कालेज में ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने आये थे। तभी उनकी मुलाकात मेजर प्रतीक से हुई थी। मेरी प्रतीक से गहरी दोस्ती हो गई थी।

ग्रेजुएशन की पढ़ाई के टाइम से ही प्रतीक के घर पर रहने लगा था। हम दोनों ने एक दूसरे से ये वादा किया था कि जो कोई भी पहले मरेगा तो दूसरा उसके घर की एक बेटे की तरह से जिम्मेदारी संभालेगा। बाद में मेजर प्रतीक देश के लिए शहीद हो गये।

दोस्त से किये गये वादे को निभाने के लिए मैं करीब 18 साल से उसी के घर में रह रहा हूं। उसके माता पिता को अपना पैरेंट्स मानता हूं। मेरा अपना घर भी है। मैं अपने घर का बड़ा बेटा हूं। वहां भी आता -जाता रहता हूं।

मैं करीब 18 साल से अपने दोस्त के घर पर ही रह रहा हूं। यहीं से दोनों घरों की जिम्मेदारी संभालता हूं। मेरी वाइफ और मेरे बच्चे अब दोस्त के घर पर ही रहते है।

दोस्त की कही बात ऐसे हुई सच साबित

स्कूल के दिनों में हम दोनों इंदिरा नगर में अपने घर के सामने बने पार्क में रोज खेलने के लिए जाया करते थे। मेजर प्रतीक ने एक दिन खेलते हुए मुझसें कहा था। देखना एक दिन इस पार्क में मेरी मूर्ति जरुर लगेगी।

लेकिन तब मैंने उसकी बातों को सीरियसली नहीं लिया था। मैंने उसे समझाते हुए उसकी बात को हंसी में टाल दिया था लेकिन वो बात आज पूरी तरह से सच साबित हुई है।

देश के लिए शहीद होने के एक साल बाद 2006 में इंदिरा नगर के उसी पार्क में आज उसकी मूर्ति लगी हुई है। मैं जब भी पार्क में अपने दोस्त की मूर्ति को देखता हूं। मुझें अपने दोस्त की बात वो याद आज भी याद आती है।

Aditya Mishra

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