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16 दिसंबर : बांग्लादेश में भी मनाया जाता है 'विजय दिवस', जानें क्या हुआ था वहां आज के दिन

बांग्लादेश का स्वतंत्रता संग्राम वर्ष 1971 में हुआ था। इसे 'मुक्ति संग्राम' से भी संबोधित किया जाता है। दरअसल, बांग्लादेश का 'मुक्ति संग्राम' या स्वतंत्रता संग्राम 1971 में 25 मार्च से 16 दिसंबर तक चला था।

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Written By aman
Published on: 16 Dec 2021 2:50 AM GMT (Updated on: 16 Dec 2021 2:52 AM GMT)
16 दिसंबर : बांग्लादेश में भी मनाया जाता है विजय दिवस, जानें क्या हुआ था वहां आज के दिन
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बांग्लादेश का स्वतंत्रता संग्राम वर्ष 1971 में हुआ था। इसे 'मुक्ति संग्राम' से भी संबोधित किया जाता है। दरअसल, बांग्लादेश का 'मुक्ति संग्राम' या स्वतंत्रता संग्राम 1971 में 25 मार्च से 16 दिसंबर तक चला था। मतलब, आजादी की लड़ाई के सालभर के भीतर ही बांग्लादेश को स्वतंत्रता हासिल हो गई। लेकिन, यह दौर रक्तरंजित रहा। काफी कुर्बानियों के बाद बांग्लादेश ने पाकिस्तान से स्वाधीनता प्राप्त की।

16 दिसंबर, 1971 को बांग्लादेश बना था। बांग्लादेश की आजादी में भारत का अहम योगदान रहा। भारत की पाकिस्तान पर ऐतिहासिक जीत को 'विजय दिवस' के रूप में मनाया जाता है। भारत की पाकिस्तान पर यह जीत कई मायनों में ऐतिहासिक थी। क्योंकि, इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तानी सैनिकों की ये हालत कर दी, कि उनके 93 हजार सैनिक घुटनों पर बैठने को मजबूर हो गए।

1971 में बना बांग्लादेश

वर्ष 1971 में बांग्लादेश के गठन से पहले यह पाकिस्तान का ही एक प्रांत हुआ करता था। तब उसे 'पूर्वी पाकिस्तान' के नाम से जाना जाता था। कई सालों के संघर्ष और पाकिस्तान की सेना के अत्याचार तथा बांग्ला भाषियों के दमन के विरोध में पूर्वी पाकिस्तान के लोग सड़कों पर उतरे। लेकिन, 1971 आते-आते दोनों तरफ का संघर्ष चरम पर आ गया। इस संघर्ष को कुचलने के लिए पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान के विद्रोह पर आमादा लोगों पर कई तरह से अत्याचार किए। कहते हैं इस संघर्ष में लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। अनगिनत महिलाओं की इज्जत लूट ली गई।

भारत ने 'अच्छे पड़ोसी' का कर्तव्य निभाया

भारत ने पड़ोसी मुल्क होने के नाते इस जुल्म का विरोध किया। साथ ही, पूर्वी पाकिस्तान के आंदोलनकारियों की मदद की। इसका नतीजा यह हुआ, कि भारत और पाकिस्तान के बीच ही सीधी जंग हुई। इस लड़ाई में भारत ने पाकिस्तान को बुरी तरह हराया। इसके साथ ही दक्षिण एशिया में एक नए देश का उदय हुआ। जिसे आज हम 'बांग्लादेश' के नाम से जानते हैं।

जरा समझें इतिहास को

हम जानते हैं, कि 1947 में अंग्रेजों से आजादी मिलने के साथ ही भारत का बंटवारा हो गया। इस बंटवारे से ही पाकिस्तान का जन्म हुआ। लेकिन, पाकिस्तान अलग होने के बाद भी दो हिस्सों में बंटा था। एक, पूर्वी पाकिस्तान और दूसरा पश्चिमी पाकिस्तान। हालांकि, देश एक था, मगर दोनों में काफी भिन्नताएं थीं। यूं कहें तो दोनों हिस्सों में कोई साम्य या समानता नहीं था। दोनों के बीच राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक भिन्नताएं थीं, जो उनके एक होने में रुकावट पैदा कर रही थी। तब, पश्चिमी पाकिस्तान राजनीतिक सहित हर स्थिति में ज्यादा शक्तिशाली और सबल था। जबकि, पूर्वी पाकिस्तान संसाधनों के लिहाज से ताकतवर था।

पूर्वी पाकिस्तान में इस वजह शुरू हुई बगावत

1947 में बंटवारे के कुछ समय बाद से ही पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के निवासियों का आरोप रहा था, कि पश्चिमी पाकिस्तान (अब का पाकिस्तान) उनके संसाधनों का दोहन करता है। जबकि इस पर पहला हक उनका था। राजनीतिक नजरिए से देखें तो पाकिस्तान की सत्ता में पश्चिमी पाकिस्तान की ज्यादा भागीदारी थी। इस कारण पूर्वी पाकिस्तान अलग-थलग पड़ गया था। इन्हीं सब वजहों ने पूर्वी पाकिस्तान में बगावत ने जन्म लिया।

यूं पाकिस्तान विभाजन की पड़ी नींव

तब, पूर्वी पाकिस्तान के नेता शेख मुजीब-उर-रहमान ने 'अवामी लीग' की स्थापना की। अवामी लीग पाकिस्तान के भीतर पूर्वी पाकिस्तान के स्वायत्तता की मांग करने लगा। साल 1970 में जब चुनाव हुए तो पूर्वी पाकिस्तान में मुजीब-उर-रहमान की पार्टी ने जीत हासिल की। अब उनकी पार्टी ने संसद में बहुमत भी हासिल कर लिया था। लेकिन, प्रधानमंत्री बनाने की बजाए उन्हें जेल में डाल दिया गया। इसी ने पाकिस्तान के विभाजन की नींव रख दी।

याहया खान के फैसले ने 'आग' और बढ़ा दी

जब पाकिस्तान में राजनीतिक हलचल तेज हुई तब वहां के राष्ट्रपति थे याहया खान। वर्ष 1971 में जनरल याहया खान पूर्वी पाकिस्तान में फैली बगावत पर नियंत्रण के लिए जनरल टिक्का खान को सैन्य दमन की इजाजत दे दी। लेकिन, इसने तो हालात और खराब कर दिए। 25 मार्च 1971 को पाकिस्तान की सेना और पुलिस ने वहां जबरदस्त नरसंहार किया। इसके विरोध में पूर्वी पाकिस्तान के सैनिकों ने 'मुक्ति वाहिनी' का गठन किया।

ऐसे हुई भारत की इंट्री

मुक्ति वाहिनी के सैनिकों ने पश्चिमी पाकिस्तान के सैनिकों के खिलाफ जंग शुरू कर दी। हालात इतने बदतर हो गए कि पूर्वी पाकिस्तान के लाखों लोग पलायन कर भारत पहुंचने लगे। बांग्लाभाषी शरणार्थी भारत में रहने देने की अनुमति के लिए सीमा पर खड़े हो गए। हालात बिगड़ता देख तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी को समर्थन देने का फैसला किया।

क्या है 'ऑपरेशन सर्चलाइट' और 'ऑपरेशन चंगेज खान'

पाकिस्तान ने 25 मार्च 1971 को 'ऑपरेशन सर्चलाइट' चलाया। इस ऑपरेशन के तहत पूर्वी पाकिस्तान में नरसंहार हुआ। आंकड़ों की मानें तो तब पूर्वी पाकिस्तान के करीब 30 लाख लोग मारे गए थे। इसके बाद दिसंबर महीने में पाकिस्तान ने 'ऑपरेशन चंगेज खान' चलाया। जिसके तहत पाकिस्तान ने भारत के 11 हवाई पट्टी पर हमला बोल दिया। इसी के बाद 3 दिसंबर 1971 को भारत और पाकिस्तान के बीच सीधी जंग शुरू हो गई। यह युद्ध 13 दिनों (3 से 16 दिसंबर) तक चला। जिसने पाकिस्तानी सेना को घुटने पर ला दिया।

..और पूर्वी पाकिस्तान हुआ आजाद

इस युद्ध में भारतीय सेना के जांबाजों ने ढाका की तीन तरफ से घेराबंदी की। सेना ने ढाका के गवर्नर हाउस पर हमला बोल दिया। कहते हैं, उस वक्त गवर्नर हाउस में पाकिस्तानी सेना के बड़े अधिकारियों की बैठक चल रही थी। तभी अचानक हुए हमले से जनरल नियाजी घबरा गया। हारकर नियाजी ने भारतीय सेना को युद्धविराम का संदेश भेजा। लेकिन, भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल मानेक शॉ ने साफ कहा, पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण करना होगा। आखिरकार, जनरल नियाजी ने पाकिस्तानी सेना के 93 हजार से ज्यादा सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया। इस तरह भारत पूर्वी पाकिस्तान को आजाद करवाकर 'बांग्लादेश' के गठन में सफल रहा।

इस वर्ष जब बांग्लादेश 16 दिसंबर को अपना 50वां 'विजय दिवस' समारोह यानी 'गोल्डन जुबली' मनाने जा रहा है तो भारतीय राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को विशेष अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया है। राष्ट्रपति कोविंद अपनी राजकीय यात्रा के दौरान अपने समकक्ष के साथ बातचीत करेंगे। साथ ही, पाकिस्तान से 1971 में बांग्लादेश को मिली आजादी के 'स्वर्ण जयंती समारोह' में शरीक भी होंगे। इस दौरान भारतीय राष्ट्रपति वहां शहीदों को नमन करेंगे और कई कार्यक्रमों में शामिल होंगे।


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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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