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इब्न बतूता: एक अनोखा यात्री, जिसने अपने कदमों से नाप दी आधी दुनिया
इब्नबतूता का पूरा नाम ‘इब्न बतूता मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद बिन इब्राहीम अललवाती अलतंजी अबू अब्दुल्लाह’ था। उसके नाम को एक बार में याद कर पाना बेहद कठिन है, इसीलिए वह केवल इब्न बतूता के नाम से प्रसिद्ध हुआ। बचपन से ही अपने धर्म से उसका अत्यधिक लगाव था।
लखनऊ: कहते हैं इंसान जुनून और जिज्ञासा में कई बार वह कारनामा देता है, जिसके कारण मरणोपरांत भी सैकड़ों वर्षों तक उस इंसान को भुलाया नहीं जा सकता। इब्नबतूता ऐसा ही एक नाम है, जिसने जुनून के दम पर अपने क़दमों से आधी से ज़्यादा दुनिया नाप दी। इब्नबतूता एक मुस्लिम विद्वान अफ़्रीकी यात्री था। जिसका जन्म आज ही के दिन यानी 24 फरवरी 1304 ई. को उत्तर अफ्रीका के मोरक्को प्रदेश के प्रसिद्ध नगर तांजियर में हुआ था। उत्तरी अफ्रीका का निवासी इब्नबतूता चौहदवीं सदी में भारत आया और आठ वर्षों तक मोहम्मद तुगलक के दरबार में रहा। आइये जानते हैं कि कैसे अपनी हज करने की चाह को पूरा करने के लिए इब्नबतूता ने आधी से ज्यादा दुनिया नाप दी....-
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धर्म से था अत्यधिक जुड़ाव
इब्नबतूता का पूरा नाम ‘इब्न बतूता मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद बिन इब्राहीम अललवाती अलतंजी अबू अब्दुल्लाह’ था। उसके नाम को एक बार में याद कर पाना बेहद कठिन है, इसीलिए वह केवल इब्न बतूता के नाम से प्रसिद्ध हुआ। बचपन से ही अपने धर्म से उसका अत्यधिक लगाव था। जिसकी वजह से उसके मन में अपने धर्म और धर्म से जुड़े देशों के बारे में जानने की तीव्र इच्छा हुई। शायद इसलिए उसने अपने कदमों से दुनिया नाप दी।
पहली यात्रा में दस बच्चों की मां से शादी
बतूता को असम्भव कार्य को सम्भव करने के लिए एक मौके की तलाश थी। 21 साल की उम्र में उसे हज करने के लिए मक्का जाने का सौभाग्य मिला। उन दिनों बतूता की जन्मभूमि से हज यात्रा के लिए सोलह महीनों का समय लगता था और इतने ही समय का अनुमान लगाकर बतूता घर से चला था, मगर सफर के रोमांच और दूसरे देशों की संस्कृति को जानने की ललक ने उसे लगभग 30 वर्षों के लिए ख़ानाबदोश बना दिया। इसी यात्रा के दौरान उसने एक महिला से शादी की, जिसके पहले से दस बच्चे थे। अपनी यात्रा के दौरान रचाई गयी 10 शादियों में यह उसकी पहली शादी थी।
संत की भविष्यवाणी
सन 1326 की शुरुआती बसंत में इब्न बतूता लगभग 3500 किलोमीटर की यात्रा करने के बाद अलेक्ज़ेन्ड्रिया पहुंचा। जहां उसकी मुलाकात संत से हुई। उनमें पहले थे शेख़ बुरहानुद्दीन, जिन्होंने इब्न बतूता को देखते ही यह भविष्यवाणी की कि ‘ऐसा जान पड़ता है कि तुम विश्व भ्रमण के लिए ही पैदा हुए हो’। तमाम मुश्किलों को पार करते हुए इब्न बतूता ने अपने पहले लक्ष्य को प्राप्त कर लिया। मक्का में अपना हज करने के बाद बतूता ने इराक, उत्तरी ईरान, तथा बगदाद जाने के लिए अरब के रेगिस्तान को पार किया। इसी दौरान बतूता ने मंगोलों के अंतिम खान अबू सईद से मुलाकात भी की।
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जब भारत पहुंचा इब्नबतूता
कहा जाता है कि मक्का में उसने कई लोगों से पूरब के देशों खास कर भारत के बारे में बहुत कुछ अच्छा सुना। इस वहज से घर लौटने के बजाय सफ़र को आगे बढ़ाना सही समझा और 1334 ई. में अफ़गानिस्तान से होते हुए हिन्दू कुश के रास्ते दिल्ली पहुंचा। उस समय वहां मुस्लिम शासक मोहम्मद बिन तुगलक़ का शासन था। दिल्ली पहुंचते ही तुगलक़ ने गर्मजोशी के साथ बतूता का स्वागत किया। तुगलक़ इब्न बतूता से इतना प्रभावित हुआ कि उन्हें अपने दरबार में काज़ी नियुक्त कर लिया।
इब्नबतूता की घर-वापसी और मृत्यु
लगभग तीस वर्षों में 120000 किलोमीटर की लम्बी यात्रा करने के बाद इब्न बतूता ने घर लौट जाने का मन बनाया। फिर 1353 ई. में वह मोरक्को लौट आया। इब्नबतूता ने अपना अंतिम समय अपनी मातृभूमि तंजियार में ही बिताया। बाद में वहीं 1368 ई के आसपास उनका देहांत हो गया।