चीन को याद आ रहे डॉक्टर कोटनिसः कांस्य प्रतिमा का अनावरण अगले महीने

शिजियाझुआंग और तानझियांग में उनके नाम पर कई प्रतिमाएं और स्मारक स्थापित किए गए हैं। चीन में रहने के दौरान डॉ. कोटनिस ने इन दोनों शहरों में चिकित्सकीय सहायता प्रदान की थी। उनकी याद में चीन ने डाक टिकट भी जारी किए हुए हैं।

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Published on: 31 Aug 2020 2:50 PM GMT
चीन को याद आ रहे डॉक्टर कोटनिसः कांस्य प्रतिमा का अनावरण अगले महीने
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चीन को याद आ रहे डॉक्टर कोटनिसः कांस्य प्रतिमा का अनावरण अगले महीने

योगेश मिश्र

भारत के डॉक्टर कोटनिस ने आज से लगभग आठ दशक पहले चीन में पीड़ित सैनिकों की सेवा करते हुए जिस तरह अपनी जिंदगी समर्पित कर दी, उसके लिए चीन आज भी उनका एहसान मानता है।

द्वितीय विश्व युद्ध और माओ त्से तुंग के नेतृत्व में हुई चीनी क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले भारतीय चिकित्सक द्वारकानाथ कोटनिस की एक कांस्य प्रतिमा का अगले महीने चीन में अनावरण किया जाएगा।

यह प्रतिमा हेबई प्रांत की राजधानी शिजियाझुआंग स्थित एक मेडिकल स्कूल के बाहर लगाई गई है। चीनी क्रांति के दौरान कोटनिस के योगदान की माओ त्से तुंग ने भी प्रशंसा की थी। उनके इसी योगदान को देखते हुए चीन के कई शहरों में उनकी प्रतिमाएं और स्मारक बनाए गए हैं।

और जिंदगी बदल गई

उनका जन्म 10 अक्टूबर, 1910 को महाराष्ट्र के सोलापुर में हुआ था। उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी के सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज से मेडिसिन की पढ़ाई की। 1938 में जब कोटनिस ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद पोस्ट-ग्रेजुएशन की तैयारी कर रहे थे। तब उन्हें चीन जाने का मौका मिला। उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदल गई।

नेताजी सुभाष ने की थी अपील

1938 में चीन पर जापानी हमला हुआ। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने जवाहरलाल नेहरू से निवेदन किया कि कुछ डॉक्टर चीन भेजिए। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने एक प्रेस विज्ञप्ति के ज़रिये भारतीय जनता से चीन की सहायता करने की अपील की।

सुभाष चंद्र बोस ने स्वयंसेवक डॉक्टरों की एक टीम तैयार की । 22 हज़ार रुपये की राशि चीन भिजवाई। डॉक्टरों की उस टीम में इलाहाबाद के डॉक्टर एम. अटल, नागपुर के एम. चोलकर, शोलापुर से डॉक्टर कोटनिस, और बी. के. बासु एवं देबेश मुखर्जी कोलकाता से थे।

माओ त्से तुंग ने किया स्वागत

1939 में यह टीम युन्नान पहुंची। यह उस समय क्रांतिकारियों का आधार शिविर था। वहां उस मेडिकल टीम का स्वागत माओ त्से तुंग ने किया। यह किसी एशियाई देश से चीन पहुंचने वाली पहली मेडिकल टीम थी। डॉक्टर कोटनिस कुल 5 साल चीन में रहे। उन्होंने युद्ध के मोर्चे पर घायल चीनी सैनिकों की सेवा की।

Dr Kotnis

युद्ध समाप्त होने के बाद बाकी डॉक्टर भारत लौट आए। लेकिन डॉ. कोटनिस वहीं रुक गए। 1940 में उन्होंने चीन की महिला नर्स गुओ क्विंग लांग से विवाह कर लिया। दिसंबर 1941 में जब उनके यहां पुत्र का जन्म हुआ तो उसका नाम उन्होंने यिनहुआ रखा।

इसके शाब्दिक अर्थ-यिन का मतलब भारत, और हुआ का मतलब चीन। इससे वह चीनी जनमानस के और करीब आ गए। 1942 में वह कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना में शामिल हो गए थे।

1942 में हुआ निधन

डॉक्टर कोटनिस दिन-रात युद्ध के मोर्चे पर सैनिकों की सेवा-सुश्रुषा करते रहे। लगातार कार्य करने का कोटनिस और उनके साथियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर काफी असर पड़ा।

लेकिन हर मुसीबत को झेलकर वे अपना कार्य करते रहे। मिर्गी के दौरे से 9 दिसम्बर 1942 को वह अपनी पत्नी और पुत्र को हमेशा के लिए छोड़ गए।डॉक्टर कोटनिस को ननकुआन गांव में नायको के कब्रिस्तान में दफनाया गया। उनकी मृत्यु पर माओ त्से तुंग ने कहा था कि हमारी सेना ने एक मददगार खो दिया, चीन ने एक दोस्त को खो दिया। उनकी अंतर्राष्ट्रीय भावना हमेशा हमारे दिलों में जिंदा रहेगी।

कोटनिस का संग्रहालय

एक स्थान डॉक्टर कोटनिस को समर्पित किया गया है । जहां उनके द्वारा प्रयोग किये गए मेडिकल उपकरण एवं उनके चीन के नेताओं के साथ फोटो प्रदर्शित हैं। एक फोटो में वे माओ त्से तुंग के साथ नज़र आते हैं।

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कोटनिस की मौत के बाद उनके बेटे यिनहुआ ने उनकी परंपरा को आगे बढ़ाने का फैसला किया। मेडिकल की शिक्षा ली। लेकिन वे अपने पिता के कदमों पर चल पाते, उससे पहले ही 1967 में उनका देहांत हो गया। यिनहुआ मेडिकल कॉलेज से ग्रुजेएट होने वाले थे। मेडिकल लापरवाही को उनकी मौत का कारण बताया गया।

शोलापुर में स्मारक

1 जनवरी, 2012 को डॉक्टर कोटनिस की स्मृति में उनके गृह नगर शोलापुर में एक स्मारक का उद्घाटन तत्कालीन कैबिनेट मंत्री भारत सरकार, सुशील कुमार शिंदे ने किया था। डॉक्टर कोटनिस की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी क्वो ने एक चीनी पुरुष के साथ विवाह कर लिया।

अनेक मौकों पर उन्हें चीन सरकार द्वारा बुलाया जाता रहा। उनकी पत्नी क्वो प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से 2003 में उनकी चीन यात्रा के दौरान मिली थीं। चीन के राष्ट्रपति हु जिन्ताओ की 2006 में भारत यात्रा के दौरान भी वह उनके साथ आईं। 2012 में 96 वर्ष की अवस्था में उनका चीन में देहांत हो गया।

डॉक्टर कोटनिस की अमर कहानी

महान फिल्मकार वी शांताराम ने 1946 में उनके जीवन पर फिल्म बनाई। जिसका नाम है डॉक्टर कोटनिस की अमर कहानी। इस फिल्म की पटकथा ख्वाजा अहमद अब्बास ने लिखी थी।डॉक्टर कोटनिस का रोल वी शांताराम ने खुद किया। 1982 में चीन में भी उनके ऊपर एक फीचर फिल्म बनाई गयी।

जब-जब चीन के राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री भारत आये, उनके द्वारा डॉक्टर कोटनिस के परिजनों का सम्मान किया जाता रहा। बहुत से चीनी राष्ट्राध्यक्ष डॉक्टर कोटनिस की बहन से मिले।

कोटनिस के परिजनों से जरूर मिलते हैं

कोटनिस के प्रति चीन की श्रद्धा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत दौरे पर आए कई चीनी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री तमाम व्यस्तताओं के बावजूद मुंबई में कोटनिस के परिजनों से मिलना नहीं भूलते।

मौजूदा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनसे पहले राष्ट्रपति रहे हू जिंताओ भी मुंबई जाकर कोटनिस के परिजनों से मुलाकात कर चुके हैं।

सात विदेशी दोस्तों में कोटनिस

2014 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी उनकी बहन से भारत यात्रा के दौरान मुलाकात की थी। 2017 में चीन सरकार ने मुंबई विश्वविद्यालय को, जहां से डॉक्टर कोटनिस ने मेडिकल की पढ़ाई की, माओ द्वारा लिखा गया डॉक्टर कोटनिस के बारे में हस्तलिखित संदेश प्रदान किया। कुछ साल पहले चीन सरकार की देश के सर्वोत्तम 7 विदेशी दोस्तों की सूची में डॉक्टर कोटनिस का नाम भी रखा था।

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चीन में ‘के दिहुआ’ के नाम से पहचाने जाने वाले डॉ. कोटनिस के नाम पर शिजियाझुआंग के एक मेडिकल कॉलेज (के दिहुआ मेडिकल साइंसेज सेकेंडरी स्पेशलाइज्ड स्कूल) का नाम रखा गया है।

इसके अलावा शिजियाझुआंग और तानझियांग में उनके नाम पर कई प्रतिमाएं और स्मारक स्थापित किए गए हैं। चीन में रहने के दौरान डॉ. कोटनिस ने इन दोनों शहरों में चिकित्सकीय सहायता प्रदान की थी। उनकी याद में चीन ने डाक टिकट भी जारी किए हुए हैं।

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