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राम मंदिर निर्माण, कांग्रेस को माया मिली न राम
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर निर्माण के लिए अयोध्या पहुँचने का अपना कार्यक्रम व मंदिर के भूमि पूजन के मुहूर्त को सार्वजनिक कर दिया तब जाकर प्रियंका गांधी जागीं। उन्होंने सकल संसार के राम मय होने का सत्य स्वीकारते हुए ट्विट किया। कांग्रेस नेता कमलनाथ भी चाँदी की ईंट मंदिर निर्माण के लिए भेजने में जुट गये।
योगेश मिश्र
लखनऊ। धर्म का राजनीति से कोई रिश्ता नहीं होना चाहिए। यह छद्म धर्मनिरपेक्ष लोग प्राय: कहते हैं। कांग्रेस पार्टी भी भाजपा के राम मंदिर आंदोलन में शामिल होने पर कुछ ऐसा ही तंज कसती थी। पर हक़ीक़त यह है कि कांग्रेस पार्टी ने ही सबसे पहले धर्म को राजनीति का विषय बनाया। हद तो यह है कि राम मंदिर निर्माण को भी पहले कांग्रेस ने ही सियासी हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया।
बात तब की है जब समाजवादी कांग्रेस से किनारा कस रहे थे। आचार्य नरेंद्र देव के नेतृत्व में कई समाजवादियों ने कांग्रेस छोड़ दी थी। तब गोविंद वल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। फ़ैज़ाबाद में 1948 में उप चुनाव हुआ।
जिसमें पंत जी ने नरेंद्र देव के ख़िलाफ़ बड़े हिंदू नेता संत बाबा राघव दास के कांग्रेस का उम्मीदवार बनाया। इस चुनाव में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण अहम मुद्दा बना। पंत जी ने अपने भाषण में कहा कि नरेंद्र देव राम को नहीं मानते। नतीजतन नरेंद्र देव चुनाव हार गये।
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बाबा राघवदास ऐस शख्स थे, जो वैचारिक मतभेद के बावजूद अपने प्रतिद्वंदियों की सार्वजनिक रूप से तारीफ करने से नहीं चूकते थे। उनकी उदारता थी कि वह विरोधी को खुद से बेहतर बताने तक में संकोच नहीं करते थे। चुनाव में जीतने की खुशी से ज्यादा उन्हें आचार्य नरेंद्र देव के हारने का गम था।
जुलाई 1949 में फ़ैज़ाबाद के लोगों ने पत्र लिखकर मंदिर निर्माण की अनुमति माँगी । पर तब तक उस समय के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पंत जी को पत्र लिखकर इस मामले में उनके स्टैंड को ग़लत करार दे चुके थे।
राजीव गांधी ने किये थे ये दो बड़े काम
यही नहीं राजीव गांधी ने 1986 में मंदिर का ताला खुलवाया। उस समय वीर बहादुर सिंह मुख्यमंत्री थे। इसी के बाद विराजमान रामलला का विधिवत पूजा पाठ शुरू हुआ।
9 नवंबर, 1989 को राजीव गांधी ने मंदिर का शिलान्यास मुहूर्त निकालकर विधि विधान से पूजा पाठ करा कर करवा भी दिया। शिलान्यास में पहली ईंट दलित समुदाय से आने वाले कामेश्वर चौपाल ने रखी थी। भूमि पूजन स्वामी वामदेव ने किया था।
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वास्तु पूजा पंडित महादेव भट्ट और पंडित अयोध्या प्रसाद ने करवाई थी। भूमि की खुदाई के लिए पहला फावड़ा गोरक्षपीठ के महंत अवेद्यनाथ एवं परमहंस रामचन्द्रदास ने चलाया था।
इसी का राजनीतिक लाभ लेने के लिए राजीव गांधी ने 1989 के चुनाव प्रचार की शुरुआत फ़ैज़ाबाद से की। पर उन्हें कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिला। यही नहीं, 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढाँचा विध्वंस के दिन प्रधानमंत्री नरसिंह राव थे। उन पर भी आरोप लगा कि उन्होंने सोने का बहाना करके ढाँचा गिरने दिया।
कांग्रेस ने त्याग दिया राम को
लेकिन नरसिंहराव सरकार के जाने के बाद कांग्रेस ने राम मंदिर के मुद्दे को पूरी तरह छोड़ दिया। जबकि भाजपा इस मुद्दे पर लगातार मुद्दे को धार देती चली गई। उधर राजीव गांधी के बाद की कांग्रेस धीरे-धीरे राम, रामायण और रामराज्य से किनारा करती चली गई।
यूपीए सरकार ने तो सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामे दाखिल कर भगवान श्रीराम के अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिए। जिससे रही सही कसर भी पूरी हो गई।कांग्रेस को इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा। लेकिन इसके बाद तो जैसे कांग्रेस नेताओं ने राम मंदिर के मसले पर बोलना ही बंद कर दिया। जो भी राम का नाम लेता, उसे कांग्रेस नेता बहिष्कृत करने लगे।
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1989 में उत्तरप्रदेश में कांग्रेस को हार मिली और उसके बाद वह हारती चली गई। कांग्रेस से हिन्दू तो दूर हुए ही मुसलमान भी दूर हो गए।
अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राम मंदिर निर्माण के लिए अयोध्या पहुँचने का अपना कार्यक्रम व मंदिर के भूमि पूजन के मुहूर्त को सार्वजनिक कर दिया तब जाकर प्रियंका गांधी जागीं। उन्होंने सकल संसार के राम मय होने का सत्य स्वीकारते हुए ट्विट किया। कांग्रेस नेता कमलनाथ भी चाँदी की ईंट मंदिर निर्माण के लिए भेजने में जुट गये।