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कैसे बचाओगे जानः हाथ रगड़ने का कोई फायदा नहीं, बस रहिये सावधान
कुल मिलाकर कोरोना वायरस को लेकर अभी सब अंधेरे में हैं। इसका उपचार या वैक्सीन बनाने के लिए हमें लंबा सफर तय करना है। तब तक बचाव को सख्ती से और कैसे लागू करें इस पर विचार किये जाने की जरूरत है।
वैज्ञानिकों ने डब्ल्यूएचओ को इस बात के प्रमाण दिये हैं कि कोविड वायरस हवा में रह सकता है। यह जानकारी डब्ल्यूएचओ की पहली चेतावनी के करीब छह महीने बाद सामने आयी है उस चेतावनी में कहा गया था कि वुहान में समुद्री जानवरों को खाने वाले रोगियों में एक अजीब तरह का निमोनिया देखा गया है।
करीब दो सौ शोधकर्ता अपनी छानबीन के लिए बाहर निकले और डब्ल्यूएचओ पर गुमराह करने का आरोप लगाते हुए कहा कि पूरे विश्व में तकरीबन पांच लाख चालीस हजार लोगों की जान लेने वाले कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों के हट जाने के बाद भी हवा में घटों मौजूद रहता है जानलेवा वायरस।
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पहले, वायरस का संक्रमण सीधे संपर्क के माध्यम से होने के बारे में सोचा गया था - उदाहरण के लिए उत्सर्जित बड़ी बूंदों के छिड़काव से जैसे जब एक संक्रमित व्यक्ति की खांसी या छींक के छींटे दूसरे पर पड़ने या उसके दूषित हाथों से दूसरी सतहों को छूने से।
या यहां तक कि पहले से ही सीट पर बैठे किसी व्यक्ति के पास वायरस ले जाने से- चाहे उस समय लक्षण दिख रहे थे या नहीं। यही कारण है कि हैंडवाशिंग और सफाई पर जोर दिया गया।
सबूतों को खारिज नहीं किया जा सकता
अब डब्ल्यूएचओ में संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण के लिए तकनीकी नेतृत्व करने वाले बेनेडेटा एलेग्रेंज़ी ने कल स्वीकार किया कि संगठन "भीड़, बंद स्थानों, खराब हवादार सेटिंग्स" में वायु से कोरोना के प्रसार के सबूतों को खारिज नहीं कर सकता है।
जबकि कुछ दिन पहले, संगठन ने हवा से कोरोना के प्रसार की संभावना को खारिज कर दिया था और यह जोर देकर कहा था कि निश्चित रूप से इस तरह के ठोस या स्पष्ट सबूत नहीं हैं।
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क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी में एयरोसोल विज्ञान के विशेषज्ञ लिंडिया मोरावस्का व 239 अन्य वैज्ञानिकों द्वारा हस्ताक्षरित ये खुला पत्र निश्चय ही परिवर्तनकारी है।
उन्होंने लिखा है कि "हाथ धोते रहना और सामाजिक दूरी उचित है, लेकिन, बचाव की ये प्रक्रिया संक्रमित लोगों द्वारा हवा में छोड़े जाने वाले श्वसन माइक्रोड्रॉपलेट्स से सुरक्षा प्रदान करने में अपर्याप्त है।
इस संबंध में यह तर्क काबिले गौर हैं कि स्पेन में जहां मृत्युदर सबसे ज्यादा है हर्ड इम्युनिटी की दर केवल पांच प्रतिशत है। जबकि 60 फीसदी हर्ड इम्युनिटी प्राप्त करने का लक्ष्य असंभव प्रतीत हो रहा है।
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इसी तरह से यूरोप में इम्युनिटी बढ़ाने के डोज दिये जाने के बावजूद 14 प्रतिशत मरीजों पर कोई फर्क नहीं पड़ा। कोरोना वायरस जहां फेफड़ों को अपनी चपेट में ले रहा है वहीं मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित कर रहा है कुछ मरीजों में याददाश्त जाने के लक्षण भी मिले हैं। कुल मिलाकर कोरोना वायरस को लेकर अभी सब अंधेरे में हैं। इसका उपचार या वैक्सीन बनाने के लिए हमें लंबा सफर तय करना है। तब तक बचाव को सख्ती से और कैसे लागू करें इस पर विचार किये जाने की जरूरत है।