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Happy Father's Day: मेरी मां ही मेरे पापा
मेरे पापा बचपन में ही गुजर गए थे। तब से अभी तक मेरी मां ने हम बच्चों के लिए बहुत संघर्ष किए। खाने-पीने से लेकर पढ़ाई तक में कभी कोई कमी नहीं होने दी।
Happy Father's Day 2021: मेरी मां ही पापा थी। बचपन से मेरे पापा की भूमिका मेरी मां ने निभाई। बच्चों के पापा उनको उंगली पकड़ के चलना सिखाते हैं, फिर थोड़ा बड़े होने पर बच्चों को साइकिल पर बैठाकर खुद पीछे-पीछे भागते हैं। लेकिन ये सब मेरी प्यारी मां ने किया मेरे लिए।
जब मै कुछ महीनों का ही था, पापा नहीं रहे थे। ये मेरे पापा।
मेरी दो बड़ी बहनों ने अपना बचपन भुलाकर मेरी देखभाल की, ध्यान रखा। जब मां ऑफिस चली जाती थी, तो कभी-कभी बहुत अकेलापन लगता था।
मैं जब छोटा था, तो मेरी एक दीदी जिस दिन स्कूल जाती, उस दिन दूसरी दीदी घर पर रूकती। कभी कभार तो मुझे अकेला ही रहना पड़ता था। दूसरे बच्चों के लिए उनके पापा उनको स्कूल छोड़ने जाते, लेने जाते पर मेरे लिए तो मेरी मां ही सबकुछ थी।
बहुत संघर्ष किए मेरी मां ने हम बच्चों के लिए। खाने-पीने से लेकर पढ़ाई तक में कभी कोई कमी नहीं होने दी। मैं मां से जो चीज कह देता मां वो ले आती थी, मेरी हर जिद को मेरी मां पूरा करती थी। जबकि इसके लिए मां को ताने भी लोग सुनाते थे, कि बच्चों की हर जिद नहीं पूरी करनी चाहिए। फिर भी मां तो मां हैं।
कड़ी-चिल्लाती धूप में खुद ऑफिस पैदल आती-जाती, पर हम भाई-बहनों के स्कूल जाने के लिए मां ने स्कूली रिक्शा लगाया था। हमेशा ध्यान रखना कि बच्चे अकेले रहते हैं ,तो कहीं कोई गलत संगत न हो, कहीं कोई बहकाए नहीं। दो बड़ी बहनों का डर तो मां को हमेशा लगा रहता था, क्योंकि इस जमाने की गंदगी को कौन नहीं जानता है।
लेकिन मां ने अच्छी परवरिश करके हम भाई-बहनों को सक्षम बना दिया। फिर धीरे-धीरे समय बीतता गया, और हम बड़े हो गए। बहनों की शादी हो गई। मेरी मां नानी भी बन गई।
पूरी जिंदगी संघर्ष से बिताने के बाद अब मां का बस एक ही सपना था कि मेरी शादी हो जाएं और हम बहू के हाथ से बना खाना खाएं। फिर मेरा परिवार भी पूरा हो जाए। लेकिन समय किसने देखा होता है।
सब कुछ सही चल रहा था, मां जैसी लड़की मेरे लिए चाहती थी, वैसी लड़की भी मिल गई। शादी की तैयारियां भी शुरू हो गई। एक तरफ घर में रंगाई का काम चल रहा था, दूसरी तरफ मैं और मां खरीदारी करने में लग गए।
उस बीच कोरोना महामारी का प्रकोप उतना ज्यादा भयावह भी नहीं था। लेकिन तभी एकदम से कोरोना की दूसरी लहर का एटैक हुआ। जिसने मेरी जिंदगी उलट-पलट दी।
शादी के बस एक महीना ही बचा था, कि मेरी मां कोरोना पॉजिटिव हो गई। ये उस समय की बात है, जब इसी साल 2021 में यूपी के कानपुर, लखनऊ हर दूसरे शहर में त्राही-त्राही मची हुई थी। लोगों को अस्पतालों में बेड नहीं मिल रहे थे, ऑक्सीजन की कमी से लोग दम तोड़ रहे थे।
मैं अपनी मां की रिपोर्ट सुनकर सन्न रह गया। अब क्या होगा। मैने कई अस्पतालों में बात की, डॉक्टरों से संपर्क किया। कहीं कोई मदद नहीं मिल रही था। लेकिन मैं हिम्मत नहीं हारा।
फिर किसी न किसी तरह मां के लिए अच्छा अस्पताल मिल गया। जहां मां को भर्ती कराया। डॉक्टरों से विनती करके रात-दिन मैं मां के पास रहकर उनकी देखभाल की। धीरे-धीरे मां सही होने लगी। तो बोली बेटा शादी कर लो जल्दी। लेकिन उसके 3-4 दिन बाद ही उनकी हालत सीरियस होने लगी। वो सिर्फ एक बात बोलती कि जल्दी शादी कर लो।
उनकी तबीयत सीरियस देख सबने बोला बेटा शादी कर लो, हो सकता है इसी से उनकी तबीयत सही हो जाए। अब ऐसी स्थिति में कौन लड़की होगी, जो शादी के लिए तैयार हो जाएगीं, किसका परिवार होगा जो ऐसा करने देगा।
लेकिन दात देनी पड़ेगी मेरी मां की पसंद की। ऐसा परिवार मेरी मां ने मेरे लिए चुना, जिसकी जितनी तारीफ की जाए, उतनी कम है।
महामारी के इस दौर में जब अपने-अपनों का साथ छोड़ दे रहे थे, उस दौर में इस परिवार ने जिससे रिश्ता अभी जुड़ा भी नहीं था, बराबर से मेरा साथ दिया। आनन-फानन में किसी तरह मंदिर में जाकर शादी हो गई। अस्पताल में मां से आर्शीवाद लिया।
लेकिन दूसरे ही दिन सुबह मेरी मां जोकि मेरे पापा भी थी, हमे हमेशा के लिए छोड़ के चली गई।
बहुत याद आती हो मां तुम। तुम्हारी कमी कोई नहीं पूरी कर सकता है।
मैं मां का बेटा- शुभम मिश्रा।