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ऐसा शापित मंदिर: जहां निकल रही हैं अस्थियां, डरावना है इसका इतिहास
जनपद औरैया अपने आप में एक इतिहास भी समेटे हुए है। यहां पर दुर्दांत दस्युओं के अलावा कई ऐसी कहानियां भी हैं जो आज भी प्रचलित होती दिखाई दे रही हैं।
औरैया: जनपद औरैया अपने आप में एक इतिहास भी समेटे हुए है। यहां पर दुर्दांत दस्युओं के अलावा कई ऐसी कहानियां भी हैं जो आज भी प्रचलित होती दिखाई दे रही हैं। भगवान कृष्ण की पहली पत्नी रुकमणी भी जनपद औरैया के कुदरकोट गांव की थी। हम आपको भगवान कृष्ण की ससुराल के नाम से चर्चित कुदरकोट जो द्वापर में कुण्डिनपुर के बारे में बताते है।
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अलोपा देवी मंदिर के पुजारी ने बताया
अलोपा देवी मंदिर के पुजारी ने बताया कि यहां के राजा भीष्मक के 5 पुत्र और एक पुत्री थी। जिसमें सबसे बड़े पुत्र का नाम रुकम था। अनंतर, रुकमवाहू, रुकंमकेश, रुमाली और सबसे छोटी उनकी पुत्री रुक्मिणी जिसको भगवान कृष्ण से बहुत प्रेम था। इसके विरोध में रुक्मिणी के भाई कृष्ण से उतनी ही घृणा करता था।
बड़े भाई रुकम ने बहन का अपने साले शिशुपाल से विवाह तय कर दिया था। जो चंदेली का राजा था। विवाह की घोषणा होते ही तैयारी भी शुरू हो गई लेकिन रुक्मिणी को ये विवाह मंजूर नहीं था। उन्होंने एक ब्राह्मण के माध्यम से भगवान कृष्ण को चिट्ठी द्वारकापीठ भेजी। सन्देश पढ़ते ही भगवान स्वयं उसी ब्राह्मण के साथ वह पहुंच गए।
इधर शिशुपाल की बारात भी आ चुकी थी। रुक्मिणी भगवान की पूजा में लीन थी। ब्राह्मण द्वारा संदेश सुनते ही वह सीधे गौरी देवी के मंदिर अपनी सखियों के साथ वहां पहुंच गई और गौरी मंदिर पूजन व आशीर्वाद लेने के बाद कृष्ण जी अपने साथ ले गए। कोई भी उनका विरोध नहीं कर सका लेकिन रुक्मिणी के भाई रुकम ने कृष्ण पर हमला बोल दिया। जहां कृष्ण जी उसको अपने रथ में बांध कर अपने साथ ले आये।
जिसे बड़े भैया बलदाऊ ने रुकम को रथ से छुड़वाया
जिसे बड़े भैया बलदाऊ ने रुकम को रथ से छुड़वाया। इसके बाद रुक्मिणी ने ग्रहपूजन कर घर में प्रवेश किया लेकिन इनके बाद से कुण्डिनपुर का गौरी मंदिर शापित हो गया। तब से आज तक कोई भी लड़की का मंदिर से तेल पूजन का कार्यक्रम नहीं हुआ। जो आज अलोपा देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। जहां सब कुछ अच्छा चल रहा था। इसके बाद आये मुग़ल शासन काल में यहां के लोगों पर अत्याचार होने लगा। ज्यादातर मंदिर और मुर्तियां तोड़ दी गईं।
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मुस्लिम राजा ने कुण्डिनपुर की जनता पर तानाशाही करते हुए हाथियों को चढ़वा दिया था। इसके बाद से कुण्डिनपुर से कुदरकोट नाम हो गया। राजा के अत्याचार से वहां की जनता बहुत परेशान थी। आज भी वहां लोगों के अस्थियां निकल रही हैं। मूर्तियां भी खंडित निकल रही है। मंदिर की खास बात है कि मंदिर में शिलालेखों के पूजा की जाती है। बाद में मंदिर में गौरी जी की प्रतिमा लगाई गई है।
प्रवेश चतुर्वेदी
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