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उलझे विचारों में फंसा जीवन चक्र

एक समय आने पर जीवन के प्रति कुछ निर्णय ले लेने चाहिए। हमें एकरसता की कड़ी को तोड़ना होगा। दिशाहीन दौड़ के परिणामों पर विचार करना होगा। दिल की इच्छा जिन विचारों पर भारी पड़ती है उनको मजबूती देनी होगी। सिर्फ जीने के लिए ही नहीं जीना है बल्कि जीवन के हर पल का आनंद लेने के लिए जीना है।

राम केवी
Published on: 11 May 2020 2:37 PM IST
उलझे विचारों में फंसा जीवन चक्र
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चारू मिश्रा

अपने उलझे हुए विचारों को सुलझाने के क्रम में अक्सर ही हम बेहद उलझी स्थिति में पहुंच जाते हैं। दरअसल, मानव मस्तिष्क एक छलनी की तरह काम करता है और अक्सर ही हमारे नजरिये और एक्शन को अलग-अलग कर देता है। लेकिन हमारा मस्तिष्क और दिल अमूमन विरोधाभासी दिशा में काम करते हैं और इसका परिणाम भी हमारे नजरिए के विरोधभास के रूप में सामने आता है। हमारे जीवन में इसका नतीजा निराशा और दुख के रूप में सामने आता है। हमारे क्रियाकलाप आमतौर पर हमारा दृष्टिकोण, हमारे मस्तिष्क व दिल से मिलने वाले संकेतों के मिश्रण से बनता है। वैसे तो दोनों विरोधाभासी होते हैं लेकिन, जब कभी ये दोनों अंग एक दूसरे की बात सुनते भी हैं तो अक्सर परिस्थितियां आड़े आ जाती हैं और उसी अनुरूप हमारे रास्ते तय कर देती हैं।

जीवन की अनिश्चितताएं

एक प्राचीन कहावत है कि 'जिंदगी अप्रत्याशित और अनिश्चितता से भरी हुई होती है।' ये कहावत हमारे जीवन में 99.99 फीसदी सच उतरती है। यही वजह है कि कोई भी ये भविष्यवाणी नहीं कर सकता कि किसी के भी जीवन में आगे क्या होने वाला है।

इस दुनिया में कदम रखने से लेकर अंतिम सांस तक की अवस्थाओं के बीच हमारी जिंदगी अंतहीन स्मृतियों से परिपूर्ण होती है। यही स्मृतियाँ और लम्हे हमारे जीवन को जीने योग्य और संतोषजनक बनाते हैं। लेकिन एक बड़ा सवाल बार बार उठता रहता है। वो यह कि क्या हमारे क्रियाकलाप हमारे दिल की आवाज से मेल खाते हैं? या फिर ये कि ' क्या वो हमारे दिमाग की जोड़तोड़ और तिकड़म की परिणीति मात्र हैं?'

मृगमरीचिका की तलाश

हमारा जीवन एक मृगमरीचिका की भांति है। जो दूर दिखती तो है लेकिन हाथ कभी नही आती। दरअसल, हमारे भीतर आपसी प्रतिस्पर्धा इतना गहरे पैठ कर गई है कि हम शायद ही कभी अपने सपनों के पीछे की अंधी दौड़ के बीच विश्राम लेते हैं। इसकी वजह है कि हम इस दौड़ में पीछे रह जाने के डर से आतंकित रहते हैं और इस क्रम में दौड़ लगाए चले जाते हैं।

कभी कभी हम इस तथ्य को भूल जाते हैं कि जिसे हम अपना सुंदर स्वप्न समझ रहे हैं वो हमारे दिमाग की जोड़तोड़ मात्र है। और ये हमारी बनती बिगड़ती परिस्थितियों के अनुरूप उत्पन्न होती हैं।

एक आदर्श जीवन की हमारी अवधारणा हमारी वास्तविक जिंदगी से कहीं ज्यादा चमकदार लगती है। यहीं हमें रुक कर अपने जीवन के बारे में विचार करना चाहिए। इसी बिंदु पर हमें अपने मूल्यों को आत्मसात करना चाहिए और अपने भौतिकतावादी दृष्टिकोण को बाहर निकाल देना चाहिए।

हमार दिल क्या चाहता है हमें इस पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। मृगमरीचिका सरीखे सपनों का दिशाहीन पीछा करना और एक ढर्रे पर चल रहे सामाजिक नियमों का हर कदम पर पालन करना छोड़ देना चाहिए।

निर्णय लेने का समय

एक समय आने पर जीवन के प्रति कुछ निर्णय ले लेने चाहिए। हमें एकरसता की कड़ी को तोड़ना होगा। दिशाहीन दौड़ के परिणामों पर विचार करना होगा। दिल की इच्छा जिन विचारों पर भारी पड़ती है उनको मजबूती देनी होगी। सिर्फ जीने के लिए ही नहीं जीना है बल्कि जीवन के हर पल का आनंद लेने के लिए जीना है।

एक ऐसे जीवन के लिए जियें जहां आप हर हाल में संतुष्टि पाएं। सिर्फ जीतने के लिए नहीं बल्कि जीने के लिए जियें। किसी सुदूर भविष्य की खुशियों का इंतजार करने की बजाए इस क्षण के लिए हंसने मुस्कराने के लिए जियें। ऐसा जीवन जियें जहां आज का दिन यानी वर्तमान आपके जीवन का सबसे सुंदर दिन बने। जियें अपने लिए।



राम केवी

राम केवी

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