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विधायकों पर खतरा: हर सरकार में होती है हत्या, नहीं हैं सुरक्षित
यूपी देश का ऐसा राज्य है जहां पर हर सरकारों के कार्यकाल में विधायकों की हत्याएं होती रही हो चाहे वह किसी दल की सरकार रही हो।
श्रीधर अग्निहोत्री
लखनऊ। पिछले दो दिनों से लखीमपुर यूपी की राजनीति का केन्द्र बना हुआ है। यहां एक पूर्व विधायक की हत्या के मामले पर विपक्ष और सत्ता पक्ष एक दूसरे पर हमलावर है। विपक्ष जहां सत्ता पक्ष को घेरने का काम कर रहा है, वहीं सत्ता पक्ष विपक्ष को उसके अतीत की याद दिला रहा है।
यूपी की हर सरकार में होती रही विधायकों की हत्याएं
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश के एक पूर्व विधायक की दबंगों ने पीट-पीटकर हत्या कर दी। पूर्व विधायक निर्वेंद्र कुमार मिश्रा लखीमपुर खीरी जिले में तिरकौलिया पढुआ गांव के पास सड़क किनारे विवादित भूमि पर दबंगों द्वारा कब्जा किए जाने से रोकने के लिए गए थे। लेकिन वहां मामला बढ़ गया और हाथापाई हो गई जिसमें वह बुरी तरह से जख्मी हो गए और बाद में उनकी मौत हो गई। अब इसे लेकर प्रदेश की राजनीति गरमाई हुई है।
सबसे ज्यादा हत्याएँ समाजवादी पार्टी की सरकार में
यूपी देश का ऐसा राज्य है जहां पर हर सरकारों के कार्यकाल में विधायकों की हत्याएं होती रही हो चाहे वह किसी दल की सरकार रही हो। यह बात अलग है कि अन्य दलों की तुलना में सबसे ज्यादा हत्याएँ समाजवादी पार्टी की सरकारों में हुई है।
गैरकांग्रेसी सरकारों के दौरान यह सिलसिला ज्यादा बढा
यह सिलसिला वैसे तो कांग्रेस की सरकारों में भी रहा लेकिन गैरकांग्रेसी सरकारों के दौरान यह सिलसिला ज्यादा बढ गया। भाजपा नेता कल्याण सिंह के नेतृत्व वाली 1991 की सरकार में चार जनप्रतिनिधियों की हत्याएं हुई। इस सरकार में 1991 में पूर्व राज्यमंत्री शारदा प्रसाद रावत और भोपाल सिंह तथा 1992 में विधायक महेन्द्र सिंह भाटी और 1999 में एमएलसी भगवान बक्श सिंह की हत्या कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री रहते हुई।
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रामप्रकाश गुप्त और राजनाथ सिंह के कार्यकाल में भी हत्या
भाजपा के मुख्यमंत्री रामप्रकाश गुप्त के कार्यकाल में भी वर्ष 2000 में विधायक निर्भयपाल शर्मा की और फिर राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल में 2001 में कानपुर में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री श्रमबोर्ड के अध्यक्ष संतोष शुक्ला की थाने में घुसकर हत्या कर दी गई थी।
अन्य दलों की सरकारों की तुलना की जाए तो समाजवादी पार्टी की सरकार में सबसे ज्यादा राजनीतिक हमले और हत्याए हुई। इलाहाबाद मे 2005 में बसपा विधायक राजूपाल, और इसी साल भाजपा के विधायक कृष्णानंद राय, वर्ष 2005 में विधानपरिषद सदस्य अजीत सिंह की हत्या हुई। जबकि पूर्व सांसद लक्ष्मीशंकर मणि त्रिपाठी, पूर्व विधायक हरदेव रावत, मलखान सिंह यादव, रामदेव मिश्र की हत्याएं भी सपा के शासनकाल में हुई।
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मायावती के नेतृत्व वाली जब दूसरी बार प्रदेश की बसपा सरकार बनी तो वर्ष 1997 में पूर्व विधायक बीरेन्द्र प्रताप सिंह की राजधानी लखनऊ में तथा 2005 में पूर्व मंत्री लक्ष्मीशंकर यादव की हत्या हुई। राष्ट्रपति शासन के दौरान वर्ष 1996 में ओमप्रकाश पासवान, और उसी साल जवाहर सिंह यादव, वर्ष 1997 में पूर्व मंत्री ब्रम्हदत्त द्विवेदी तथा वर्ष 2002 में विधायक मंजूर अहमद की हत्या हुई।
मायावती सरकार में बीजू पटनायक और कपिल देव यादव की हत्या
बेहतर कानून व्यवस्था का दावा करने वाली पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की सरकार में तत्कालीन कैबिनेट मंत्री नन्दगोपाल गुप्त उर्फ नन्दी के इलाहाबाद स्थित आवास पर दिन दहाडे जानलेवा हमला हुआ था। बसपा सरकार के दौरान ही 2010 में सपा के विधायकों बीजू पटनायक और कपिल देव यादव की हत्याएं हुई। हर दल की सरकारों में जनप्रतिनिधियों की हत्याएं तक हुई है। यहां तक कि राष्ट्रपति शासन के दौरान भी हत्याएं हो चुकी हैं।
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