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मोदी का सम्मान ठुकरा दिया...आखिर कौन है लिसिप्रिया कंगुजम

लिसिप्रिया कंगुजम का जन्म बशीखोंग, मणिपुर में हुआ है और वह के.के. सिंह और बिदारानी देवी कंगुजम ओंगबी की सबसे बड़ी बेटी है। लिसिप्रिया देश के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर से ताल्लुक रखने वाली लिसिप्रिया पर्यावरण के मुद्दे सक्रिय है और अंतरराष्ट्रीय मंच से अपनी आवाज उठा चुकी है।

राम केवी
Published on: 9 March 2020 1:20 PM IST
मोदी का सम्मान ठुकरा दिया...आखिर कौन है लिसिप्रिया कंगुजम
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विराट कृष्ण

लिसिप्रिया कंगुजम एक भारतीय बाल पर्यावरण कार्यकर्ता है। लिसिप्रिया को जानने वाले चकित रह जाते हैं कि कैसे 2 अक्टूबर 2011 को जन्मी यह बच्ची मात्र छह साल की उम्र से अपने मिशन में सक्रिय हो गयी और 2019 में मात्र आठ साल की उम्र में उसे डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम चिल्ड्रन अवार्ड, अंतरराष्ट्रीय बाल शांति पुरस्कार और इंडिया पीस प्राइज़ जैसा बड़ा सम्मान मिल गया।

सबसे कम उम्र की कार्यकर्ता

2019 में लिसिप्रिया को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम में ग्रेटा थनबर्ग और जेमी मार्गोलिन के साथ एक विशेष पर्यावरण कार्यकर्ता के रूप में चुना गया था। इंडिया टाइम्स ने उन्हें भारत की सबसे कम उम्र की जलवायु कार्यकर्ता का दर्जा दिया। लिसिप्रिया कंगुजम का जन्म बशीखोंग, मणिपुर में हुआ है और वह के.के. सिंह और बिदारानी देवी कंगुजम ओंगबी की सबसे बड़ी बेटी है। लिसिप्रिया देश के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर से ताल्लुक रखने वाली लिसिप्रिया पर्यावरण के मुद्दे सक्रिय है और अंतरराष्ट्रीय मंच से अपनी आवाज उठा चुकी है।

छह साल की उम्र से सक्रिय

अपनी चिंताओं से दुनिया को झकझोरने वाली लिसिप्रिया कंगुजम नाम की यह नन्ही पर्यावरण कार्यकर्ता स्पेन की राजधानी मैड्रिड में सीओपी 25 जलवायु शिखर सम्मेलन में वैश्विक नेताओं से धरती और उस जैसे मासूमों के भविष्य को बचाने के लिए तुरंत कदम उठाने की गुहार लगा चुकी है।

स्पेनिश अखबारों ने जब इस बेटी को भारतीय 'ग्रेटा' बताते हुए जमकर तारीफ की तो लिसिप्रिया को खुशी नहीं हुई उसने कहा कि उसकी अलग पहचान है। स्वीडन की 16 साल की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने सितंबर 2018 में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र में वैश्विक नेताओं को झकझोरा था। लिसिप्रिया के पिता केके सिंह ने कहा, 'मेरी बेटी की बातों को सुनकर कोई यह अनुमान नहीं कर पाया कि वह महज आठ साल की है।'

21 देशों का दौरा कर चुकी है

लिसिप्रिया अब तक 21 देशों का दौरा कर चुकी है। जलवायु परिवर्तन के मसले पर अनेकों सम्मेलनों में जा चुकी है। इन सम्मेलनों से उसकी खुद की जिंदगी भी बदलती जा रही है। मात्र छह साल की उम्र में लिसिप्रिया को 2018 में मंगोलिया में आपदा मसले पर हुए मंत्री स्तरीय शिखर सम्मेलन में बोलने का अवसर मिला था। इस सम्मेलन ने उसकी जिंदगी बदल दी। आपदाओं के चलते जब बच्चों को अपने माता-पिता से बिछड़ते देखती है तो रोने लगती है।

लगा चुकी है गुहार

मंगोलिया से लौटने के बाद लिसिप्रिया ने पिता की मदद से 'द चाइल्ड मूवमेंट' नामक संगठन बनाया। वह इस संगठन के जरिये वैश्विक नेताओं से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कदम उठाने की अपील करती है इसके जरिये उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया था कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कानून बनाएं। यही उसकी नाराजगी की वजह है वह कहती है मेरा सम्मान न करें मै जो कह रही हैं वह काम करें। लिसिप्रिया आमतौर पर अपने अभियान के चलते अपने शहर से बाहर रहती है। इसके चलते वह स्कूल भी नहीं जा पा रही थी। इसी कारण उसने पिछले साल फरवरी में स्कूल छोड़ दिया।

लिसिप्रिया की साफगोई

लिसिप्रिया का कहना है, "प्रिय नरेंद्र मोदी जी, अगर आप मेरी आवाज़ नहीं सुनेंगे तो कृपया मुझे सेलिब्रेट मत कीजिए। अपनी पहल #SheInspiresUs के तहत मुझे कई प्रेरणादायी महिलाओं में शामिल करने के लिए शुक्रिया। कई बार सोचने के बाद मैंने यह सम्मान ठुकराने का फ़ैसला किया है। जय हिंद!"

दो टूक जवाब

कांग्रेस और अन्य पार्टियों के समर्थन पर भी लिसिप्रिया ने लिखा, "प्रिय नेताओं और राजनीतिक पार्टियों, मुझे इसके लिए तारीफ़ नहीं चाहिए। इसके बजाय अपने सांसदों से कहिए कि मौजूदा संसद सत्र में मेरी आवाज़ उठाएं। मुझे अपने राजनीतिक लक्ष्य और प्रोपेगैंडा साधने के लिए कभी इस्तेमाल मत कीजिएगा. मैं आपके पक्ष में नहीं हूं।"

लिसिप्रिया ने ट्विटर पर ख़ुद को 'एक बेघर बाल पर्यावरण कार्यकर्ता' बताया है।



राम केवी

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