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रहस्यमयी खजाना ! चमका देगा किस्मत, बस विन्ध्य की पहाड़ियों में जाएं एक बार
आयुर्वेदिक पद्धति का इलाज बहुत चमत्कारी सिद्ध होता है। डॉ प्रियंका वर्मा कहती हैं कि आयुर्वेदिक औषधि ज्यादातर जंगलो, पहाड़ो पर पाई जाती है। ऐसी तमाम जड़ी बूटियां इस पृथ्वी पर मौजूद हैं। जिनकी इंसान कल्पना भी नहीं कर सकता है।
बृजेन्द्र दुबे
मीरजापुर। विन्ध्य पर्वत अपनी अलौकिक शक्तियों के लिए तो विख्यात है। चमत्कार और जीवनदायिनी होने के नाते मशहूर सिद्धपीठ के विन्ध्य पर्वत के जंगलों के कण-कण में रहस्यों का भंडार छुपा है। हिमालय पर्वत पर भारी मात्रा में दिव्य औषधियां पायी जाती हैं। हिमालय के बाद विन्ध्य पर्वत पर औषधियों की अनेकों प्रजातियों का भंडार छुपा है।
जिले के बरकछा और मड़िहान की घनघोर जंगलों की पहाड़ियों पर ये औषधियां पायी जाती है। जिनका इस्तेमाल आयुर्वेद, होम्योपैथी और यूनानी चिकित्सा पद्धति में किया जाता है। कई बार ये औषधियां हम लोगो के सामने पड़ी रहती हैं लेकिन जानकारी नही होने पर हम इन्हें नष्ट कर देते हैं। गांव के देसी वैद्य हकीम अपनी परंपरा में इन नुस्खों का प्रयोग सदियो से करते आ रहे हैं लेकिन अब इनकी संख्या धीरे धीरे काफी घट गई है।
ये है चमत्कारी पौधा जो रोगों से दिलाता है निजात
विंध्य पर्वत पर पाई जाने वाली एक चमत्कारी औषधि है है काली दुधी। इसे कुछ लोग सरिव भेड़ व दीर्घ मूला के नाम से भी जानते है। यह विंध्य पर्वत के बरकछा की पहाड़ियों के जंगलों में पायी जाती है। इस औषधि का मसूड़ों से खून बहने, गठिया ऐंठन, खांसी, पेचिश, खसरा, रतौंधी, कटने और तपेदिक के कारण होने वाले दर्द से राहत के लिए उपयोग किया जाता है।
इसकी पत्तियों और तने का काढ़ा बुखार और त्वचा के फटने में उपयोग किया जाता है। इसकी पत्तियों को तेल में उबालने के बाद सिरदर्द में लगाया जाता है। इसकी जड़ का उपयोग ल्यूकोरिया, गठिया, त्वचा रोग और मूत्रनली के पथरी में किया जाता है। मधुमेह में इसकी जड़ों के चूर्ण का उपयोग किया जाता है। इसकी जड़ों के साथ अन्य जड़ी-बूटियों का काढ़ा पुरानी त्वचा रोगों, सिफलिस, एलिफेंटियासिस और अंगों में संवेदना की कमी में लाभदायक होता है।
जंगल जंगल घूमते थे वैद्य
जब तक एलोपैथी चिकित्सा पद्धति का प्रचार प्रसार नहीं हुआ था गांव में प्राकृतिक वातावरण के बीच में रहने वाले वैद्य हकीम जंगलों में जड़ी बूटियां ढूंढने के घूमा करते थे। वैद्यकी करने वाले को ज्योतिष का भी ज्ञान होता था वह जानता था कि किस समय किस औषधि को तोड़कर लाने से वह अपना पूरा असर दिखाती है। लेकिन आज कल विदेशों से यहां पर लोग आकर ग्रामीणों से सस्ते दाम पर इन जड़ी बूटियों को खरीद कर ले जा रहे हैं और विदेशों में इन पर रिसर्च करके एलोपैथिक दवाओं में इनका इस्तेमाल कर रहे हैं।
इसका मूल कारण यह है कि इन औषधियों का व्यक्ति के शरीर पर कोई भी विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता। वस्तुतः आयुर्वेद में हर रोग की अचूक दवा है। लेकिन इसके लिए नाड़ी विशेषज्ञ होना अनिवार्य है। नाड़ी के अनुसार दी गयी आयुर्वेद औषधि रोग पर तत्काल अपना प्रभाव दिखाती है।
समय के अंदर रोग से मुक्ति मिल जाती है
उत्तरांचल आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज देहरादून की आयुर्वेद की डॉक्टर प्रियंका वर्मा ने बताया कि हृदय रोग ,पेट की पथरी, त्वचा रोग, दीमाग रोग , साटिका, गठिया, जोड़ो का दर्द , दांत का रोग , शरीर के अंदर या बार कोई गंभीर बीमारी है तो उसका इलाज आयुर्वेद से सम्भव है। किसी अच्छे आयुर्वेद के वैद्य या डॉक्टर से परामर्श करके उसका इलाज किया जाना सम्भव है।
इलाज के दौरान जो भी सतर्कता परहेज बरतने को वैद्य के द्वारा बताया जाता है। उसका नियम से पालन करना चाहिए। आयुर्वेदिक दवा में परहेज करना अति आवश्यक है। जिस कारण बड़ा से बड़ा रोग जड़ से आयुर्वेदिक पद्धति में इलाज में खत्म हो जाता हो जाता है। आयुर्वेदिक पद्धति का इलाज बहुत चमत्कारी सिद्ध होता है। डॉ प्रियंका वर्मा कहती हैं कि आयुर्वेदिक औषधि ज्यादातर जंगलो, पहाड़ो पर पाई जाती है। ऐसी तमाम जड़ी बूटियां इस पृथ्वी पर मौजूद हैं। जिनकी इंसान कल्पना भी नहीं कर सकता है।