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कलाकार का भी धर्मः पर मजाक न इनसे हो न उनसे, नजरिया एक रहे

खास बात यह है कि इस्लाम धर्म को मानने वाले नवाजुद्दीन सिद्दीकी किसी दरगाह में जाकर शांत और भाव- विभोर हो सकते हैं तो अन्य धर्मों के मानने वाले जब ऐसा करें तो उसका मजाक क्यों कराया जाए। क्यों नहीं नवाजुद्दीन की तरह उसकी भावना और श्रद्धा को भी दूसरे लोगों से सम्मान मिले।

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Published on: 2 Oct 2020 1:01 PM GMT
कलाकार का भी धर्मः पर मजाक न इनसे हो न उनसे, नजरिया एक रहे
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Nawazuddin's Sufiana style

योगेश मिश्र

इस चित्र में बॉलीवुड के फिल्म अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीक़ी एक दरगाह में बड़े इत्मिनान से भाव- विभोर हो कर बैठे हैं। पीछे दरगाह की दीवारों पर क़ुरान की आयतें पढ़ी जा सकती हैं। हालीवुड व बालीवुड दोनों में उनका बड़ा नाम है। ब्लैक फ़्राइडे, न्यूयार्क, पीपली लाइव, कहानी,माँझी: द माउंटेन मैन, पतंग: द काइट, ठाकरे, जैसी अनगिनत नामचीन फ़िल्में देने वाले अभिनेता। कॉन फ़िल्म फ़ेस्टिवल में तीन और एक साथ चार फ़िल्मों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित हुए है। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में बुढ़ाना गाँव के रहने वाले है।

धर्म अधर्म में न बाँटें

इनके बारे में बताना इसलिये ज़रूरी था ताकि हमारे आप जैसे तमाम लोग इसे हिंदू- मुसलमान में उलझा न दें। इसे धर्म-अधर्म में बाँट न दें। इसे सेकुलर और नान सेकुलर में बाँट कर देखने न लगें। नान सेकुलर की जगह शायद तमाम लोगों को साम्प्रदायिक शब्द सूट करे। इसलिए यही लिख देता हूँ। क्योंकि यह शब्द उन लोगों को सूट करता है। जिनकी बात की जायेगी।

क्या आपमें से कभी किसी ने तापसी पन्नू, स्वरा भास्कर, सोनाक्षी सिन्हा, नेहा धूपिया, अनुराग कश्यप, मनोज बाजपेई, राहुल बोस, महेश भट्ट, करन जौहर, दीपिका पादुकोण आदि में से किसी को अपने धर्म स्थल पर इस तरह इत्मिनान से भाव -विभोर मुद्रा में तन्मय होकर बैठे देखा है।

विरोध के लिए विरोध नहीं

ज़रूर नहीं। क्यों इनको हिंदू धर्म, सनातन धर्म से कोई लेना देना नहीं है। लोगों ने इन्हें एनआरसी, नोटबन्दी, कठुआ कांड आदि मसलों पर कलाकार नहीं एक्टिविस्ट बने देखा होगा। क्या इसका विरोध किया जाना चाहिए । विरोध तो वैसे भी लोकतंत्र का श्रंगार है। पर विरोध के लिए विरोध नहीं होना चाहिए ।

हालाँकि हिंदू व सनातन धर्म के फलक काफ़ी खुले हुए व विस्तृत है। इनमें अनेक तरह के देवी, देवता हैं। अनेक तरह की पूजा पद्धति है। इसमें सगुण और निर्गुण दोनों हैं।यहाँ जूठे बेर खिलाने वाली शबरी भी भगवान की कृपा पात्र बन बैठती है।

दो मुट्ठी चावल लेकर पहुँचने वाले सुदामा भी असीम कृपा से फलीभूत हो जाते हैं। ऐसे में आपको जो सूट करे आप उसे चुन सकते है। लेकिन इतना भर ही नहीं । ध्यान रहे इसके अलावा भी हमारे यहाँ धर्म है। पिता का,बेटी का, माँ का, बेटे का, पति का, राष्ट्रधर्म, आप जो अभी काम कर रहे हैं उसका धर्म आदि इत्यादि । जिसे रोल भी कह सकते हैं।

कला के धर्म के साथ

ये लोग अपने को कलाकार कहते हैं। कला का भी हमारे यहाँ धर्म होता है। लेकिन खुद को कलाकार और प्रबुद्ध कहने वाले ये भूल जाते हैं कि चाहे तानसेन हों या बीथोवन , बिस्मिल्ला खां हों या रविशंकर कोई भी कलाकार या तो सभी धर्मों के पक्ष में रहता है और कला के धर्म के साथ जीता है अथवा कला को ही अपने धर्म को समर्पित कर धर्म के साथ जीता है।

दुनिया की कोई भी उपासना पद्धति मानवता की क़ीमत पर पूजा पाठ या साधना का रास्ता बताती है। वह धर्म है। विज्ञान का धर्म से सींधी रिश्ता है। धर्म के नाम पर विज्ञान का प्रतिरोध और विज्ञान के नाम पर धर्म की अवमानना ये दोनों अज्ञानता और जड़ता की मूल है।

कलाकार के धर्म व कला के धर्म के बीच का रिश्ता ही उसे लोकप्रिय बनाता है। उसे कर्णप्रिय बनाता है। उसे नयनाभिराम बनाता है। लेकिन हमारे यहाँ के चंद चुनिंदा कलाकारों को कला के बूते से कहीं ज़्यादा विवादों के ज़रिये फलक पर छाये रहना आसान लगता है।

निरपेक्ष कुछ नहीं

इसके लिए वे धर्मनिरपेक्ष हो जाते हैं। जबकि सच्चाई यह है कि निरपेक्ष कुछ नहीं होता है। सब कुछ सापेक्ष होता है। ये लोग अपने लाभ के लिए कमनिष्ठ बने हैं। कमनिष्ठ की एक यह भी विशेषता होती है कि उसे हमेशा एक दुश्मन चाहिए ही होता है।

रोमांटिक कर्मनिष्ठ की गिरफ़्त में रहने वाले लोगों ने धर्म को अपना दुश्मन मान लिया है। लेकिन एक विशेष धर्म को। हिंदू धर्म को । जबकि हिंदू धर्म का फलक बहुत बड़ा है, बहुत खुला हुआ है। मन चाहे देवता आप पा भी सकते हैं, गढ़ भी सकते हैं। पर क़ुरान में संशोधन की बात सोची भी तो फ़तवा आ जायेगा ।

ईसाई धर्म के सिद्धान्त और संगठन में भेद है। इस्लाम में शिया- सुन्नी का बंटवारा अत्यंत व्यापक और स्पष्ट है। बौद्ध धर्म महायान और हीनयान में बंट गया। जैन धर्म श्वेतांबर और दिगंबर में बंटा हुआ है।बँटवारा हिंदू धर्म , सनातन धर्म में भी है।

हिन्दू धर्म का गुण

सहिष्णुता आम तौर पर हिन्दू धर्म का ही गुण है। सभी धर्मों में किसी न किसी समय उदारवादियों और कट्टरपंथियों की लड़ाई हुई है। हिन्दू धर्म में कभी एक की जीत होती है। कभी दूसरे की ।विवाद आज तक हल नहीं हुआ । लेकिन रक्तपात भी नहीं हुआ हुआ।

जबकि दूसरे धर्मों में रक्तपात भी हुआ और झगड़े का समाधान भी नहीं हुआ। इसके बावजूद हिंदू धर्म और उसके अनुयायियों की कटु निंदा करना, कितना जायज हो सकता है।

खास बात यह है कि इस्लाम धर्म को मानने वाले नवाजुद्दीन सिद्दीकी किसी दरगाह में जाकर शांत और भाव- विभोर हो सकते हैं तो अन्य धर्मों के मानने वाले जब ऐसा करें तो उसका मजाक क्यों कराया जाए। क्यों नहीं नवाजुद्दीन की तरह उसकी भावना और श्रद्धा को भी दूसरे लोगों से सम्मान मिले।

( लेखक न्यूज़ ट्रैक/अपना भारत के संपादक है।)

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