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माँ का आँचल उम्र का नहीं है ग़ुलाम
वो बहुत अभागे होते हे जिन्हें माँ का आँचल नसीब नही होता है| माँ एक नही अनेक विधाओं से परिपूर्ण होती है| उसकी डाट में प्यार भी होता है और सबक़ भी ।
लखनऊ: कहते है माँ कि ममता व त्याग का क़र्ज़ कोई नही चुका सकता पर उसके लिए उसका शुक्रिया अदा किया जा सकता है |इस शुक्रिया अदा करने के लिए मदर्स डे(Mother's Day) के रूप में हर साल मई माह के दूसरे हफ्ते के संडे को मनाया जाता है। इस साल यह खास दिन 9 मई दिन रविवार को मनाया जाएगा।
आइए जानते हैं सबसे पहले इस खास दिन को मनाने की शुरूआत कहां से और क्यों हुई।
मई 1914 को अमेरिकी प्रेसिडेंट वुड्रो विल्सन(American President Woodrow Wilson) ने एक कानून पारित किया था। इस कानून में लिखा था कि मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाएगा।। इसी के बाद से भारत समेत कई देशों में ये खास दिन मई के दूसरे रविवार को मनाया जाने लगा।जबकि कई देश और लोग अपनी-अपनी मान्यताओं के अनुसार अलग-अलग तिथियों पर इस मदर्स डे मनाते हैं.इस वर्ष 9 मई हैं|
अमेरिका में एना जार्विस नाम की एक महिला थी| वह अपनी मां की मृत्यु के पहले खुशियों और इच्छाओं को सेलिब्रेट करना चाहती थी| उन्होंने अपनी मां की मृत्यु के तीन साल बाद 1908 में एक स्मारक बनाया| वेस्ट वर्जीनिया के सेंट एंड्रयूज मेथोडिस्ट चर्च में यह स्मारक बनाया गया|
तब से संयुक्त राज्य अमेरिका में मदर्स डे को छुट्टी के रूप में मान्यता देने के लिए एक अभियान शुरू किया गया| आपकों बता दें कि मई के दूसरे रविवार को मदर्स डे के रूप में मनाया जाने के लिए 1941 में एक बिल पास किया गया था, जिसे पहले राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन ने अमेरिका में पारित किया था| बाद में इस परंपरा को कई और देशों ने निभाया है|
क्या माँ का त्याग एक दिन का नहीं मां के लिए कोई एक दिन नहीं होना चाहिये ,भारत में तो जन्म से लेकर निधन तक ना तो माँ आँचल छूटता है ना माँ के प्यार का सुखद अहसास वो अलग बात है कुछ देशों को छोड़कर अन्य देशों जेसे ( अमेरिका और यूरोप )की परम्परा व रहन सहन में फ़र्क़ है|
इसलिए एक खास दिन को मां के नाम निश्चित कर दिया गया है। ।माँ अपनी हर तकलीफें एक तरफ रख कर बच्चों की हर खुशी का ध्यान रखने वाली मां के साथ इस खास दिन को बिताते व मानते है । मदर्स डे लोगों को अपनी भावनाओं को जाहिर करने का मौका देता है।
भारत में भी पश्चिम देशों का असर व काम का व्यवहार में बदलाव आ गया है । माँ का योगदान हर किसी के जीवन में होता है| उसे नकार नही सकते फिर चाहे माँ को ऑफिस और घर दोनों जगह में संतुलन क्यों ना बैठना पड़ा हो, मां ने कभी भी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ा है।
वो बहुत अभागे होते हे जिन्हें माँ का आँचल नसीब नही होता है| माँ एक नही अनेक विधाओं से परिपूर्ण होती है| उसकी डाट में प्यार भी होता है और सबक़ भी। इस को जाने माने शायर मुन्नबर राना जी ने कहा है-
इस तरह वो मेरे गुनाहों को धो देते
माँ बहुत ग़ुस्से में होती है तो रो देती है
भारत में अनादि काल से माँ की महिमा का उल्लेख है| भगवान कृष्ण की माँ की बात हो या कोरोना महामारी में माँ का बच्चे को छाती से लगा कर इलाज के लिए भागना हो । ज़रूरत पर माँ ही अपना अंगदान करती हैं| भारतीय अंगित फ़िल्म है उनमें माँ के अदभुत शक्ति का चित्रण किया है|
मुझे याद है जितनी बार (मदर इंडिया ) देखो कम है ।आज भी 90 % हम भारतीय ख़ुश नसीब हे जो माँ बाप के साथ रहते है ।यहाँ दीवार फ़िल्म के एक वाक्य (तेरे पास क्या हे भाई मेरे पास माँ हे माँ )ने साबित कर दिया माँ से बड़ी कोइ पूँजी नही है|
हमारे देश में भी रोज़गार के लिए अपने शहर और माँ को छोड़ कर परदेस जाना पड़ता है तो इस मदर्स डे के खास मौके पर अपनी मां के साथ समय बिताएं, वो सब करें जो व्यस्त होने के कारण आप नहीं कर पाते और मां को खास तोहफे देकर जरूर खुश करें।ध्यान रहे हर सम्भव हो माँ को अपने साथ रखे या साथ रहे ।हमेशा भगवान से माँगे मुझे माँ का साया नसीब हो फिर राना साहब का शेर-
किसी के हिस्से में मकान किसी के हिस्से में दुकाँ आयी
में घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आयी।
हमारे शास्त्र में माँ की महिमा अनंत लिखी है माँ सो परेशानी की एक दवा है ।माँ को परिभाषित करना धमचर्य्यो के लिए असंभव है अंत में
माँ तुझे प्रणाम