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Black Death: सात सौ साल पुराना लॉकडाउन, काली मौत ने झटके में खत्म कर दी थी आधी आबादी

Black Death: आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि पूरी दुनिया को अबतक के इतिहास में जिस बीमारी ने सबसे अधिक प्रभावित किया है उसे दुनिया ब्लैक डेथ या काली मौत के नाम से जानती है। यह वह खतरनाक बीमारी थी जिसने पूरी दुनिया की आधी आबादी साफ कर दी थी। इस बीमारी के कारण उस समय दुनिया में करोड़ों लोग मर गए थे।

Ramkrishna Vajpei
Published on: 21 Dec 2022 2:15 PM IST (Updated on: 21 Dec 2022 2:17 PM IST)
Black Death: सात सौ साल पुराना लॉकडाउन, काली मौत ने झटके में खत्म कर दी थी आधी आबादी
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Black Death: भारत सहित पूरा विश्व आज चीन से निकले कोरोना वायरस को लेकर परेशान है। सभी को थोड़ा कम या ज्यादा जन धन की हानि उठानी पड़ रही है। गनीमत ये है कि आज साइंस इतनी ज्यादा तरक्की कर गई है कि कोई इसे दुष्ट आत्माओं का प्रकोप बताने का साहस नहीं कर रहा है। न ही ये वायरस किसी देखने मात्र से फैलने का दावा किया जा रहा है। लेकिन क्या आपको पता है कि आज से छह सौ साल पहले भी दुनिया ने एक लॉकडाउन झेला था, तब भी चीन से खतरनाक वायरस आया था। पूरी दुनिया में फैला था जिसने पूरी दुनिया की आधी आबादी साफ कर दी थी।

आपने प्लेग, चेचक, हैजा आदि नाम सुने होंगे। निसंदेह इन खतरनाक बीमारियों द्वारा मचाई गई तबाही के आधार पर ही इन्हें महामारी घोषित किया गया होगा।

लेकिन आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि पूरी दुनिया को अबतक के इतिहास में जिस बीमारी ने सबसे अधिक प्रभावित किया है उसे दुनिया ब्लैक डेथ या काली मौत के नाम से जानती है। यह वह खतरनाक बीमारी थी जिसने पूरी दुनिया की आधी आबादी साफ कर दी थी। इस बीमारी के कारण उस समय दुनिया में करोड़ों लोग मर गए थे।

काली मौत

काली मौत इतिहास का वो काला अध्याय है, जिसमें 7.5 से 20 करोड़ लोगों की मौत हो गई थी। इसकी शुरूआत 1346 से 1353 में हुई। यूरोप में 2010 और 2011 में इससे जुड़े प्रकाशन से पता चलता है कि यह एक प्रकार का वायरस था जो प्लेग के अलग अलग रूप में लोगों के सामने आया।

यूरोप के व्यापारियों के जहाज के सहारे कुछ काले चूहे भी इस बीमारी से ग्रसित हो कर आ गए और यह मध्य एशिया तक में फैल गए। इस के कारण यूरोप में कुल आबादी के 30–60% लोगों की मौत हो गई थी। काली मौत उस समय की सबसे खतरनाक बीमारी थी ही जिसका इलाज उस समय नामुमकिन था लेकिन सबसे अधिक जानें लेने के कारण ये अब तक की सबसे खतरनाक बीमारी है।

अंतिम संस्कार तक नहीं कर पाते थे लोग

इस बीमारी से इतनी तेजी से मौतें होती थीं कि लोग अंतिम संस्कार तक नहीं कर पाते थे। लोग अपने पीछे लाशों के ढेर छोड़ कर भागते थे और जहां जाते थे लाशों के ढेर लगा देते थे। खौफ ऐसा था कि तमाम लोगों को लगने लगा था कि ईश्वर लोगों को उनके पापों की सजा दे रहा है। इसी बीच अफवाहों के चलते कुछ लोग यहूदियों को इसके लिए जिम्मेदार मानने लगे और हजारों यहूदियों की हत्या कर दी गई।

कुछ लोग इसे ईश्वरीय दंड मानकर पश्चाताप करने के लिए खुद को चमड़े की पट्टियों से मारने लगे थे। ये लोग 33 दिनों तक हर दिन तीन बार खुद को यह सजा देते थे। इसी तरह कुछ लोग कहते थे ये दुष्ट आत्माओं का शाप है। जब पीड़ित व्यक्ति दूसरे की आंख में देखता है तो उसे भी ये बीमारी हो जाती है।

खास बात यह है कि ये बीमारी योरोप में 1341 से 1351 के बीच फैली थी। और उस समय भी इस बीमारी का स्त्रोत चीन को ही बताया गया था।

कैसे फैला काली मौत का साया

तेरहवी सदी के मध्य में अक्टूबर 1347 में एशिया से आए 12 जहाजों ने सिसली के बंदरगाह में लंगर डाला तो वहां आए लोगों ने यह देखा कि उसमें सवार ज्यादातर लोग मरे हुए थे। जो बचे भी थे वे बेहद बीमार थे। उनके शरीर पर काले पड़ चुके फफोले थे जिससे मवाद बह रहा था। वहां की सरकार ने इन जहाजों को वहां से हटाए जाने के आदेश दिए पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उनके कारण यह बीमारी इतनी तेजी से फैली कि पांच सालों में योरोप की एक-तिहाई जनसंख्या ही मर गई। कहते हैं यह बीमारी चीन से भारत, पर्शिया, सीरिया व इजिप्ट होते हुए यूरोप तक पहुंची थी।

क्या थे इसके लक्षण

इस बीमारी में पहले बुखार होता था, ठंड लगती थी, उल्टी होती थी, हैजा होता था और शरीर में गजब का असहनीय दर्द होने के साथ शरीर में फफोले पड़ जाते थे। रात भर में इससे प्रभावित रोगी मर जाता था। इसका वायरस यर्सीनिया पेस्टिस हवा के जरिए दूसरों तक पहुंचा था। यह एक तरह का प्लेग था।

जब इसके कारण चूहें मरते तो उनकी लाशों पर मक्ख्यिां अपने अंडे दे देती थीं व उनसे पैदा होने वाली मक्ख्यिां व वहां आने वाली मक्ख्यिों के पंजों में फंसे इसके वायरस स्वस्थ लोगों तक पहुंच जाते थे। यह रोग वहां से फ्रांस उत्तरी अफ्रीका, रोम, लंदन तक पहुंचा।

भयानक आतंक

इस बीमारी का आतंक इतना जबरदस्त था कि डाक्टरों ने घबरा कर मरीजों को देखना तक बंद कर दिया। पादरी अंतिम संस्कार में जाने से बचने लगे। दुकानें रेस्तरां बंद कर दिए गए। इंसान ही नहीं गाय भैस, भेड़ बकरी, सुअर व मुर्गे तक इस रोग से प्रभावित हो गए व खाने की जबरदस्त कमी हो गई थी। लोग अपने बीमार लोगों को छोड़ कर अपनी जान बचाने के लिए भाग गए थे। लेकिन लगभग एक साल तक कहर बरपाने के अंत तक यह रोग अपने आप समाप्त हो गया।

आज कोरोना आया है इसका भी अंत करीब है। लेकिन उन्नत संसाधन होते हुए भी फिलहाल इससे बचाव का एक ही उपाय है लॉकडाउन।

राम केवी

राम केवी

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