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'सुशांत सिंह राजपूत जैसे मेरे सामने खड़ा था...'
14 जून की दोपहर मेरे लिए काफ़ी भयानक रही। मैं अपने संस्थान के ट्विटर हैंडल पर ख़बरें पोस्ट कर रहा था कि अचानक मेरी नज़र #sushant पर पड़ी।
शाश्वत मिश्रा
इस लेख को लिखकर मैं अपने मन में चल रहे भूचाल को कम करने की कोशिश कर रहा हूँ।
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14 जून की दोपहर मेरे लिए काफ़ी भयानक रही। मैं अपने संस्थान के ट्विटर हैंडल पर ख़बरें पोस्ट कर रहा था कि अचानक मेरी नज़र #sushant पर पड़ी। मैंने सोचा ये क्यों ट्रेंड कर रहा है? फिर ये कहकर जाने दिया कि कुछ बयान दिया होगा या कोई नई मूवी आने वाली होगी। पहले ख़बरें अपलोड कर दूँ, फिर देखता हूँ क्यों ट्रेंड कर रहा है।
मुश्किल से एक-आधा मिनट बीता होगा कि नोटिफिकेशन कॉलम में ख़बर की हेडिंग दिखी; ''बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत ने अपने घर में की आत्महत्या..."
मैं सन्न रह गया। कुछ देर के लिए ये दुनिया मेरे ज़ेहन से उतर गई। मैं किसी दूसरे जहां में चला गया। मेरा कोई उससे लगाव नहीं था। न ही मैंने उसकी कोई मूवी देखी थी (छिछोरे को छोड़कर)। न ही वो मेरा पसंदीदा था। पर, न जाने मुझे क्या हो गया? इन सब में मैं ब्रेकिंग अपडेट करना भूल गया। जल्दी से मैंने ब्रेकिंग ट्वीट की, उसके बाद ख़बर पढ़ने लगा। पूरी ख़बर पता लगने पर मुझे बहुत गुस्सा आया। मैं बहुत क्रोधित भी हुआ। इतना नाराज़ हो गया कि अपने पर्सनल ट्वीटर हैंडल से यहाँ तक लिख दिया 'कोई दुःख नहीं है मुझे'...
पर, ये बात ग़लत थी। मन ही मन ये बात मुझे खाये जा रही थी कि आख़िर इतने कामयाब इंसान ने क्यों सुसाइड की? क्या हालात थे? कौन-सी वजहें थी? अच्छा-खासा तो काम चल रहा था। अचानक क्या हुआ होगा ऐसा, जिसने ये करने पर मज़बूर कर दिया?
कोई ख़ुद-कुशी की तरफ़ चल दिया
उदासी की मेहनत ठिकाने लगी।
~आदिल मंसूरी
दोस्तों से बात होने पर भी मैंने कुछ न बोला। बस, अपना गुस्सा ज़ाहिर किया। लेकिन, ज़ेहन में किसी कोने औऱ दिल की गहराइयों में सुशांत ने हमेशा के लिए जगह बना ली थी।
बात अब सिर्फ़ सत्यता और तर्कों पर होनी थी। रात के 10 बजे तक सभी मीडिया एजेंसियों ने पुरज़ोर कोशिश करते हुए सुशांत की पूरी ज़िंदगी किताब की तरह खोल कर सामने रख दी। कुछ न रख पाए तो उसकी आत्महत्या के पीछे छिपे क़ातिल के बारे में...
आत्महत्या के पीछे का कारण डिप्रेशन बताया गया। कहा गया- वह छः महीने से डिप्रेशन में था। इधर उसकी मृत्यु पर शोक व्यक्त करने वालों का तांता लग गया। सोशल मीडिया पर सुनामी आ गयी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर आम जनता तक, सभी दुःखी थे। अनचाहा दर्द था। न रो सकते थे, न ख़ुश हो सकते थे। तो दूसरी तरफ़ शेखर कपूर के ट्वीट ने मामले को पूरा पलट कर रख दिया। उसके बाद क़माल राशिद ख़ान उर्फ केआरके की बात भी वायरल होने लगी। नेपोटिज़्म और ग्रुप बाजी पर बहस होने लगी। सोशल मीडिया हो या युवाओं की कॉन्फ्रेंस कॉल्स, सब पर यही चर्चा हो रही थी।
ख़ुद-कुशी क़त्ल-ए-अना तर्क-ए-तमन्ना बैराग
ज़िंदगी तेरे नज़र आने लगे हल कितने।
~रफ़ीआ शबनम आबिदी
लोगों ने व्हाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर स्टेटस लगाना शुरू किया कि 'अग़र किसी को ज़रूरत होगी तो मुझसे बात करना...' तो मैंने डिप्रेशन पर पढ़ाई शुरू कर दी। कुछ देर तक पढ़ने के बाद, मेरा माथा भन्नाने लगा। मैंने फ़ोन बंद कर दिया। और बग़ल रखकर जैसे ही आँखे बंद करी, सुशांत दिखने लगा।
मैंने झट से आँखे खोली, मन को शांत किया, तेज़ सांसें भरी औऱ जाकर तुरंत पानी पिया। अब न जाने मुझे क्या हो रहा था। मैं समझ नहीं पा रहा था। रात के 2 बजने वाले थे तो मैंने सोना मुनासिब समझा। मैं अतुलितबलधामं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिना मग्रहनयँ.... पढ़ता गया और सो गया।
सुबह फिर उसी को स्वप्न में देखकर आँखे खुली। आज 15 तारिख़ थी। मैं ख़ुद को व्यस्त करने के चलते इधर-उधर ध्यान भटकाये रहा। दिनभर में बहस तूल पकड़ चुकी थी। मामला गर्म हो चुका था। कुछ नए चेहरे सपोर्ट में दिखे। मुझे भी थोड़ी शान्ति मिली। लेकिन मन अब भी भारी था। जहां जाऊँ सुशांत का ही चेहरा नज़र आता था। मैं इतना परेशान हो गया कि मैं दोपहर में सो गया। फिर उठा तो इधर-इधर कुछ देर टहलने के बाद जब रात का खाना खाकर, दोस्त से बात करके सोने को गया, तो मुझे ऐसा लगा जैसे वो मेरे सामने खड़ा हो और रो रहा हो। मैं डर गया औऱ झट से आँखे बंद कर ली। फिर वही मन्त्र। फिर हनुमान जी को याद किया औऱ सो गया।
दूसरी तरफ़, बॉलीवुड में जंग का आगाज़ हो चुका था। कंगना ने अपना वीडियो जारी कर दिया था। तो मंगलवार को अभिनव कश्यप का सलमान खान एंड फैमिली पर आरोप, उसके बाद सोशल मीडिया चरम पर था। मैंने अपने मन को शांत करने के लिए शाम के वक़्त मम्मी-पापा के साथ सुन्दरकाण्ड पढ़ा। जिससे मेरे मन को तसल्ली मिली।
मौत के दरिंदे में इक कशिश तो है 'सरवत'
लोग कुछ भी कहते हों ख़ुद-कुशी के बारे में।
~सरवत हुसैन
मैं भरोसा करना भूल चुका हूँ। अपनी बातों को दूसरों से बताना बंद कर चुका हूँ। कई राज़ अपने सीने में दबाएं बैठा हूँ। उसमें किसी से हिज़्र का किस्सा है तो किसी से सच्ची मोहब्बत की दास्तां। मैं नहीं बता सकता किसी से हाल-ए-दर्द। पहले बेहिचक सबसे सारी बातें कहता था। लोग समझते नहीं थे, हँसकर उन चीज़ों का मज़ बनाते थे। इसलिए मैंने छोड़ दिया सबसे बात करना, सभी को सबकुछ बताना।
शायद ऐसा ही सुशांत के साथ हुआ होगा उसे भी किसी के ऊपर विश्वास न रह गया होगा। इसीलिए उसने ये कदम उठाया।
सुशांत सिंह राजपूत ने जो किया ग़लत किया। इसका समर्थन नहीं किया जा सकता। पर, इसे झुठलाया भी नहीं जा सकता कि वो आज हमारे बीच नहीं रहा। उसकी मौत के पीछे जो भी वजहें रही हों, उसे पूरे हिंदुस्तान के सामने लाना ज़रूरी हो गया है। तभी सुशांत की आत्मा को शांति मिलेगी।
गुरुदत्त से शुरू हुआ सिलसिला-ए-खुदकुशी
50 और 60 के दशक के बेहतरीन अभिनेता गुरुदत्त अक्तूबर 1964 में मुंबई के पेड्डर रो़ड इलाक़े में स्थित अपने अपार्टमेंट में वे मृत पाए गए थे। हालांकि उनके मरने का कारण ज़रूरत से ज़्यादा शराब व नींद की गोली पाया गया।
1994 में अमर अकबर एंथनी, कूली और मर्द जैसी फिल्में बना चुके मनमोहन देसाई भी गिरगांव स्थित अपने फ़्लैट की बाल्कनी से छलांग लगाकर, मौत को अपने नाम कर लिया। फिर 5 अप्रैल 1993 को दिव्या भारती, सितंबर 1996 में सिल्क स्मिता, 2000 में रिम कपाड़िया, 2004 में नफ़ीसा जोसेफ और 2006 में उनके करीबी कुलजीत रंधावा ने भी पंखे से लटक कर जान दे दी।
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उसके बाद 2013 में जिया ख़ान, 2016 में प्रत्युषा बनर्जी और 27 दिसंबर, 2019 को टीवी एक्टर कुशल पंजाबी ने मुंबई के पाली हिल स्थित अपने घर में आत्महत्या कर ली थी।
सड़क पे बैठ गए देखते हुए दुनिया
और ऐसे तर्क हुई एक ख़ुद-कुशी हम से।
~अहमद अता
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