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क्या हैं मलाला होने के मायने, क्यों मनाया जाता है 12 जुलाई को मलाला दिवस

यह एक ऐसा खास दिन है जो महिलाओं के लिए संघर्ष की प्रेरणा देने वाले दिवस के रूप में मनाया जाता है।

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Priya Panwar
Published on: 11 July 2021 3:24 PM IST
क्या हैं मलाला होने के मायने, क्यों मनाया जाता है 12 जुलाई को मलाला दिवस
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मलाला की फोटो, क्रेडिट : सोशल मीडिया

सोमवार 12 जुलाई को यूसुफजई मलाला का जन्म दिन है जो कि मलाला दिवस भी है। यह एक ऐसा खास दिन है जो महिलाओं के लिए संघर्ष की प्रेरणा देने वाले दिवस के रूप में मनाया जाता है। मलाला दिवस बहुत खास है। इसकी वजह है 9 अक्टूबर 2012 वह दिन जब मलाला के सिर पर एक हमलावर द्वारा गोली चलाई गई थी लेकिन वह मरी नहीं। महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष की प्रतीक बन गई। मलाला दिवस आज के परिप्रेक्ष्य में इसलिए खास हो जाता है क्योंकि जिन हालात में मलाला पर हमला हुआ था अफगानिस्तान में इतिहास उन्हीं हालात को आज फिर दोहरा रहा है। मलाला जो कि अब शिक्षा कार्यकर्ता बन चुकी है दुनिया से नाइजीरिया की उन महिलाओं और लड़कियों से आंखें न मूंदने के लिए कह रही हैं जो अभी भी शिक्षा से वंचित हैं।

मलाला की फोटो, क्रेडिट : सोशल मीडिया

लड़कियों की शिक्षा की स्थिति के बारे में सीएनएन न्यूज एंकर जैन आशेर के साथ एक साक्षात्कार में, उन्होंने नाइजीरिया में छात्रों से मिलने के लिए अपनी खुद की यात्राओं को याद करते हुए कहा मैंने उनकी आंखों और उनके दिलों में जो दर्द देखा, वह अकल्पनीय था, खासकर जिन अत्याचारों, जिन कठिनाइयों से वे गुजरे हैं। आशेर ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि 2014 के बाद नाइजीरिया में लड़कियों की शिक्षा से ध्यान हट गया है। उस वर्ष, नाइजीरिया के चिबोक में 220 से अधिक स्कूली छात्राओं को चरमपंथी समूह बोको हराम द्वारा अपहरण कर लिया गया था, इसके बाद #BringBackourGirls अंतर्राष्ट्रीय सोशल मीडिया अभियान छा गया। बोको हराम पश्चिमी शिक्षा को खारिज करता है और देश में इस्लामी कानून स्थापित करने का लक्ष्य रखता है। यही तालिबान का भी उद्देश्य है।

मलाला की फोटो, क्रेडिट : सोशल मीडिया

लड़कियों की शिक्षा के पक्ष में बोलने के लिए 2012 में तालिबान ने मलाला को गोली मार दी थी। उसने अपने अनुभव का उपयोग गैर-लाभकारी लड़कियों की शिक्षा मलाला फंड शुरू करने और अन्य लड़कियों को स्कूल में रहने के लिए सुनिश्चित करने के लिए किया।एक सवाल के जवाब में मलाला ने कहा कभी-कभी कुछ मुद्दों पर मीडिया का ध्यान चला जाता है और फिर वे धुंधले पड़ जाते हैं क्योंकि इनकी न्यूज वेल्यू नहीं है लेकिन दुर्भाग्य से वास्तविकताएं नहीं बदलती हैं। उसने कहा ये एक ऐसी घटना थी जिस पर मीडिया का बहुत ध्यान गया और यह होना चाहिए ... उन सभी घटनाओं पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि यह इन लड़कियों की सुरक्षा के बारे में है। जब वे स्कूल में हों तो उन्हें किसी आतंकवादी समूह के अपहरण के बारे में चिंतित नहीं होना चाहिए, उन्हें वहां सीखना, पढ़ना, लिखना चाहिए, जैसा कि कोई भी छात्र करना चाहेगा। लड़कियों ने वहां जिन अत्याचारों का सामना किया है, उनके बारे में सोचना अकल्पनीय है।

मलाला की फोटो, क्रेडिट : सोशल मीडिया

नाइजीरिया में 2014 में हुए अपहरण से पहले और बाद में पूर्वोत्तर और उत्तर-पश्चिमी राज्यों में लगभग आधी लड़कियां स्कूल नहीं जाती हैं। मलाला ने दो बार नाइजीरिया का दौरा किया है और बोको हराम द्वारा अगवा की गई लड़कियों के माता-पिता से मुलाकात की है। मलाला फंड नाइजीरिया में स्थानीय बालिका शिक्षा कार्यकर्ताओं के साथ काम कर रहा है, जो यह सुनिश्चित करने के लिए राज्य-स्तरीय नीतिगत बदलावों पर जोर दे रहे हैं कि लड़कियों की सुरक्षित गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच हो। मलाला ने बताया कि चिबोक लड़कियों को रिहा कर दिया गया है और शिक्षा मंत्रालय लड़कियों की शिक्षा पर अधिक ध्यान दे रहा है।

मलाला की फोटो, क्रेडिट : सोशल मीडिया

अफगानिस्तान हो या पाकिस्तान मलाला के प्रति दोनों देशों का नजरिया सकारात्मक नहीं है पिछले दिनों वोग मैगजीन को दिए गए इंटरव्यू में मलाला ने कहा कि "मुझे यह बात समझ में नहीं आती कि लोग शादी क्यों करते हैं। अगर आपको जीवनसाथी चाहिए तो आप शादी के कागजों पर दस्तख़त क्यों करते हैं, यह एक पार्टनरशिप क्यों नहीं हो सकती?" इस पर पाकिस्तान में बवाल मच गया था। जबकि पाकिस्तान की 17 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई को 2014 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया जा चुका है और मलाला को पाकिस्तान में महिलाओं के लिए शिक्षा को अनिवार्य बनाने के अभियान के लिए ही गोली का शिकार होना पड़ा था। मलाला को पाठ्यक्रम में शामिल करने पर बवाल। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में मलाला यूसुफजई स्कूली किताबों में हैं। किताब में एक चैप्टर है, जिसका नाम है 'पाकिस्तान के महत्वपूर्ण लोग'। अब पाकिस्तान में बवाल इस बात पर है कि मलाला यूसुफजई को अल्लामा इकबाल, चौधरी रहमत अली, लियाकत अली खान, मुहम्मद अली जिन्ना, बेगम राणा लियाकत अली और अब्दुल सत्तार एधी के साथ कैसे दिखा दिया गया और इसका काफी विरोध किया जा रहा है।

मलाला की फोटो, क्रेडिट : सोशल मीडिया

इसी तरह सिंध सरकार के सरकारी स्कूल का नाम मलाला के नाम पर रखने की घोषणा का स्कूल का नाम बदलते ही विरोध शुरू हो गया ये सरकारी गर्ल्स सेकेंडरी स्कूल कराची के मिशन रोड पर स्थित है। लोग स्कूल का पुराना नाम सेठ कूवरजी खिमजी लोहाना करवाना चाहते हैं। पाकिस्तान के हिंदू समुदाय का कहना है कि उन्हें मलाला से कोई दिक्कत नहीं है और मलाला के नाम पर स्कूल का नाम रखा जाए, ये वो भी चाहते हैं, लेकिन मलाला के नाम की आड़ में हिंदूओं के इतिहास को मिटाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। वर्तमान मे 23 साल की मलाला के जीवन की चुनौतियां बढ़ती ही जा रही हैं हालांकि कई बड़े सम्मान मलाला के नाम दर्ज हैं।



Priya Panwar

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