×

कामतानाथ की कहानी मेहमान,आपको अंदर तक झकझोर देगी

शीतला प्रसाद का हाथ हवा में ही रुक गया। संध्या-स्नान-ध्यान के बाद चौके में पीढ़े पर बैठे बेसन की रोटी और सरसों के साग का पहला निवाला मुँह में डालने ही जा रहे थे कि किसी ने दरवाजे की कुंडी खटखटायी। कुंडी दोबारा खटकी तो उन्होंने निवाला वापस थाली में रख दिया

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 10 July 2020 8:27 PM IST
कामतानाथ की कहानी मेहमान,आपको अंदर तक झकझोर देगी
X

मेहमान-कामतानाथ

शीतला प्रसाद का हाथ हवा में ही रुक गया। संध्या-स्नान-ध्यान के बाद चौके में पीढ़े पर बैठे बेसन की रोटी और सरसों के साग का पहला निवाला मुँह में डालने ही जा रहे थे कि किसी ने दरवाजे की कुंडी खटखटायी। कुंडी दोबारा खटकी तो उन्होंने निवाला वापस थाली में रख दिया और अपनी पत्नी की ओर देखा जो चूल्हे पर रोटियाँ सेंक रही कुंडी की आवाज सुनकर उनका हाथ भी ढीला पड़ गया था। 'राम औतार न हो कहीं?' आँचल से माथे का पसीना पोंछते हुए उन्होंने कहा।

राम औतार को शीतला प्रसाद की भांजी व्याही थी। इस रिश्ते से वह उनके दामाद लगते थे। हसनगंज तहसील में कानूनगो थे। कभी किसी काम से शहर आते थे तो उनके यहाँ जरूर आते थे, खास तौर से जब रात में रुकना होता था। दिन भर शहर में काम निपटाकर बिना पहले से कोई सूचना दिये शाम तक उनके यहाँ पहुँच जाते।

महीने के अंतिम दिन चल रहे थे। रुपये-पैसे तो खतम थे ही, राशन भी सामाप्तप्राय था। शक्कर का एक दाना नहीं था घर में। तीन-चार दिनों से सब लोग गुड़ की चाय पी रहे थे। आज सवेरे चाय की पत्ती भी खत्म हो चुकी थी। चावल भी दो दिन हुए समाप्त हो चुका था। ऐसे में राम औतार के आने की बात से शीतला प्रसाद को कोई प्रसन्नता नहीं हुई। उनकी पत्नी के लिए तो परेशानी का कारण था ही।

'जा दरवाजे से झाँक के देख कौन है,' उन्होंने अपनी बेटी राधा से कहा।

'आवाज न हो बिलकुल, और सुन, दरवाजा खोलना मत।' शीतला प्रसाद ने उसे टोका।

राधा भागने को थी मगर फिर पिता की बात सुनकर उसने चाल धीमी कर दी। राम औतार का आना उसे हमेशा अच्छा लगता था। वह जब भी आते थे मिठाई जरूर लाते थे। दूसरे दिन जाते समय उसे एक रुपया भी देते थे।

कुंडी एक बार और खटखटायी जा चुकी थी। तभी राधा लौट आयी।।

'ठीक से दिखाई नहीं दिया, मगर शायद जीजा ही हैं। काली अचकन पहने हैं। साथ में दो आदमी और हैं।'

राम औतार हमेशा काली शेरवानी पहनते थे।

'वही होंगे,' शीतला प्रसाद की पत्नी ने कहा। 'मगर साथ में किसको ले आये!'

'मैं देखता हूँ जाकर,' शीतला प्रसाद ने कहा, 'तुम देखो, जो कुछ घर में न हो राधा को भेजकर बगल के किसी के यहाँ से मँगा लो।'

पति की परोसी हुई थाली ढाँपकर शीतला प्रसाद की पत्नी रसोई से बाहर आ गयी। 'जा सरोजनी की अम्मा से दो कटोरी चावल, एक कटोरी शक्कर और थोड़ी चाय की पत्ती माँग ला।' उन्होंने बेटी को थैला पकड़ाते हुए कहा। 'कहना पाहुन आये हैं। और सुन, जो चीज उनके यहाँ न मिले वह सत के यहाँ से माँग लाना!'

राधा थैला लेकर सदर दरवाजे की ओर भागी तो माँ ने उसका झोंटा पकड़कर खींचा। 'पीछे के दरवाजे से जा मरी। और उधर से ही आना। और सुन, छिपा के लाना सब, समझी कि नहीं।'

और समय होता तो राधा झोंटे खींचे जाने पर प्रतिवाद करती। परंतु इस समय वह चुपचाप पीछे के दरवाजे से चली गयी। इस बीच शीतला प्रसाद ने जाकर दरवाजा खोल दिया था।

तीन-चार लोग वहाँ खड़े थे। उनमें से एक काली शेरवानी पहने था। बाकी खद्दर का कुर्ता, सदरी आदि पहने थे। शीतल प्रसाद के दरवाजा खोलते ही वे लोग उनकी ओर बढ़ आये... ?

'हम लोग तो समझे आप सो गये,' उनमें से एक ने कहा। शीतला प्रसाद कुछ जवाब दें इससे पहले ही दूसरा व्यक्ति बोल पड़ा, 'अरे भाई, इस देश में आदमी सोये न तो क्या करे? दिन भर तो खटना पड़ता है उसे, दफ्तर या फैक्ट्री में। नागरिक सुविधाओं के नाम पर क्या है उसके पास? अब यह गली ही देखिए। सारा खड़ंजा टूटा पड़ा है। बरसात में तो आना-जाना मुश्किल हो जाता होगा। बताइए, बिजली तक नहीं है गली में! सरकारी लालटेन भी वहाँ लगी है, नुक्कड़ पर। वह भी देखिए कैसी मरी-मरी जल रही है... कहिए रोज जलती भी न हो। और नल,' उस व्यक्ति ने इधर-उधर देखा... 'नल है इस गली में?' उसने शीतला प्रसाद से पूछा।'

'जी, था। लेकिन पिछले चार महीनों से बंद पड़ा है।' शीतला प्रसाद ने उत्तर दिया, हालाँकि बातों का संदर्भ ठीक से समझ नहीं पा रहे थे।

'लीजिए, नल भी तीन-चार महीनों से बंद है। खड़ंजा और लालटेन तो हम देख ही रहे हैं। लेकिन वाटर टैक्स, हाउस टैक्स सब भरना है आदमी को। अब बताइए, मकान हम बनाएँ, जमीन हम खरीदें, सामान हम लगाएँ और टैक्स ले सरकार! काहे का टैक्स भई? कोई जुर्म किया है हमने कि टैक्स भरें?'

'इनका बस चले तो हवा पर भी टैक्स लगा दें,' उसके साथ के दूसरे आदमी ने कहा। 'गिन-गिन के साँस लो और साँस का इतना टैक्स भरो।'

'सड़कों का टैक्स तो लेते ही हैं।'

'मगर हालत जरा देखिए सड़कों की!'

'अजी क्या सड़कें और क्या पार्क। आज तक किसी पार्क में माली देखा है आपने? गाय-भैंसें बँधती हैं पार्कों में। आदमी 'मार्निंग वाक' तक के लिए नहीं जा सकता। जहाँ देखो वहीं गंदगी, मच्छर-मक्खी पल रहे हैं। बीमारियाँ फैल रही हैं। हजारों आदमी हर साल कालरा और मलेरिया से मर जाते हैं। अस्पतालों का जो हाल है वह किसी से छिपा है क्या? पानी में रंग मिलाकर मिक्कचर बनता है। डॉक्टर तो कभी ड्यूटी पर मिलेगा ही नहीं। यही हाल स्कूलों का है। कहने को जगह-जगह म्यूनिसिपैलिटि के स्कूल खुले हैं। लेकिन पढ़ाई? होती है कहीं? बच्चों को आवारा बनाना हो तो भेजिए म्यूनिसिपैलिटि के स्कूलों में।'

शीतला प्रसाद कुछ समझ नहीं पा रहे थे। मगर उन्हें कुछ कहने का अवसर भी कोई नहीं दे रहा था। एक व्यक्ति की बात समाप्त होती तो दूसरा शुरू हो जाता। तब तक उनकी पत्नी भी वहाँ आ गयी थीं और दरवाजे की आड़ में खड़े उन लोगों की बातें सुन रही थीं। आखिर जब उनकी समझ में भी कुछ नहीं आया और बेसिर-पैर की बातें सुनती-सुनती वह पूरी तरह ऊब गयीं तो उन्होंने पति से कहा, 'चलो खाना खा लो चल के पहले, नहीं तो ठंडा हो जाएगा।'

'हाँ-हाँ, जाइए आप भोजन कीजिए जाकर, उनमें से एक व्यक्ति ने, जिसने शीतला प्रसाद की पत्नी की बात सुन ली थी, उनसे कहा 'मगर मुसद्दी लालजी को न भूलिएगा।'

'कौन मुसद्दी लाल?' शीतला प्रसाद ने पूछा।

'अरे भाई, मुसद्दी लालजी को नहीं जानते? यह हैं मुसद्दी लालजी',' उसने काली शेरवानी वाले व्यक्ति की ओर इशारा किया तो उसने लपककर शीतला प्रसाद का हाथ अपने हाथ में ले लिया।

'म्यूनिसिपैलिटि के चेयरमैन पद के उम्मीदवार हैं न आप। औरों को तो आप आजमा चुके हैं। इस बार इन्हें आजमाकर देखिए। लाओ भाई परचा दो आपको।'

'नम्बर क्या है?'

'मकान नम्बर बताइए अपना।'

'ग्यारह बटे दो सौ सत्तावन', शीतला प्रसाद ने कहा।

'यह रहा,' ढेर सारे परचों में से एक परचा निकालकर उस व्यक्ति ने शीतला प्रसाद को पकड़ा दिया, 'यह लीजिए।'

'क्या है यह?'

'वोटर लिस्ट का पर्चा है यह। आपका नाम शिवशंकर मिश्र है न?'

'जी नहीं, मेरा नाम तो शीतला प्रसाद वर्मा है।'

'शीतला वर्मा! मकान नम्बर क्या बताया आपने?'

'ग्यारह बटे दो सौ सत्तावन।'

'नम्बर तो सही है। आप शिवशंकर मिश्र नहीं हैं?'

'जी नहीं। शिवशंकर मुझसे पहले किरायेदार थे इस मकान में।'

'और आप?'

'मैं तो अभी... तीन साल हुआ इस मकान में आये।'

'इससे पहले कहाँ रहते थे?'

'बंगला बाजार में।'

'तभी, आपका नाम कहाँ होगा! बंगला बाजार तो,' उस व्यक्ति ने अपने साथी की ओर देखते हुए कहा 'म्यूनिसिपैलिटि के क्षेत्र के बाहर पड़ता है न।'

'चलिए कोई बात नही। वोट न सही, सपोर्ट तो रहेगा आपका।' उस व्यक्ति ने एक बार फिर शीतला प्रसाद का हाथ अपने हाथों में लेकर हिलाया और सारे लोग चबूतरे से उतरकर गली में आगे बढ़ गये। राधा तब तक चावल और शक्कर ले आयी थी। चाय की पत्ती उसे नहीं मिली थी। अंदर किसी को न पाकर वह भी थैला एक कोने में रख दबे कदमों से सदर दरवाजे की तरफ बढ़ गयी। माँ का हाथ हिलाते हुए उसने धीरे से कहा, 'चावल और शक्कर ले आये हैं। चाय नई मिली।'

'चल अंदर। चाय की दुम...' माँ ने उसके सिर पर जोर से धौल जमा दी। वह सँभल पाती इससे पहले ही पिता ने भी उसके सिर पर चपत जड़ दी। 'जो आदमी काली शेरवानी पहने आयेगा वही तेरा जीजा हो जाएगा? गधी कहीं की,' उन्होंने कहा।

राधा कुछ समझी नहीं। उसे पूरा विश्वास था कि उसने गली में राम औतार को ही देखा था। मार जो उसने खायी वह तो खायी ही, उसे इस बात का भी कम अफसोस नहीं था कि मिठाई खाने को नहीं मिलेगी।



Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

Next Story