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17 साल बाद मिली बिहार को रणजी की सौगात, बदलेगा माहौल
शिशिर कुमार सिन्हा,
पटना। नवंबर 2000 में दक्षिण बिहार टूटकर झारखंड क्या बना, बिहार से क्रिकेट के दिन ही खत्म हो गए थे। सुप्रीम कोर्ट ने चार जनवरी को अंतरिम आदेश के तहत बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (बीसीए) को रणजी ट्रॉफी समेत राष्ट्रीय स्तर की सभी क्रिकेट प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने की मंजूरी क्या दी, 21वीं सदी की त्रासदी एक झटके में खत्म होती नजर आई। इस सदी में बीसीए ने रणजी में हिस्सा लिया और 2003 में यहां से धोनी भी निकल कर आगे बढ़े, लेकिन चूंकि बीसीए का मुख्यालय 1935 से ही दक्षिण बिहार (वर्ष 2000 में सृजित झारखंड राज्य) में था इसलिए झारखंड के दावे ने बिहार को पछाड़ कर रखा था।
बिहार इस तरह दबा हुआ था कि यहां लोगों ने अपने बच्चों को क्रिकेट से दूर कर दिया था। जो बहुत अच्छा खेले, उनमें से कुछेक के अभिभावकों ने दूसरे राज्यों की रणजी टीम में अपने बच्चों को जाने की छूट दी। इन 17 वर्षों में बिहार में क्रिकेट की कितनी प्रतिभाओं का सपना टूटा, इसका अनुमान नहीं। अपनी बैटिंग की बदौलत इंडियन गिलक्रिस्ट जैसे नाम से नवाजे गए आशीष सिन्हा समेत दर्जनों ऐसे खिलाडिय़ों की प्रतिभा तो केवल पटना के मैदानों पर खेल-खेल कर खत्म हो गईं।
कोर्ट में लड़ता रहा, मगर थका नहीं सीएबी
झारखंड अलग होने के बावजूद करीब तीन साल तक बीसीसीआई ने झारखंड राज्य क्रिकेट एसोसिएशन का अस्तित्व नहीं स्वीकार किया था। वजह थी अस्तित्व की लड़ाई। बंटवारे से पूर्व राज्य में क्रिकेट के लिए जिम्मेदार संस्था बिहार क्रिकेट एसोसिएशन थी, इसलिए बिहार ने अपना दावा कायम रखा था।
दूसरी तरफ मुख्यालय बंटवारे से बने राज्य झारखंड में था, इसलिए वह इस पर अपना दावा करते हुए झारखंड स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन का स्थापना 1935 लिखने लगा। चूंकि दक्षिण बिहार में जमशेदपुर और रांची में अच्छे स्टेडियम थे और क्रिकेट की महत्वपूर्ण प्रतियोगिताएं उसी तरफ होती थीं, इसलिए भी झारखंड ने एसोसिएशन को लेकर लड़ाई में पूरी ताकत झोंक दी।
बिहार में जो बचा, उसमें बिहार क्रिकेट एसोसिएशन तो था ही, अन्य संगठन भी निकल आए। इसके बाद क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार (सीएबी) और बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (बीसीए) के बीच वर्षों तक श्रेष्ठता की लड़ाई चली, जिसमें बिहार के ताकतवर क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के कुछ कद्दावर नेताओं ने सारा खेल दिखा दिया।
नतीजा यह हुआ कि एक तरफ झारखंड ने क्रिकेट पर फोकस रख महेंद्र सिंह धोनी को खांटी झारखंडी करार देते हुए बीसीसीआई में दावा कायम रखा तो बिहार आंतरिक राजनीति में क्रिकेट को स्वाहा करने में जुटा रहा। इसके बाद झारखंड की ओर से कोर्ट में चल रहे दावे पर लगातार सीएबी के सचिव आदित्य वर्मा भिड़े रहे।
अस्तित्व की लड़ाई में अब एकता की गूंज भी
बिहार क्रिकेट एसोसिएशन में दो गुट हैं। एक मैदान में एक्टिव रहने वाला तो दूसरा राजनीति में। क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार मैदान और कोर्ट में एक्टिव था। सुप्रीम कोर्ट के ताजा आदेश के बाद अब बीसीए और सीएबी की लड़ाई ठंडी होती दिख रही है। सीएबी सचिव ने खुद पहल करते हुए बीसीए को रणजी की तैयारी के लिए आगे आने को कहा है।
स्टेडियम पर अब वादे से आगे चलना होगा सरकार को
गत 9 जनवरी को राज्यस्तरीय एकलव्य खेल के शुभारंभ पर उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने मंच से कहा कि बिहार राज्य खेल प्राधिकरण अब बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के साथ एमओयू साइन करेगा और मोइनुल हक स्टेडियम का रूप बदला जाएगा। इस स्टेडियम में वल्र्ड कप का एक मैच वेस्टइंडीज बनाम केन्या खेला गया था।
उसके बाद से क्रिकेट के मामले में सूखा पड़ गया। वैसे, जिस समय उप मुख्यमंत्री मोइनुल हक स्टेडियम के उद्धार के लिए बीसीए से करार की बात कह रहे थे, उस समय एकलव्य खेल की हॉकी प्रतियोगिता के लिए इस स्टेडियम में कला-संस्कृति एवं युवा (खेल) विभाग के अधिकारी गोल पोस्ट बनवा रहे थे। देर शाम क्रिकेट पिच समेत पूरे ग्राउंड पर हॉकी खेली गई, जबकि सरकार पिछले कई वर्षों से लगातार यहां सिर्फ क्रिकेट की बात करती आई है।
रणजी में वक्त नहीं है, तेजी से उठाने होंगे कदम
2017-18 सीजन के रणजी विजेता का फैसला हो चुका है। 2018-19 का रणजी ट्रॉफी संभवत: इसी साल सितंबर-अक्टूबर में होगा। बीसीसीआई जितनी जल्दी बैठक कर बीसीए को पत्र देगी, उतनी जल्दी बिहार में माहौल बदलेगा। मैदानों में एक्टिव बीसीए के सचिव रविशंकर प्रसाद के अनुसार अब अंडर 16, अंडर19, हेमन ट्रॉफी आदि के मैचों में क्रिकेटरों के परफॉरमेंस पर नजर रखने की कवायद शुरू हो गई है।
बहुत अच्छा परफॉरमेंस दिखाने वाले 75-80 लडक़ों का पूल बनाया जाएगा और फिर मैदान में इन्हें उतारा जाएगा।बेहतरीन परफॉरमेंस देने वालों को कैंप में लेंगे और कैंप से बिहार के लिए रणजी ट्रॉफी के लिए अंतिम एकादश समेत पूरी टीम चुनी जाएगी।
विवादों से पीछा छुड़ाना भी एक टास्क है
बिहार में क्रिकेट की राजनीति का हमेशा व्यक्तिगत विवादों से नाता रहा है। जब राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने बीसीए में रुचि दिखाई और अपने करीबी अब्दुल बारी सिद्दीकी को इससे जुडऩे की छूट दी तो तेजस्वी यादव चर्चा में रहे थे। लालू के बेटे होने के नाते बैकडोर से तेजस्वी की आईपीएल में एंट्री हो गई थी। सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव और कांग्रेस सांसद रंजीता रंजन के बेटे सार्थक यादव की कमजोर पारियों के बावजूद दिल्ली की टी20 टीम में मौका मिलने पर राष्ट्रीय स्तर का बवाल मचा हुआ है।
ऐसी व्यक्तिगत लालसाओं के कारण ही बिहार के क्रिकेटरों की छवि खराब होती रही है और यह माना जाता रहा है कि बिहार से क्रिकेटर नहीं निकल सकते हैं, जबकि ईशान किशन जैसे उदाहरण अभी आंखों के सामने हैं तो सबा करीब, अमीकर दयाल जैसे नाम भुलाए नहीं जा सके।
बिहार के सरकारी तंत्र को आगे बढक़र प्रयास करना चाहिए। विवाद सुलझाने चाहिए। खेल पर ध्यान देना चाहिए। मैदानों पर काम कराना चाहिए। विवाद सुलझा कर बिहार के लिए सशक्त टीम तैयार करना सामूहिक उद्देश्य होना चाहिए।
अमीकर दयाल
पूर्व कप्तान इंडिया अंडर 19 क्रिकेट टीम