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अदालत ने बीसीसीआई के खिलाफ जनहित याचिका को ‘निरर्थक’ बताकर किया खारिज
मद्रास उच्च न्यायालय ने उस जनहित याचिका को ‘‘निरर्थक’’ बताते हुए खारिज कर दिया जिसमें कथित तौर पर बिना उचित मंजूरी के अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों में देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए बीसीसीआई के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की मांग की गई है।
नई दिल्ली: मद्रास उच्च न्यायालय ने उस जनहित याचिका को ‘‘निरर्थक’’ बताते हुए खारिज कर दिया जिसमें कथित तौर पर बिना उचित मंजूरी के अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों में देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए बीसीसीआई के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की मांग की गई है।
न्यायमूर्ति एस मणिकुमार और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने बृहस्पतिवार को कहा, ‘‘यह याचिका मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा समानांतर जांच शुरू कराने की कोशिश है वो भी ऐसे में जब उच्चतम न्यायालय पहले ही बीसीसीआई की गतिविधियों की निगरानी कर रहा है। यह न्यायिक शिष्टाचार और अनुशासन के खिलाफ है।’’
पीठ ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि दिल्ली की रहने वाली गीता रानी को इस बात की जानकारी नहीं है कि उच्चतम न्यायालय एक समिति गठित करके भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) की निगरानी कर रहा है और इसके बारे में खबरें आए दिन प्रकाशित होती रहती हैं।
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बीसीसीआई को सरकार की पूर्व अनुमति के बगैर औपनिवेशिक प्रतीक चिह्न का इस्तेमाल करने से रोकने के अनुरोध पर पीठ ने कहा कि क्रिकेट बोर्ड ऐसी संस्था नहीं है जो कोई भी व्यापार, कारोबार करती है या किसी भी पेशे में हो।
उसने कहा कि इसलिए यह मामला प्रतीक एवं नाम (अनुचित प्रयोग निवारण) कानून, 1980 की धारा तीन के तहत नहीं आता। बीसीसीआई की ओर से पेश हुए वकील पी आर रमन ने कहा कि बोर्ड ने इस कानून का उल्लंघन नहीं किया।
याचिका को ‘‘निरर्थक’’ बताकर खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि फैसलों की श्रृंखला में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों ने जनहित याचिकाओं के दुरुपयोग की बढ़ती प्रवृत्ति पर संज्ञान लिया है।
पीठ ने कहा, ‘‘यह याचिका कानून की प्रक्रिया का महज दुरुपयोग है।’’ उसने कहा, ‘‘हम याचिकाकर्ता पर इस उम्मीद के साथ हर्जाना नहीं डाल रहे हैं कि वह भविष्य में ऐसी निरर्थक याचिकाएं दायर करने से बचेगा।’’
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