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टीम इंडिया के पूर्व कप्तान पर लॉकडाउन का कहर, पत्थर तोड़कर पाल रहे पेट

आर्थिक तंगी के कारण धामी को परिवार का पेट भरने के लिए मजदूरी करनी पड़ी। धामी को 3 साल की उम्र में पैरालिसिस का अटैक पड़ा था, जिसके बाद से वह 90 फीसदी दिव्यांग हैं।

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Published on: 27 July 2020 6:32 AM GMT
टीम इंडिया के पूर्व कप्तान पर लॉकडाउन का कहर, पत्थर तोड़कर पाल रहे पेट
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मज़बूरी इंसान से क्या कुछ नहीं करवा लेती। कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए देश में लॉकडाउन हो गया था।जिसके चलते सभी लोगों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा था। वहीं, भारतीय वीलचेयर क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और वर्तमान में उतराखंड के कप्तान राजेंद्र सिंह धामी को भी इन दिनों अपने परिवार की मदद के लिए मजदूरी करने को मजबूर होना पड़ रहा है। मजदूरी शुरू करने से पहले वह कुछ बच्चो को क्रिकेट कोचिंग देते थे, जिन्होंने लॉकडाउन की वजह से आना छोड़ दिया। उनके पैरेंट्स कहते हैं कि घर में पैसे नहीं बचे थे।

खिलाड़ी के साथ-साथ पढ़ाई में भी तेज है धामी

आर्थिक तंगी के कारण धामी को परिवार का पेट भरने के लिए मजदूरी करनी पड़ी। धामी को 3 साल की उम्र में पैरालिसिस का अटैक पड़ा था, जिसके बाद से वह 90 फीसदी दिव्यांग हैं। क्रिकेट की फील्ड पर उन्होंने खूब अवॉर्ड अपने नाम किए हैं। इसके अलावा वह इतिहास में एमए हैं और उनके पास बीएड की डिग्री भी है। लेकिन इतना पढ़े लिखे होने के बाद में उन्हें कमाई का कोई सहारा नहीं है।

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लॉकडाउन से पहले बच्चो को दे रहे थे कोचिंग

30 वर्षीय खिलाड़ी ने बताया कि, 'इससे पहले, मैं वीलचेयर पर आश्रित उन बच्चो को रुद्रपुर में कोचिंग दे रहा था, जिन्हें क्रिकेट का शौक था। लेकिन यह सब रुक गया तो मैं रायकोट (पिथौरागढ़) में अपने गांव आ गया, जहां मेरा परिवार रहता है।'

मनरेगा स्कीम के तहत गांव में कर रहे मजदूरी

उत्तराखंड वीलचेयर टीम के कप्तान होते हुए मलेशिया, बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों की यात्रा कर चुके राजेंद्र सिंह धामी ने कहते हैं, 'लॉकडाउन के इन कुछ महीनों ने हालात मुश्किल बना दिए हैं। मेरे पैरेंट्स बुजुर्ग हैं। मेरी एक बहन और छोटा भाई भी है। मेरा भाई गुजरात में एक होटल में काम करता था लेकिन उसकी नौकरी भी चली गई। इसलिए मैंने मनरेगा योजना के तहत अपने गांव में काम करने का तय किया।'

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सोनू सूद ने भी धामी की मदद

राजेंद्र ने बताया कि इन चुनौतीपूर्ण हालात में कुछ लोगों ने मदद की, जिनमें से सोनू सूद भी एक हैं, इन्होंने 11,000 रुपये भेजे थे। इसके अलावा रुद्रपुर और पिथौरागढ़ में भी कुछ लोगों ने मदद की लेकिन यह परिवार के लिए काफी नहीं था।

लेकिन टूटा नहीं है धामी का हौसला

राजेंद्र सिंह धामी का हौसला टूटा नहीं है और उन्हें दृढ़ विश्वास है कि यह चुनौतियां जल्दी ही खत्म होंगी। वह मुस्कुराते हुए कहते हैं, 'अपनी आजीविका चलाने के लिए कोई भी काम करने में कोई बुराई नहीं है। मैंने मनरेगा जॉब में इसलिए काम करना पसंद किया क्योंकि यह मुझे मेरे घर के पास ही काम देता है। भले यह मुश्किल समय है लेकिन मैं जानता हूं कि मैं इससे पार पा लूंगा।'

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