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टेनिस के लिए भारत को ग्रासरूट प्रोग्राम और खेल संरचना के विकास पर ध्यान देना चाहिए
नई दिल्ली : विश्व के पूर्व वर्ल्ड नम्बर-1 टेनिस खिलाड़ी स्वीडन के स्टीफन एडबर्ग का मानना है कि भारत को टेनिस जैसे खेल के एकल वर्ग में विश्व स्तरीय पहचान हासिल करने में समय लगेगा। एडबर्ग के मुताबिक वैश्विक स्तर पर टेनिस में बहुत कड़ी प्रतिस्पर्धा है और इसमें शीर्ष पर पहुंचने के लिए किसी भी देश में इस खेल को लेकर व्यवस्थित ग्रासरूट प्रोग्राम और उन्नत खेल संरचना होनी चाहिए।
मुंबई में आयोजित टाइम्स ऑफ इंडिया स्पोर्ट्स अवार्ड्स समारोह के लिए भारत आए एडबर्ग ने टेनिस जगत से जुड़ी कई चीजों पर विस्तार से चर्चा की।
भारत के पास युगल वर्ग में कई अच्छे टेनिस खिलाड़ी हैं, जिसमें सानिया मिर्जा, लिएंडर पेस और रोहन बोपन्ना का नाम शामिल है। महेश भूपति रिटायर हो चुके हैं लेकिन वह युगल स्तर पर काफी सफल रहे हैं। लिएंडर ने अपने करियर में आठ युगल और सात मिश्रित युगल वर्ग के ग्रैंड स्लैम खिताब जीते हैं।
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इसके अलावा, सानिया एक समय पर एकल वर्ग में टेनिस खेलती थीं, लेकिन अपने भविष्य को सही मार्ग पर जाता न देख उन्होंने 2013 में एकल वर्ग से संन्यास ले लिया और इसके बाद युगल वर्ग के मुकाबले ही खेले, जिसकी बदौलत उन्होंने 13 अप्रैल, 2015 को युगल वर्ग में विश्व रैंकिंग में पहला स्थान हासिल किया। इसके अलावा, रोहन बोपन्ना ने भी कई सालों से लगातार युगल वर्ग में रहते हुए अच्छा प्रदर्शन किया है।
भारत में एकल वर्ग में खेलने वाले टेनिस खिलाड़ियों में सोमदेव देवबर्मन, युकी भाम्बरी, तारा अय्यर, अंकिता रैना उस स्तर पर पहचान नहीं बना पाए हैं। ऐसे में एकल वर्ग में देश के पास कोई विश्व स्तरीय खिलाड़ी नहीं है।
इस कमी के बारे में एडबर्ग ने कहा, "आप देख सकते हैं कि टेनिस में किस प्रकार की कड़ी प्रतिस्पर्धा है। किसी भी देश के लिए एकल वर्ग में विश्व स्तरीय खिलाड़ियों का निर्माण कर पाना आसान नहीं होता है।"
उन्होंने कहा, "आप स्वीडन को देख सकते हैं कि हमें भी कितनी मुश्किल हो रही है। इसमें कड़ी मेहनत और आर्थिक सहायता की जरूरत होती है। मेरे देश में अच्छे खिलाड़ी हैं और वह आर्थिक रूप से अब संतुलित भी है, लेकिन एक स्थानीय क्लब से निकलकर विश्व स्तरीय पहचान बनाने में समय लगता है। जहां तक भारत की बात है तो शीर्ष स्तरीय खिलाड़ी पैदा करने के लिए उसे व्यवस्थित ग्रासरूट प्रोग्राम बनाना होगा और इस खेल से जु़ड़ी संरचना को मजबूत करना होगा। इसके बाद परिणाम आने लगेंगे लेकिन इसमें काफी वक्त लगेगा।"
एडबर्ग ने अपने करियर में एकल वर्ग में छह ग्रैंड स्लैम और युगल वर्ग में तीन ग्रैंड स्लैम खिताब जीते हैं। इसके अलावा, वह स्वीडन के साथ चार बार डेविस कप खिताब भी जीत चुके हैं।
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सियोल में 1988 में आयोजित हुए ओलम्पिक खेलों में एडबर्ग ने एकल और युगल दोनों वर्गो में कांस्य पदक जीता था। 2014-15 तक एडबर्ग स्विट्जरलैंड के दिग्गज टेनिस खिलाड़ी रोजर फेडरर के कोच भी रह चुके हैं।
ऐसे में उनके लिए विश्व रैंकिंग कितना महत्व रखती है। इस बारे में एडबर्ग ने कहा, "निश्चित तौर पर महत्व रखती है। यह मेरे लिए ही नहीं, बल्कि टेनिस खेलने वाले हर खिलाड़ी के लिए मायने रखती है। खिलाड़ी विश्व रैंकिंग में अच्छा स्थान हासिल करने के लिए ही तो मेहनत करते हैं। विश्व रैंकिंग में एक खिलाड़ी को नम्बर-1 बनने के लिए काफी समय और मेहनत लगती है। मुझे लगता है कि सामान्य रूप से किसी भी खेल के शीर्ष स्तर को छूने के लिए आपको कम उम्र से ही शुरूआत करनी होती है। विशेषकर चोटों से दूर रहना पड़ता है। ऐसे में जब आप शीर्ष स्थान के पास पहुंच जाते हैं, तो कई छोटी-छोटी चीजें मायने रखती हैं।"
एडबर्ग ने कहा कि किसी भी खिलाड़ी को टॉप पर पहुंचने के लिए अपने पूरे करियर के दौरान शारीरिक और मानसिक तौर पर मजबूत रहना पड़ता है और साथ ही साथ कोर्ट पर इसे दर्शाना भी होता है।
बकौल एडबर्ग, "शीर्ष रैंकिंग में पहुंचने के लिए सबसे अहम है एक खिलाड़ी का मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत रहना। हालांकि, मैच के दौरान कोर्ट पर इसे बनाए रखना काफी मुश्किल होता है। इसके लिए आपके अंतर फुर्ती भी होनी चाहिए, जो मैच के दौरान सर्व करते हुए काफी जरूरी होती है। देखा जाए, तो शीर्ष स्तरीय खिलाड़ी का निर्माण इन सब चीजों के मेल से होता है।"
एडबर्ग ने कहा कि एक साल में जो 12 माह होते है, उन 12 माह में एक खिलाड़ी का अपने खेल के लिए बेहतरीन फॉर्म में रहना जरूरी है। ऐसे में पूरे साल भर उच्च स्तर पर बने रहते हुए एक खिलाड़ी विश्व रैंकिंग में शीर्ष स्थान हासिल कर सकता है।