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Shaktipeeth Outside India: भारत देश के बाहर स्थित शक्तिपीठ
Shaktipeeth Outside India: 51 शक्तिपीठ भारत के अलावा पाकिस्तान, श्रीलंका, तिब्बत, नेपाल और बांग्लादेश के कई हिस्सों में स्थित हैं।
Shaktipeeth Outside India: देवी पुराण के अनुसार 51 शक्तिपीठों की स्थापना की गयी है। हिंदू धर्म में ये सभी शक्तिपीठ बहुत पवित्र तीर्थ स्थल माने जाते हैं। वर्तमान में यह 51 शक्तिपीठ भारत के अलावा पाकिस्तान, श्रीलंका, तिब्बत, नेपाल और बांग्लादेश के कई हिस्सों में स्थित हैं।
इनकी जानकारी इस प्रकार है।
बांग्लादेश के शक्तिपीठ
सुगंधा - सुनंदा
बांग्लादेश के शिकारपुर में बरीसाल से उत्तर में 21 किमी दूर शिकारपुर नामक गांव में सुनंदा नदी के किनारे यह मंदिर स्थित है। ऐसा माना जाता है कि यहां माता सती की नासिका गिरी थी। इसकी शक्ति को सुनंदा और भैरव या शिव को त्र्यंबक कहते हैं। यह मंदिर उग्रतारा के नाम से विख्यात है।
कैसे पहुंचें ?
भारत से जाने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए वीजा लेना होगा। हवाई, समुद्र या सड़क मार्ग से इस यहां पहुंच सकते हैं। इसका नजदीकी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बांग्लादेश के बरीसाल शहर में है। शक्तिपीठ बरीसाल से 20 किलोमीटर दूर है।
खुलना से स्टीमर द्वारा बरीसाल पहुंच कर सड़क मार्ग से शिकारपुर गांव पहुंच सकते हैं।
चट्टल - भवानी
बांग्लादेश में चिट्टागौंग या चटगांव जिले से 38 किलोमीटर दूर चंद्रनाथ पर्वत पर छत्राल जिसे चट्टल या चहल भी कहते हैं में माता सती की दायीं भुजा गिरी थी। इसकी शक्ति को भवानी और भैरव को चंद्रशेखर कहते हैं। यहां चंद्रशेखर शिव का भी एक मंदिर है। इसके अलावा यहां सीताकुण्ड, व्यासकुण्ड, सूर्यकुण्ड, ब्रह्मकुण्ड, बाड़व कुण्ड, लवणाक्ष तीर्थ, सहस्त्रधारा, जनकोटि शिव भी हैं। बाडव कुण्ड से निरंतर आग निकलती रहती है।
कैसे पहुंचें ?
हवाई मार्ग से जाने के लिए निकटतम हवाई अड्डा बांग्लादेश का शाह अमानत अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। भारतीय तीर्थ यात्रियों को वीज़ा के लिए आवेदन करना होगा। हवाई मार्ग के अलावा चटगांव , ढाका, सिलहट और अन्य शहरों से ट्रेन , टैक्सी और बसें उपलब्ध हैं।
श्रीशैल - महालक्ष्मी
बांग्लादेश के सिलहट जिले के पास शैल नामक स्थान पर माता सती का ग्रीवा यानि गला गिरा था। इसकी शक्ति को महालक्ष्मी और भैरव को शम्बरानंद कहते हैं।
कैसे पहुंचें ?
निकटतम हवाई अड्डा उस्मानी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है। यहां से मंदिर 13 किमी दूर है।सिलहट रेलवे स्टेशन से मंदिर 2.6 किमी दूर है।भारतीय तीर्थ यात्रियों को यहां आने के लिए वीजा लेना पड़ेगा।
करतोयातट - अपर्णा
अपर्णा शक्तिपीठ में माता सती के बाएं पैर का पायल गिरा था। यहां देवी की अपर्णा या अर्पान के रूप में जो कुछ भी नहीं खातीं और भगवान शिव को बैराभा के रूप में पूजा की जाती है।
कैसे पहुंचें ?
हवाई मार्ग से निकटतम हवाई अड्डा ढाका है, जहां पहुंचकर 28 किमी दूर शेरपुर (सेरापुर) जो भवानीपुर गांव करवतया नदी के किनारे पर है जाना है। यहीं देवी का शक्तिपीठ स्थित है। यहां आने के लिए वीजा आवेदन करना पड़ेगा।
यशोर - यशोरेश्वरी
बांग्लादेश के सातखिरा जिले में यशोर नामक स्थान पर माता सती के हाथ की हथेली गिरी थी। इसकी शक्ति को यशोरेश्वरी और भैरव को चण्ड, शिव को चंद्र कहते हैं।
माना जाता है कि यह मंदिर 400 साल पुराना है और कभी यहां 100 से अधिक दरवाजे थे, लेकिन मुगलों ने इसे खंडित कर दिया। बाद में यहां के शासक लक्ष्मण सेन और प्रपाद आदित्य ने इसका जीर्णोद्धार करवाया। ऐसा कहते हैं कि सतखीड़ा के हिंदू और मुस्लिम मिलकर इस मंदिर की रक्षा कर करते हैं। साल में एक बार होने वाले भव्य मेले के आयोजन में आने वाले धनराशि और आभूषण को वहां के ही लोगों में बांट दिया जाता है।
कैसे पहुंचें ?
हवाई मार्ग से पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा बांग्लादेश की राजधानी ढाका में है। भारत के प्रमुख शहरों से इस पवित्र स्थल तक बसें भी जाती हैं। बांग्लादेश जाने के लिए वीजा लेना पड़ता है।
तिब्बत में शक्तिपीठ
मानसा - दाक्षायणी
तिब्बत में मानसरोवर के इस शक्तिपीठ वाले स्थान पर माता सती का दायां हाथ गिरा था। मानसरोवर झील के नीचे, तिब्बत क्षेत्र में, दक्षिणायनी शक्ति पीठ है, जिसे मनसा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यहां शक्ति की स्वरूप देवी मनसा और शिव के स्वरूप भगवान अमर की पूजा की जाती है। यहां पर देवी मंदिर की जगह लोग एक पत्थर की पूजा करते हैं। इस स्थान पर सिंधु, सतलज, ब्रह्मपुत्र जैसी नदियां बहती हैं। नवरात्र के अलावा साल के बाकी दिनों में भी अगर मौसम ठीक रहता है तो श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। तिब्बती धर्मग्रंथ ‘कंगरी करछक’ के अनुसार मानसरोवर की देवी ‘दोर्जे फांग्मो’ का यहां निवास स्थान है।
कैसे पहुंचें ?
यह शक्तिपीठ बहुत कठिन तीर्थस्थल है , यहां पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को परमिट लेना पड़ता है । साथ ही पहाड़ की ऊंचाइयों की यात्रा करनी पड़ती है। इसके लिए भी वीजा लेना पड़ता है।
नेपाल में शक्तिपीठ
नेपाल - महामाया
नेपाल के पशुपतिनाथ में स्थित इस शक्तिपीठ में मां सती के दोनों घुटने गिरे थे। हिंदुओं के इस महत्वपूर्ण शक्ति पीठ को गुह्येश्वरी शक्ति पीठ भी कहा जाता है।
कैसे पहुंचें ?
श्रद्धालु हवाई , रेल और सड़क मार्ग द्वारा काठमांडू पहुंच सकते हैं। यह शक्तिपीठ पशुपतिनाथ से 1 किमी पूर्व में स्थित है। यहां आने के लिए भारतीयों को वीजा की जरूरत नहीं।
पाकिस्तान स्थित शक्तिपीठ
हिंगलाज
पकिस्तान के करांची से 125 किमी उत्तर पूर्व में हिंगला या हिंगलाज शक्तिपीठ में माता सती का सिर गिरा था।हिंगलाज शक्ति पीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित अल्पसंख्यक हिंदू आबादी वाले सीमावर्ती देश में मौजूद है। लेकिन भारत और पाकिस्तान में मौजूद विभिन्न हिंदू समूहों के लिए यह शक्ति पीठ महत्वपूर्ण है । कराची से यहां की वार्षिक तीर्थ यात्रा अप्रैल महीने में शुरू होती है। पाकिस्तान में लोग इस यात्रा को 'नानी की हज' कहते हैं।
कैसे पहुंचें ?
यह स्थान पाकिस्तान के कराची से लगभग 250 किलोमीटर दूर है और यहां हवाई, रेल और सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है। भारतीयों को यहां आने के लिए वीजा आवेदन करना पड़ेगा।
नेपाल में शक्तिपीठ
गंडकी - गंडकी
नेपाल में गंडकी नदी के तट पर पोखरा नामक स्थान पर माता सती का मस्तक या गंडस्थल गिरा था। यहां सती देवी को गंडकी चंडी के रूप में और भगवान शिव को चक्रपाणि के रूप में पूजा जाता है । इस शक्तिपीठ को मुक्तिनाथ शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है।
कैसे पहुंचें ?
मुक्तिनाथ मंदिर का निकटतम हवाई अड्डा जोमसोम है। काठमांडू से मुक्तिनाथ के लिए कोई सीधी उड़ान नहीं है। हवाई मार्ग से काठमांडू पहुंच कर पोखरा तक के लिए उड़ान लेना पड़ता है। और फिर पोखरा से जेमॉम हवाई अड्डा पहुंच कर मुक्तिनाथ शक्तिपीठ तक जीप से जा सकते हैं।
सड़क मार्ग से मुक्तिनाथ मंदिर काठमांडू से पोखरा तक पृथ्वी राजमार्ग और फिर बेनी, तातोपानी, घासा, मार्फा, जोमसोम और कागबेनी शहरों से होते हुए पहुंच सकते हैं।
काठमांडू से मुक्तिनाथ मंदिर हेलीकॉप्टर से भी पहुंच सकते हैं। वहां से लगभग 30 मिनट की पैदल दूरी पर रानीपौवा से मुक्तिनाथ मंदिर तक आसानी से जा सकते हैं।
श्रीलंका स्थित शक्तिपीठ
लंका - इंद्राक्षी
श्रीलंका के त्रिंकोमाली में माता सती के पायल गिरी थी। इसकी शक्ति को इंद्राक्षी और भैरव को राक्षसेश्वर कहते हैं। यह शक्तिपीठ श्रीलंका में जाफना से 35 किमी दूर नल्लूरनैनातिवि (मणिप्लालम) में स्थित है। यहां भगवान राम और रावण ने भी पूजा की थी।
यहां भगवान शिव का एक मंदिर है जिसे त्रिकोणेश्वर या कोणेश्वरम कहा जाता है। पर्यटक इसे शांति का स्वर्ग भी कहते हैं।
कैसे पहुंचें ?
श्रीलंका की राजधानी कोलंबो हवाई और समुद्री मार्ग दोनों से पहुंचा जा सकता है। भारतीय तीर्थ यात्रियों को कोलंबो जाने के लिए वीजा लेना पड़ेगा। यह मंदिर कोलंबो से 250 किमी दूर त्रिकोणमाली नाम की जगह पर चट्टान पर बना है।
( लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।)