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Ashtavinayak Darshan: महाराष्ट्र के अष्टविनायक दर्शन

Ashtavinayak Darshan: अष्टविनायक अर्थात "आठ गणेश" वाले इस अष्टविनायक दर्शन में श्री गणेश जी के कुल आठ ऐतिहासिक मंदिर आते हैं। ये सभी मंदिर महाराष्ट्र के पुणे शहर और रायगढ़ के आसपास स्थित हैं।

Sarojini Sriharsha
Published on: 6 Jun 2024 3:12 PM GMT (Updated on: 13 Jun 2024 3:39 PM GMT)
Ashtavinayak Darshan of Maharashtra
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महाराष्ट्र के अष्टविनायक दर्शन: Photo- Social Media

Ashtavinayak Darshan: हिन्दू धर्म में श्री गणेश जी को प्रथम पूज्य देव माना जाता है। श्री गणेश हिंदू धर्म में विघ्नहर्ता, विद्या, एकता और समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। महाराष्ट्र के लोगों में भगवान गणेश के प्रति बहुत अधिक आस्था देखने को मिलती है। महाराष्ट्र राज्य की अष्टविनायक यात्रा यानी आठ विशेष गणेश मंदिरों की, की जाने वाली एक तीर्थयात्रा यहां के लोगों में सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ यात्रा के रूप में माना जाता है। इन अष्टविनायक के आठ गणपतियों का वर्णन पुराणों में भी मिलता है।

अष्टविनायक अर्थात "आठ गणेश" वाले इस अष्टविनायक दर्शन में श्री गणेश जी के कुल आठ ऐतिहासिक मंदिर आते हैं। ये सभी मंदिर महाराष्ट्र के पुणे शहर और रायगढ़ के आसपास स्थित हैं। कुल 6 मंदिर महाराष्ट्र के पुणे शहर और 2 रायगढ़ के आस पास स्थित हैं। ऐसी मान्यता है कि इन आठ अलग-अलग मंदिरों में भगवान गणेश की आठ अलग मूर्तियां हैं जो एकता, समृद्धि, विद्या और बाधाओं को दूर करने के प्रतीक हैं।

इन मंदिरों में से प्रत्येक मंदिर की मूर्तियों का अपना एक विशेष इतिहास है, जो एक दूसरे से अलग है। गणेश जी की मूर्तियों में भी भिन्नता उनके रूप और सूंड में साफ तौर से देखा जा सकता है। इन मंदिरों में कुछ गणेश जी को 'स्वयंभू' कहा जाता है जिसका मतलब होता है कि इन्हें किसी मनुष्य ने नहीं बनाया बल्कि प्रकृति द्वारा निर्मित हैं।

शास्त्रों के अनुसार अष्टविनायक के सभी आठ मंदिरों के दर्शन के बाद पहले मंदिर का दर्शन एक बार और करना पड़ता है, तभी इस यात्रा का फल मिलता है। ये भगवान गणेश के आठ शक्तिपीठ भी कहे जाते हैं। इन पवित्र मूर्तियों के मिलने के क्रम के अनुसार ही अष्टविनायक की यात्रा की जाती है। अष्टविनायक मंदिर की यात्रा इस क्रम में शुरू करनी चाहिए:

1. मोरगांव में मोरेश्वर गणेश ,

2. सिद्धटेक में सिद्धिविनायक गणेश ,

3. पाली में बल्लालेश्वर गणेश ,

4. महाड में वरदविनायक गणेश ,

5. थेउर में चिंतामणि गणेश ,

6. लेन्याद्रि में गिरिजात्मज गणेश ,

7. ओज़ार में विघ्नहर गणेश ,

8. रांजणगांव में महागणपति गणेश , और

अंतिम में फिर मोरेश्वर गणेश मंदिर के दर्शन कर अष्टविनायक यात्रा पूरी होती है।

मोरेश्वर गणेश मंदिर, मोरगांव : Photo- Social Media

मोरेश्वर गणेश मंदिर, मोरगांव : Photo- Social Media

मोरेश्वर गणेश मंदिर, मोरगांव :

भारत के महाराष्ट्र राज्य में मोरगांव से अष्टविनायक यात्रा की शुरूआत इसी मंदिर से की जाती है। यह मंदिर पुणे जिले से करीब 80 किमी की दूरी पर स्थित है। सड़क मार्ग से यह मंदिर अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।

करीब 50 फीट ऊंचा यह मंदिर बेहद खूबसूरत है। इस मंदिर में चार दिशाओं में चार प्रवेश द्वार हैं, जो चारों युग सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग के प्रतीक माने जाते हैं। लेकिन पर्यटक मंदिर में प्रवेश उत्तर की ओर से मुख्य प्रवेश द्वार से कर सकते हैं।

मंदिर के प्रांगण में दो विशाल लैंप टावर हैं। मंदिर के सामने एक बड़ा सा चूहा है। यहां मंदिर में भगवान गणेश के सामने नंदी की एक विशाल मूर्ति भी है, जो एक गणेश मंदिर में होना असामान्य बात है क्योंकि नंदी की प्रतिमा शिव मंदिरों में होते हैं। इस नंदी की मूर्ति के संबंध में कहा जाता है कि प्राचीन काल में शिवजी और नंदी इस क्षेत्र में एक बार विश्राम के लिए रुके थे और बाद में नंदी ने यहां से जाने से इंकार कर दिया। तभी से नंदी और मूषक दोनों ही मंदिर के रक्षक के रूप में यहां विराजमान हैं। इस मंदिर के गणेश की चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं।

यहां माघ शुक्ल चतुर्थी की गणेश जयंती और भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी की गणेश चतुर्थी जैसे विशेष त्योहार पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिलती है।

सिद्धिविनायक मंदिर, सिद्धटेक: Photo- Social Media

सिद्धिविनायक मंदिर, सिद्धटेक: Photo- Social Media

सिद्धिविनायक मंदिर, सिद्धटेक:

महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के कर्जत तालुका में सिद्धटेक नामक गांव में, पुणे से करीब 48 किलोमीटर दूर भीमा नदी के तट पर यह भगवान गणेश का मंदिर स्थित है। इस मंदिर को सिद्धिविनायक के नाम से जाना जाता है। अष्टविनायक के सभी आठ मूर्तियों में से यह लगभग तीन फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी गणेश जी की एकमात्र मूर्ति है जिसकी सूंड दाहिनी ओर है, जो इस मूर्ति को खास बनाती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने यहीं से सिद्धि यानि विशेष शक्तियां प्राप्त की थी। कहा जाता है भगवान गणेश यहां आनेवाले अपने भक्तों की हर इच्छा पूरी करते है।

यह मंदिर सिद्धटेक नामक एक छोटी पहाड़ी पर स्थित है जहां लोग पहाड़ी के चारों ओर सात बार प्रदक्षिणा कर भगवान गणेश को खुश करने का प्रयास करते हैं। भाद्रपद महीने में गणेश चतुर्थी और माघ माह में गणेश जयंती पर भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है।

बल्लालेश्वर मंदिर, पाली:  Photo- Social Media

बल्लालेश्वर मंदिर, पाली: Photo- Social Media

बल्लालेश्वर मंदिर, पाली:

यह मंदिर महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ जिले के रोहा से 28 किमी और मुंबई-पुणे हाईवे पर पाली से टोयन में और गोवा राजमार्ग पर नागोथाने से पहले 11 किमी की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर मशहूर सारसगढ़ किले और अम्बा नदी के बीच स्थित है। गणेशजी के एक भक्त बल्लाल के नाम पर इस मंदिर का नाम बल्लालेश्वर पड़ा।

ऐसा कहा जाता है कि एक बार बल्लाल नामक एक भक्त को गणेशजी की प्रतिमा के साथ उसके परिवारवालों ने जंगल में फेंक दिया था। बल्लाल बेहोशी की हालत में भी अपने देव गणेशजी के मंत्रों का जाप कर रहा था जिससे प्रसन्न होकर गणेशजी ने उसे दर्शन दिया और वरदान स्वरूप उसके आग्रह पर उसी स्थान पर निवास करने लगे।

पहले यह मंदिर लकड़ी का था जिसका 1780 में जीर्णोद्धार कर पत्थर का बनाया गया। इस मंदिर के मुख पूर्व दिशा में होने के कारण प्रतिदिन सुबह पूजा के दौरान सूर्य की किरणें गणेश प्रतिमा पर पड़ती हैं। इस मंदिर में एक विशाल घंटा है जिसके बारे में कहा जाता है कि पुर्तगालियों पर विजय के बाद बाजीराव प्रथम के भाई चिमाजीअप्पा ने इसे उपहार स्वरूप में मंदिर को दिया था। गणेश चतुर्थी और संकष्टी जैसे पर्व खासकर इधर मनाया जाता है।

वरदविनायक मंदिर, महाड: Photo- Social Media

वरदविनायक मंदिर, महाड: Photo- Social Media

वरदविनायक मंदिर, महाड:

महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के खालापुर तालुका के महाड गांव में यह मंदिर स्थित है। अन्य अष्टविनायक मूर्तियों की तरह इस मंदिर की "मूर्ति" भी "स्वयंभू" है जिसे पास की एक झील से लाया गया था। सन 1725 में सूबेदार रामजी महादेव बिवलकर ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। पूर्व दिशा में मुख वाले इस मंदिर के चारों दिशाओं में चार हाथियों की मूर्तियां हैं जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहती है। ऐसा माना जाता है कि 1892 से लगातार इस मंदिर के अंदर एक तेल का दीपक जिसे "नंदादीप" कहते हैं जल रहा है। दुनियाभर से लोग इस मंदिर में भगवान गणेश के दर्शन के लिए आते हैं। इस मंदिर के गर्भगृह में भक्तों को प्रवेश कर पूजा करने की अनुमति है।

चिंतामणि गणेश, थेउर : Photo- Social Media

चिंतामणि गणेश, थेउर : Photo- Social Media

चिंतामणि गणेश, थेउर :

यह मंदिर महाराष्ट्र के पुणे जिले से 30 किलोमीटर दूर हवेली इलाके में स्थित है। मुला और मुथा नदियों का संगम इस मंदिर के पास है। ऐसा कहा जाता है कि यदि कोई विचलित मन वाला भक्त जीवन से दुःखी है और वह इस मंदिर का दर्शन करने आता है तो उसपर गणेश जी के कृपा से सभी समस्याएं दूर हो जाती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने अपने विचलित मन को वश में करने के लिए इस जगह पर तपस्या की थी।

चिंतामणि गणपति के दर्शन मात्र से शारीरिक, आर्थिक और मानसिक रूप से बीमार लोगों की सभी चिंताएं समाप्त हो जाती हैं। माता जिस तरह अपने बच्चों की चिंता दूर करती है वैसे ही चिंतामणि गणेश अपने भक्तों की परेशानी दूर करते हैं। चिंतामणि गणेश के नाभि में हीरा है और उनके माथे पर शेषनाग बना हुआ है।

गिरिजात्मज गणेश, लेन्याद्री: Photo- Social Media

गिरिजात्मज गणेश, लेन्याद्री: Photo- Social Media

गिरिजात्मज गणेश, लेन्याद्री:

महाराष्ट्र के पुणे-नासिक राजमार्ग पर पुणे से करीब 90 किमी दूरी पर यह मंदिर स्थित है। लेन्याद्री इलाके के नारायणगांव से यह मंदिर 12 किमी दूर है। गिरिजात्मज का मतलब होता है मां पार्वती के पुत्र गणेश। लेन्याद्री पहाड़ पर 18 बौद्ध गुफाओं में से 8वीं गुफा में गिरिजात्मज विनायक मंदिर बनाया गया है। एक बड़े पत्थर को काटकर यह पूरा मंदिर बनाया गया है। गुफाओं में बने इस मंदिर को गणेश गुफा के नाम से भी जाना जाता है।

विघ्नहर गणेश, ओज़ार: Photo- Social Media

विघ्नहर गणेश, ओज़ार: Photo- Social Media

विघ्नहर गणेश, ओज़ार:

महाराष्ट्र के पुणे के निकट ओझर जिले के जूनर क्षेत्र में यह मंदिर स्थित है। पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में विघनासुर नामक एक असुर था जो साधु संतों का जीना दुभर कर रखा था। उन संतों ने भगवान गणेश से उन्हें इस कष्ट से मुक्ति दिलाने का आग्रह किया। गणेश जी ने इसी क्षेत्र में उस असुर का वध कर उन संतों को मुक्त किया। उसके बाद से यहां गणेश जी का मंदिर स्थापित हुआ जिसका नाम विघ्नेश्वर, विघ्नहर्ता और विघ्नहर मंदिर पड़ा। हर गणेश त्योहार में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखी जा सकती है।

महागणपति गणेश, रांजणगांव: Photo- Social Media

महागणपति गणेश, रांजणगांव: Photo- Social Media

महागणपति गणेश, रांजणगांव:

महाराष्ट्र राज्य के पुणे-अहमदनगर राजमार्ग पर 50 किमी की दूरी पर पुणे के रांजणगांव में यह मंदिर स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 9-10वीं सदी के बीच हुआ है। इस मंदिर के पूर्व दिशा में एक विशाल और सुंदर प्रवेश द्वार है जिससे प्रवेश पाकर गणेश जी की अद्भुत प्रतिमा का दर्शन कर सकते हैं। ऐसा कहा जाता है कि मूल मूर्ति इस मंदिर के तहखाने में छिपी हुई है। दरअसल विदेशी आक्रमण के समय इन आक्रमणकारियों से बचाने के लिए तहखाने में इस मूर्ति छिपा दिया गया था।

कैसे पहुंचें?

हवाई, रेल या सड़क मार्ग से मुंबई या पुणे पहुंचकर कोई भी पर्यटक इस अष्टविनायक यात्रा का सुखद लाभ ले सकता है। पुणे से अष्टविनायक यात्रा बस, कार या टैक्सी द्वारा की जा सकती है । वैसे मुंबई से करीब 110 किमी दूर मुंबई-गोवा रोड से आप पाली में बल्लालेश्वर के दर्शन कर सकते हैं। यह मुंबई से निकटतम मंदिर है। किसी भी मौसम में इस अष्टविनायक दर्शन का प्लान बनाया जा सकता है। माघी गणेश जयंती और भाद्रपद गणेश चतुर्थी के मौके पर भारी संख्या में श्रद्धालु इन मंदिरों में आते हैं।

Shashi kant gautam

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