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Asirgarh Fort Shiv Temple: मध्य प्रदेश के इस मंदिर में आज भी अश्वत्थामा करते हैं भोलेनाथ की पूजन
Asirgarh Fort Shiv Temple: भारत में एक से बढ़कर एक प्रसिद्ध देव स्थल मौजूद है जो अपने रहस्य के लिए पहचाने जाते हैं।
Asirgarh Fort Shiva Temple : भारत में एक से बढ़कर एक स्थान है जहां देवी देवताओं को लेकर बहुत सारी मान्यताएं हैं। यहां एक से बढ़कर एक प्राचीन मंदिर है जिसका इतिहास काफी दिलचस्प है। हर मंदिर देश की आध्यात्मिकता और कल को दर्शाता है। वहीं हमारे देश में ऐसे भी बहुत से मंदिर है जिनमें ऐसे राज छुपे हैं जिसे वैज्ञानिक भी पर्दा नहीं उठा पाए हैं। तो चलिए आज का आर्टिकल में हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में विस्तृत जानकारी देंगे जो की महाभारत काल से जुड़ा हुआ है और अपने इतिहास के लिए जाना जाता है।
यहां पूजन करते हैं अश्वत्थामा
दरअसल आज हम आपको मध्य प्रदेश की बुरहानपुर जिले में स्थित असीरगढ़ किले के बारे में बताएंगे यहां स्थित मंदिर में द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा भगवान शिव की पूजा आराधना किया करते थे। ऐसी मान्यता है कि ब्रह्मा मुहूर्त से पहले अश्वत्थामा भोलेनाथ की पूजा करने के लिए जाते थे। उस वक्त कोई चहल पहल नहीं होती थी जिस कारण वह शांत मन से उनकी आराधना कर पाते थे। पुजारी से मिली जानकारी के अनुसार अश्वत्थामा सुबह मंदिर के पट खुलने से पहले ही भगवान शंकर की पूजा करके वहां से चले जाते थे। वहीं यह मंदिर अभी भी रहस्य में बना हुआ है। दरअसल हर रोज मंदिर के पट खुलने पर शिवलिंग पर ताजा फूल और गुलाब चढ़ा हुआ मिलता है, जिसे आज तक कोई भी सुलझा नहीं पाया है ।
चोटी पर है तालाब
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि पहाड़ की चोटी पर एक तालाब बना हुआ है ।चाहे जितना भी सूखा पड़ जाए यह तालाब आज तक सूखा नहीं है। वहीं इसी तालाब के आगे गुप्तेश्वर महादेव का मंदिर भी है जो कि चारों ओर खाइयो से घिरा हुआ है जहां एक गुप्त रास्ता है जो की खांडव वंश से होता हुआ सीधे इसी मंदिर में निकलता है। लोगों का मानना है कि अश्वत्थामा रोज सुबह ब्रह्म मुहूर्त से पहले इस मंदिर में इसी रास्ते से प्रवेश करके आते हैं और पूजा करके चले जाते हैं।
पड़ती है भक्तों की भीड़
इस मंदिर में शिवरात्रि के अवसर पर भक्तों की काफी ज्यादा भीड़ देखने को मिलती है बता दें कि मंदिर के बाहर एक नदी है जिसके सामने शिवलिंग और मूर्तियां स्थापित है। इस मंदिर में किसी तरह की आधुनिक सुविधाएं नहीं है इसके बावजूद यहां पर सावन और शिवरात्रि में श्रद्धालु पहुंचते हैं।