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Aurangzeb Tomb: महज़ 4 रूपए में बनकर तैयार हुई थी औरंगज़ेब की कब्र, जानिए क्या थी इसके पीछे की वजह

Aurangzeb Tomb: क्या आप जानते हैं कि मुगलों के बादशाह औरंगज़ेब की कब्र पर सिर्फ 4 रूपए और दो आने क्यों खर्च किये गए थे? आइये विस्तार से आपको बताते हैं इसकी पूरी वजह।

Shweta Srivastava
Published on: 22 March 2025 8:02 PM IST
Aurangzeb Tomb
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Aurangzeb Tomb (Image Credit-Social Media)

Aurangzeb Tomb: औरंगजेब की कब्र को लेकर जहां एक तरफ नागपुर में बवाल मचा हुआ है वहीं दूसरी तरफ कई ऐसी बातें हैं जो औरंगजेब की कब्र से जुड़ी है जिन्हें शायद ही पहले कोई जानता होगा। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि औरंगजेब की कब्र को बनाने में कितने पैसे लगे थे और आखिर क्यों उसकी कब्र को इतना मामूली और साधारण बनाया गया था।

महज़ 4 रूपए में बनकर तैयार हुई थी औरंगज़ेब की कब्र

औरंगजेब दिल्ली का शासक था दिल्ली में शासन करता था लेकिन उसकी कब्र संभाजी नगर (पहले औरंगाबाद) में ही क्यों बनी? ऐसे कई सवाल है जो औरंगजेब की कब्र से जुड़े हैं। ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि क्यों मुगलों के इस बादशाह ने अपनी कब्र को बनाने में महज़ चार रुपए दो आने लगाने को कहा था। क्यों मुगलों के बादशाह औरंगजेब की कब्र बनने में इतने कम रूपए खर्च किए गए। वहीँ इतना ही नहीं औरंगजेब की एक ऐसी इच्छा भी थी जिसका सच जानने के बाद आपका दिमाग भी चकरा जाएगा।

दरअसल जब शाहजहां दिल्ली पर हुकूमत कर रहा था तब उसने अपने तीसरे बेटे औरंगजेब को सूबेदार बनाया इसके बाद उसने उसे दौलताबाद भेजा लेकिन औरंगजेब को दौलताबाद पसंद नहीं आया। उसने कुछ समय बाद ही औरंगाबाद को अपना केंद्र बना लिया और वहीं से शासन करने लगा। वहीँ इतिहासकारों की माने तो औरंगजेब को औरंगाबाद काफी पसंद आ गया। यहीं रहकर उसने पूरा ढक्कन भी घुमा इतना ही नहीं यहीं रहकर के उसने चिश्ती परंपरा के प्रवर्तक सैयद जैनुद्दीन दाऊद सिराजी से शिक्षा भी ली इसके बाद औरंगजेब ने सिराजी को ही अपना गुरु मान लिया था।

इसके बाद साल 1658 में औरंगजेब बादशाह बन गया था। वह दिल्ली की सल्तनत को चला रहा था लेकिन धीरे-धीरे जब उसकी उम्र ढलने लगी तो उसको कई सारी चिंताएं सताने लगी उसे अपने द्वारा किये पाप याद आने लगे। उसे लगा कि कहीं ऐसा ना हो जैसे उसने अपने भाइयों का खून बहाया वैसे ही उसके बेटे भी आपस में लड़ने लगे इसलिए उसने वसीयत में बेटों के बीच अपनी सियासत का बंटवारा पहले ही कर दिया। ऐसे में औरंगजेब साल 1681 में दक्कन लौट आया और अहमदनगर किले को अपना ठिकाना बना दिया।

क्यों महज़ ₹4 में बनी औरंगजेब की कब्र

औरंगजेब अपने आखिरी समय में काफी सादा जीवन जीने लगा था इतना ही नहीं उसने अपनी वसीयत में भी इस बात का जिक्र किया था कि उसके मकबरे पर सिर्फ उतनी ही धनराशि को खर्च किया जाए जो उसने खुद कमाई है। आपको बता दें कि औरंगजेब टोपिया सिलकर और कुरान की प्रति लिखकर कमाई किया करता था। ऐसे में उसने हिदायत दी थी कि उसके मकबरे पर चार रुपए दो आना ही इस्तेमाल किया जाए। इस रकम को उसने अपने महलदार के पास भी रखवा दिया था। इसके अलावा उसने अपनी कब्र पर किसी भी तरह का कोई छायादार पेड़ लगाने से भी मना कर दिया था।

औरंगजेब के कहे मुताबिक उसकी कब्र चार रुपए दो आने में तैयार कर दी गई लेकिन सालों बाद 1904-05 के दौरान ब्रिटिश हुकूमत की ओर से भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल लॉर्ड कर्जन औरंगजेब के मकबरे पर पहुंचे और वो मुगल बादशाह की कब्र को इतना मामूली और सादगी पूर्ण देखकर के आश्चर्य में रह गए इसके बाद कर्जन ने ही आदेश दिया और इस मकबरे के आसपास संगमरमर का काम कराया गया और सजावट कराई गई औरंगाबाद में ही औरंगजेब ने अपनी पत्नी के लिए बीवी का मकबरा बनवाया था जिसे दक्कन का ताज भी कहा जाता है।

Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

Content Writer

मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

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