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Badrinath Dham Yatra 2023: धर्म व रोमांच दोनों का उठा सकते हैं लुत्फ़

Badrinath Dham Yatra 2023: हिंदुओं के चार धामों में प्रमुख और कठिन धाम बद्रीनाथ को बद्रीनारायण के नाम से भी जाना जाता है। यह अंतिम धाम भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित है।

Sarojini Sriharsha
Published on: 31 Jan 2023 3:10 PM GMT
Badrinath Dham Yatra 2023
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Badrinath Dham Yatra 2023 (Socia Media)

Badrinath Dham Yatra 2023: सनातन या हिंदू धर्म में चार धाम की यात्रा का जीवन में बड़ा महत्व होता है। एक ओर इस मनुष्य जीवन में धर्म और संस्कृति को समझने का मौका मिलता है। वहीं दूसरी ओर ऐसा माना जाता है की इससे मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। सारे पाप धुल जाते हैं। हिंदुओं के चार धामों में प्रमुख और कठिन धाम बद्रीनाथ को बद्रीनारायण के नाम से भी जाना जाता है। यह अंतिम धाम भारत के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित है। बद्रीनाथ मंदिर हिमालय की वादियों में अलकनंदा नदी के तट पर बसा हुआ एक प्राचीन मंदिर है, जहां भगवान विष्णु के एक रूप की पूजा होती है। बद्रीनाथ मंदिर का रंगीन कपाट दूर से ही सबका मन मोह लेता है।

इस माह में बंद हो जाता है कपट

साल में छह महीने मंदिर बर्फ से ढका रहता है। अप्रैल- मई महीने के अक्षय तृतीया के दिन इसके कपाट खुलते हैं और नवंबर महीने में दीपावली के बाद भाई दूज के दिन बंद कर दिए जाते हैं। मंदिर के कपाट बंद होने के बाद छह महीने तक एक अखंड ज्योति जलती रहती है और बद्रीनाथ की छवि को ज्योतिर्मठ के नरसिंह मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है। उतराखंड राज्य में यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ सामूहिक रूप से चार धाम के नाम से जाने जाते हैं। जिनमें बद्रीनाथ एक प्रमुख तीर्थस्थल है।

हिंदू शास्त्रों में बद्रीनाथ को बद्रीकाश्रम कहा गया है। यहां विष्णु के नर-नारायण के दोहरे रूप में पूजा की जाती है। कपाट खुलने के बाद इस मंदिर में भगवान विष्णु के दर्शन हर दिन सुबह 6 बजे से रात 8 बजे तक कर सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि 8वीं शताब्दी तक यह एक बौद्ध मंदिर था। बाद में आदि शंकराचार्य ने इसे एक हिंदू मंदिर में परिवर्तित कर दिया। कुछ लोग बताते हैं कि इस जगह बेर यानी बद्री की बहुत झाड़ियां हुआ करती थी, इसलिए इसे बद्रीवन के नाम से भी पुकारा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार किसी मुनि के श्राप से भगवान विष्णु यहां आकर तपस्या करने लगे। उन्हें धूप , बारिश आदि से बचाने के लिए माता लक्ष्मी ने बेर के पेड़ के रूप में रक्षा की। इसलिए यह स्थान बद्री नारायण के रूप में पूजा जाता है।

आदि शंकराचार्य के समय इस स्थान का नाम बद्रीनाथ पड़ा। महर्षि वेद व्यास का जन्म बद्रीवन में ही हुआ था। यहीं उनका आश्रम भी था, इसलिए महर्षि वेदव्यास बादरायण के नाम से भी जाने जाते हैं। इसी आधार पर मंदिर का नाम बद्रीनाथ पड़ा। वर्तमान में स्थित मंदिर का निर्माण गढ़वाल नरेश ने कराया था। मंदिर के शीर्ष पर इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने तीन सोने के कलश रखवाए थे। इस मंदिर में पूजा करने वाले मुख्य पुजारी रावल कहे जाने वाले केरल के नंबूदरी ब्राह्मण हैं। ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में पांडवों ने अपने पितरों का पिंडदान यहीं किया था। तबसे आज तक बद्रीनाथ के ब्रह्मकपाल क्षेत्र में लोग अपने पितरों का पिंडदान करके जाते हैं।

कैसे पहुंचे?

बद्रीनाथ धाम पहुंचने के लिए देश के किसी भी कोने से देहरादून के जॉली ग्रांट एयरपोर्ट आकर यहां से सड़क मार्ग द्वारा बदरीनाथ आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां रेल मार्ग से निकटतम स्टेशन हरिद्वार और देहरादून है। बद्रीनाथ मंदिर पहाड़ पर नहीं बल्कि समतल भूमि पर स्थित है । इसलिए सड़क मार्ग से गाडियां मंदिर के समीप पार्किंग तक आसानी से जा सकती हैं। यहां का मौसम पूरे साल ठंडा रहता है। मंदिर के कपाट खुलने के बाद मई से सितंबर तक कभी भी आया जा सकता है। अचानक यहां का मौसम बदलता रहता है। इसलिए छाता या रेनकोट जैसे समान अपने साथ लेकर जाएं। यहां सर्दियों के समय भारी बर्फबारी होती है । जिससे तापमान गिर जाता है। वैसे ठंडी जगह होने के कारण आपको गरम कपड़े लेकर जाना ही पड़ेगा। रास्ते में आपको लोकल फूड, मोमो, नूडल्स जैसे आहार खाने के लिए मिल सकते हैं। धार्मिक स्थल होने के कारण इधर मांस मदिरा वर्जित है। यहां ठहरने के लिए कई होटल, गेस्ट हाउस और धर्मशाला की सुविधा है।

आसपास अन्य पर्यटक स्थल

1. चरणपादुका

यह स्थान बद्रीनाथ शहर से 3 किलोमीटर दूर एक पर्वत पर स्थित है। ऐसा मानना है की यहां भगवान विष्णु के पदचिन्ह हैं। जिसे शिलाखंड के रूप के पूजा जाता है। इस धार्मिक स्थल पर स्थित इस शिलाखंड के दर्शन से भक्तों के कई बीमारियां ठीक हो जाती हैं।

2.नीलकंठ चोटी

उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल की नीलकंठ की चोटी एक प्रमुख चोटी है। आमतौर पर केदारनाथ और बद्रीनाथ से रोमांचक ट्रेक के लिए पर्यटक यहां आते हैं।

3.वसुधारा जलप्रपात

बद्रीनाथ से करीब 9 किमी दूर माणा गांव में यह जलप्रपात स्थित है। 12,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह जलप्रपात अलकनंदा नदी से मिलता है। ऐसा माना है कि महाभारत काल में यह स्थान पांडवों का विश्राम स्थल था। इस जगह भी ट्रैकिंग करके पहुंचा जा सकता है।

4.व्यास गुफा

बद्रीनाथ के करीब माणा जिले में यह पवित्र स्थल है। कहा जाता है कि ऋषि वेद व्यास ने यहां महाकाव्य महाभारत की रचना भगवान श्रीगणेश की मदद से की थी। इस गुफा में एक अनोखी चीज देखने को मिलती है वो है एक लिपि के पन्नों से मिलती जुलती छत की दीवार। गर्मी की छुट्टियों में इस जगह का धार्मिक और रोमांचक ट्रीप का प्लान करके आप एक अलग अनुभूति कर सकते हैं। पुराने जमाने के लोग वृद्धावस्था में इस यात्रा पर निकलते थे । लेकिन अब हर उम्र के लोग इस पर जाकर एक अद्भुत और आलौकिक अनुभव पा सकते हैं।

( लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)

Durgesh Sharma

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