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baidyanath jyotirlinga: महाबली रावण ने लंका जाते वक्त रख दिया था शिवलिंग...फिर कहे लाए वैद्यनाथ धाम
Baidyanath Jyotirlinga Temple: सावन के महीने में हर साल देवघर में श्रावणी मेला लगता है जहां कावड़ियां गंगाजल लेकर श्रावण सोमवार को शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। यहां आने वाले हर भक्त शिव और शक्ति दोनों की पूजा करते हैं।
Baidyanath Jyotirlinga Temple: भारत के झारखंड राज्य के देवघर शहर में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रमुख वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित है। ज्यादातर लोग इसे बाबा बैजनाथ धाम के नाम से भी जानते हैं। ऐसा मानना है कि यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना भगवान शिव पूरी करते हैं इसलिए यहां के शिवलिंग को 'कामना लिंग' भी कहते हैं। यह विश्व का अकेला ऐसा शिव मंदिर है, जहां शिव और शक्ति एक साथ विराजमान हैं और यह जगह शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। इसलिए यहां श्रद्धालु जल का एक पात्र शिव को और एक माता पार्वती को अर्पित करते हैं।
यह है वैद्यनाथ बाबा की कथा...
जिन- जिन जगहों पर भगवान शिव साक्षात प्रकट हुए वहां ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई। हमारे देश में इसलिए 12 ज्योतिर्लिंगों का खास महत्व है। पुराणों में वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा लंकापति रावण से जुड़ी है। एकबार दस सिरों वाला रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर तप के दौरान अपने एक एक कर सिर काटकर शिवलिंग पर अर्पित कर रहा था। जब वह 10वां सिर काटने जा रहा था तभी भगवान शंकर प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और उससे वर मांगने को कहा। तब रावण ने भगवान शिव को कैलाश छोड़कर लंका में रहने की इच्छा जताई। शिव ने इस शर्त पर कामना लिंग ले जाने की अनुमति दी कि अगर तुम रास्ते में कहीं भी शिवलिंग को रखा तो मैं वहीं रह जाऊंगा वहां से उठा नहीं पाओगे। रावण शर्त के लिए तैयार हो गया। कैलाश से शिव के जाने की बात सुनकर सभी देवता चिंतित होकर भगवान विष्णु से प्रार्थना करने गए की इस समस्या का कोई हल निकालें।
तब भगवान विष्णु ने वरुण देव को बताया कि वे आचमन के समय रावण के पेट में घुस जाए जिससे उसे लघुशंका आए। इसलिए जब रावण आचमन करके शिवलिंग को लेकर लंका की ओर चलने लगा तो देवघर के पास उसे लघुशंका लगी और विष्णु भगवान बैजू नामक एक ग्वाले के रूप में आकर उस लिंग को पकड़ने को तैयार हो गए, रावण कई घंटो तक लघुशंका करता रहा। उधर देर होने पर बैजू ने उस शिवलिंग को वहीं रख दिए। फिर वहां से रावण उस लिंग को उठा नहीं पाया। इसी लिए यह स्थान बैजनाथ या रावणेश्वर धाम के नाम से प्रसिद्ध है। आज भी बैजनाथ धाम में लघुशंका वाली जगह पर एक तालाब भी है। रावण के जाने के बाद सभी देवताओं ने वहां आकर भगवान शिव की पूजा की और इस तरह कामना लिंग नाम से वहां भगवान शिव की पूजा होने लगी।
यहां पर गिरा था माता सती का हृदय
वहीं दूसरी ओर यह स्थान शक्ति पीठ के रूप में भी पूजा जाता है। एक बार जब राजा दक्ष के अपमान के बाद सती के अग्निकुंड में समाहित होने के बाद सती के मृत शरीर को लेकर शिव तांडव कर रहे थे, तब विष्णु के चक्र से सती के कई टुकड़े कर दिए गए। वैद्यनाथ धाम में माता सती का हृदय गिरा था जिससे हृदय शक्ति पीठ के नाम से प्रसिद्ध है।
लगता है श्रावणी मेला, कई और हैं प्रमुख मंदिर यहां
सावन के महीने में हर साल देवघर में श्रावणी मेला लगता है जहां कावड़ियां गंगाजल लेकर श्रावण सोमवार को शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। यहां आने वाले हर भक्त शिव और शक्ति दोनों की पूजा करते हैं और खासकर शक्तिपीठ होने के कारण श्रद्धालु महिलाएं यहां से प्रसाद के रूप में सिंदूर जरूर ले जाती हैं। देवघर में बैजनाथ धाम के अलावा पर्यटकों के लिए अन्य जगहें भी घूमने लायक है जिनमें नौलखा , बासुकीनाथ , बैजू और माँ शीतला देवी का मंदिर प्रमुख है।
कैसे पहुंचें यहां?
हवाई मार्ग
यह जगह हवाई, सड़क और रेल मार्ग द्वारा देश के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। देवघर हवाई अड्डा जिसे बाबा बैद्यनाथ हवाई अड्डे के नाम से भी जाना जाता है घरेलू हवाई अड्डा है। शहर से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर यह स्थित है। यहां पहुंच कर टैक्सी द्वारा मंदिर दर्शन के लिए जा सकते हैं।
रेल मार्ग
जसीडीह जंक्शन यहां का मुख्य स्टेशन है जो देश के प्रमुख शहरों नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, रांची, पटना, वाराणसी और भुवनेश्वर आदि से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। देवघर में बैद्यनाथ धाम जंक्शन एक दूसरा रेलवे स्टेशन है । वही देवघर नामक एक तीसरा स्टेशन भी मुख्य शहर से 5 किमी की दूरी पर स्थित है।
सड़क मार्ग
वहीं, सड़क मार्ग से टैक्सी या बस द्वारा भी आसानी से देवघर पहुंचा जा सकता है। अक्टूबर से मार्च तक मौसम घूमने लायक होता है। दिसंबर से फरवरी तक अधिक ठंड होने के कारण आप गरम कपड़े रखना न भूलें।