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Bhagavathy Amman Temple: यहां देवी कन्याकुमारी ने किया था बाणासुर का वध, जानें इसका पौराणिक इतिहास
Bhagavathy Amman Temple Story: 3000 साल से भी ज्यादा पुराने इस मंदिर का न केवल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक महत्व भी है।
Bhagavathy Amman Temple Story: 3000 साल से भी ज्यादा पुराने इस मंदिर का न केवल धार्मिक बल्कि ऐतिहासिक महत्व भी है। कुमारी अम्मन मंदिर या कन्याकुमारी मंदिर समुद्र के किनारे स्थित है और भगवान शिव से विवाह करने के लिए आत्मदाह करने वाली कुंवारी देवी पार्वती के अवतार के लिए जाना जाता है। कुमारी अम्मन मंदिर या कन्याकुमारी मंदिर कन्याकुमारी, तमिलनाडु में स्थित है। अगर आप कभी कन्याकुमारी की यात्रा पर जाएं तो यहां एक जगह ऐसी है जो निश्चित रूप से आपको देखनी चाहिए वो है कुमारी अम्मन मंदिर, जिसे कन्याकुमारी मंदिर भी कहा जाता है। भारत के कई लोग तीर्थयात्रा और कुमारी अम्मन मंदिर के दर्शन करने आते हैं। समुद्र तट के किनारे स्थित यह शानदार मंदिर दुनिया के सबसे पवित्र मंदिरों में से एक है। कुमारी अम्मन मंदिर 108 शक्तिपीठों में से एक के रूप में माना जाता है, यह मंदिर देवी कन्या कुमारी का घर है।
मंदिर का निर्माण (Bhagavathy Amman Temple History)
कुमारी अम्मन मंदिर अथवा कन्याकुमारी मंदिर कन्याकुमारी, तमिलनाडु में स्थित है। समुद्र के तट पर स्थित 'कुमारी अम्मन मंदिर' दक्षिण भाषी लोगों की श्रद्धा और आस्था का प्रमुख केन्द्र है। इस मंदिर का निर्माण पाण्ड्य राजवंश के शासन काल में हुआ था। मंदिर में सोलह स्तम्भों का एक मंडप निर्मित है। मंदिर के गर्भगृह में स्थित अम्मन देवी की नयनाभिराम मूर्ति लोगों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती है। देवी की नथ में जड़ा हुआ शुद्ध कीमती हीरा दूर तक अपनी जगमगाहट बिखेरता है। इसी मंदिर से कुछ दूरी पर 'सावित्री घाट', 'गायत्री घाट', 'स्याणु घाट' व 'तीर्थ घाट' स्थित हैं। इन घाटों पर स्नान के उपरांत मंदिर में देवी दर्शनों की परंपरा है।
जिस स्थान पर 'हिन्द महासागर', 'अरब सागर' और 'बंगाल की खाड़ी' की धाराएँ भारत की धरती को चूमती हैं, ठीक वहीं पर 'कुमारी अम्मन मंदिर' स्थित है। यह देवी पार्वती का मंदिर है। मंदिर के पास समुद्र की लहरों की आवाज़ ऐसी सुनाई देती है, मानो स्वर्ग का संगीत कानों में रस घोल रहा हो। यहाँ आने वाले भक्तगण मंदिर में प्रवेश करने से पहले त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाते हैं। मंदिर के पूर्वी प्रवेश द्वार को हमेशा बंद करके रखा जाता है। कहा जाता है कि किसी जमाने में मंदिर में स्थापित देवी के आभूषण की आभा को समुद्री जहाज़ लाइट हाउस समझने की भूल कर बैठते थे, जिस कारण जहाज़ को किनारे करने की कोशिश में वे दुर्घटनाग्रस्त हो जाते थे।
पौराणिक उल्लेख (Bhagavathy Amman Temple Mythological)
इस मंदिर का मुख्य द्वार केवल विशेष अवसरों पर ही खुलता है, इसलिए श्रद्धालुओं को उत्तरी द्वार से प्रवेश करना होता है। इस द्वार का एक छोटा-सा गोपुरम है। क़रीब 10 फुट ऊंचे परकोटे से घिरे वर्तमान मंदिर का निर्माण पाण्ड्य राजवंश के राजाओं के शासन काल में हुआ था। देवी कुमारी पाण्ड्य राजाओं की अधिष्ठात्री देवी थीं। पौराणिक आख्यानों के अनुसार शक्ति की देवी बाणासुर का अंत करने के लिए अवतरित हुई थीं। बाणासुर के अत्याचारों से जब धर्म का नाश होने लगा तो सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में पहुँचे। उन्होंने देवताओं को बताया कि उस असुर का अंत केवल देवी पराशक्ति ही कर सकती हैं। भगवान विष्णु को यह बात विदित थी कि बाणासुर ने इतने वरदान पा लिए हैं कि उसे कोई नहीं मार सकता। लेकिन उसने यह वरदान नहीं मांगा था कि एक कुंवारी कन्या उसका अंत नहीं कर सकती। देवताओं ने अपने तप से पराशक्ति को प्रसन्न किया और बाणासुर से मुक्ति दिलाने का वचन भी ले लिया। तब देवी ने एक कन्या के रूप में अवतार लिया।
पौराणिक कथा (Bhagavathy Amman Temple Mythological Story)
कुछ वर्षों बाद जब कन्या युवावस्था को प्राप्त हुई तो 'सुचिन्द्रम' में उपस्थित भगवान शिव से उनका विवाह होना निश्चित हुआ, क्योंकि देवी तो पार्वती का ही रूप थीं। लेकिन नारद मुनि के गुप्त प्रयासों से उनका विवाह संपन्न नहीं हो सका तथा उन्होंने आजीवन कुंवारी रहने का व्रत ले लिया। नारद जी को ज्ञात था कि देवी के अवतार का उद्देश्य बाणासुर को समाप्त करना है। यह उद्देश्य वे एक कुंवारी कन्या के रूप में ही पूरा कर सकेंगी। फिर वह समय भी आ गया। बाणासुर ने जब देवी कुंवारी के सौंदर्य के विषय में सुना तो वह उनके समक्ष विवाह का प्रस्ताव ले कर पहुँचा। देवी क्रोधित हो गई तो बाणासुर ने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। उस समय उन्होंने कन्या कुंवारी के रूप में अपने चक्र आयुध से बाणासुर का अंत किया। तब देवताओं ने समुद्र तट पर पराशक्ति के 'कन्याकुमारी' स्वरूप का मंदिर स्थापित किया। इसी आधार पर यह स्थान भी 'कन्याकुमारी' कहलाया तथा मंदिर को 'कुमारी अम्मन' यानी 'कुमारी देवी' का मंदिर कहा जाने लगा।