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Bharat Mein Islam Ka Itihas: भारत पर पहले इस्लामिक आक्रमण की दास्तान, क्या था रेवाड़ युद्ध ?
Bharat Mein Islam Ka Itihas: मोहम्मद बिन क़ासिम और राजा दाहिर के बिच संघर्ष हुआ था जिसे ‘रेवाड़ का युद्ध’ के नाम से भी जाना जाता है। यह आक्रमण भारत पर पहले इस्लामिक आक्रमण के तौर पर जाना जाता है थी।
Bharat Mein Islam Ka Itihas (Photo Credit - Social Media)
Bharat Mein Islam Ka Itihas: रेवाड़ का युद्ध (Rewar War) मुहम्मद-बिन-कासिम और सिंध के राजा (Kingh of Sindh) दाहिर के बीच हुआ था। इस युद्ध में पंजाब के ब्राह्मण शासक दाहिर(Dahir) की हार हुई थी।जिसके बाद सिंध और मुल्तान पर मुहम्मद-बिन-कासिम ने कब्ज़ा कर लिया था।मुहम्मद-बिन-कासिम ने मुल्तान को ‘सोने का शहर’ कहा था।
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भारत में मुस्लिम शासन का इतिहास अत्यंत व्यापक और गहन है। भारतीय उपमहाद्वीप पर कई मुस्लिम शासकों ने लंबे समय तक शासन किया। इनमें दिल्ली सल्तनत (1206-1526) और मुगल साम्राज्य (1526-1857) प्रमुख रहे। दिल्ली सल्तनत के दौरान गुलाम वंश, खिलजी वंश, तुगलक वंश, सैयद वंश और लोदी वंश जैसे राजवंशों ने सत्ता संभाली। वहीं, भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना बाबर ने 1526 में की, जिसने भारतीय प्रशासन, संस्कृति और कला पर अमिट छाप छोड़ी।
हालांकि, इससे पहले भारत पर पहला इस्लामिक आक्रमण 8वीं सदी में 712 ईस्वी में हुआ था। इस आक्रमण का नेतृत्व उमय्यद ख़िलाफ़त के सेनापति मुहम्मद बिन क़ासिम(Muhammad bin Qasim) ने किया। उन्होंने सिंध के शासक राजा दाहिर को हराकर सिंध और मुल्तान(Sindh & Multan) के क्षेत्रों पर कब्जा किया। इस आक्रमण का उद्देश्य व्यापार मार्गों पर नियंत्रण स्थापित करना और इस्लाम का प्रसार करना था। हालांकि, यह आक्रमण लंबे समय तक भारत के आंतरिक हिस्सों पर प्रभाव नहीं डाल सका, लेकिन इसे भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लामिक शासन की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है।
आज इस लेख के माध्यम से भारत में इस्लाम शासन(Islamic rule) की नींव का वर्णन करेंगे, तो आइये जानते है भारत पर पहले इस्लामिक आक्रमण का इतिहास और उसके प्रभाव।
भारत पर पहला मुस्लिम आक्रमण: रेवाड़ का युद्ध
भारत पर पहला मुस्लिम आक्रमण 20 जून 712 ईस्वी को सिंध पर हुआ, जिसका नेतृत्व उमय्यद ख़िलाफ़त के सेनापति मोहम्मद बिन क़ासिम ने किया। मोहम्मद बिन क़ासिम उमय्यद ख़िलाफ़त के खलीफा अल-वलीद के शासनकाल में उनके सेनापति थे जिन्होंने सिंध पर हमला बोला था।मोहम्मद बिन क़ासिम ने राजा दाहिर को हराकर सिंध और मुल्तान पर कब्जा कर लिया था। उस वक्त सिंध पर राजा दाहिर का शासन था और उनकी राजधानी देवल (आधुनिक कराची के पास) थी।
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इस आक्रमण में मोहम्मद बिन क़ासिम और राजा दाहिर के बिच संघर्ष हुआ था जिसे ‘रेवाड़ का युद्ध’ के नाम से भी जाना जाता है।इस युद्ध में राजा दाहिर की हार हुई थी। और यही हार भारत में मुग़ल सत्ता की नींव साबित हुई।इस युद्ध को भारतीय इतिहास में इस्लामिक शासन की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है।
मुहम्मद बिन क़ासिम और राजा दाहिर के बीच ऐतिहासिक युद्ध
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राजा दाहिर से युद्ध की तैयारी के लिए मुहम्मद बिन क़ासिम ने सिंधु नदी के पश्चिमी तट पर लगभग पचास दिनों तक डेरा डाले रखा। इस दौरान, उन्होंने नदी पार करने की योजना बनाई और खतरनाक मोका को इस बात के लिए तैयार किया कि वह नावों का इंतजाम करे। सभी नावों को आपस में जोड़कर एक अस्थायी पुल तैयार किया गया, जिसे नदी की चौड़ाई के अनुसार बनाया गया था। यह पुल नदी में तैरते हुए एक ओर पश्चिमी तट से बंधा था, जबकि दूसरी ओर धीरे-धीरे पूर्वी तट तक पहुंचा दिया गया। जैसे ही पुल पूर्वी तट से जुड़ गया, अरब सेना बेट किले के पास सिंधु नदी को पार करने में सफल हो गई। इसके बाद, रावर (या राओर) के मैदान में राजा दाहिर की सेना और मुहम्मद बिन क़ासिम की सेना के बीच आमना-सामना हुआ। और एक भयंकर संघर्ष का आगाज़ हुआ।
इस युद्ध के दौरान दाहिर ने अपनी सेना को सिंधु नदी के पूर्वी तट पर स्थानांतरित कर के मुहम्मद बिन क़ासिम को नदी पार करने से रोकने की कोशिश की। हालांकि, क़ासिम ने नदी पार करने में सफलता प्राप्त की और दाहिर के बेटे जैसिय्या के नेतृत्व में स्थित जिटोर में उनकी सेना को पराजित किया। इस युद्ध में कासिम ने बर्बरता की सारी हदे पार की ।क़ासिम ने राओर (जो आजकल नवाबशाह के पास है) में दाहिर से मुकाबला किया और उसे मार डाला। सिंधु नदी के तट पर अरोर में हुई इस लड़ाई में दाहिर की मृत्यु के बाद, उसका सिर उसके शरीर से अलग कर दिया गया और हज्जाज बिन यूसुफ के पास भेजा गया।
क़ासिम की विजय और खलीफा के आदेश पर असमय मृत्यु
सिंध का युद्ध मोहम्मद बिन क़ासिम ने जीत लिया और अपनी सेना के साथ सिंध पर नियंत्रण स्थापित किया। हालांकि, यह विजय अधिक दिनों तक स्थिर नहीं रह सकी। सिंध पर पूर्ण रूप से अधिकार जमाने से पहले ही, खलीफा के आदेशानुसार मोहम्मद बिन क़ासिम की मौत तय हो गई। और इस तरह, क़ासिम की विजय के बावजूद, उसका अंत असमय और अप्रत्याशित हुआ।
सिंध पर आक्रमण: लूट की घटना और बदला लेने की कहानी
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सिंध पर हमला एक लूट की घटना के बाद हुआ था।जब श्रीलंका से भेजे गए तोहफे और खजाने को सिंध में लूट लिया गया। श्रीलंका (सीलोन) के राजा ने अरब के खलीफा अल-वलीद प्रथम को आठ जहाजों में तोहफे और खजाने भेजे थे, लेकिन वे सामान सिंध के पास स्थित एक बंदरगाह पर लूट लिया गया। इराक के प्रांतपति अल हज्जाज ने इसके लिए सिंध के राजा दाहिर को दोषी माना , हालांकि दाहिर ने इस लूट को समुद्री डाकुओं का काम बताते हुए अपनी मजबूरी बताई। फिर भी, हज्जाज ने इस घटना का बदला लेने के लिए सिंध पर हमला करने का निर्णय लिया। हज्जाज ने अरब की अन्य सेनाओं को भारत पर आक्रमण के लिए भेजा गया, लेकिन उन्हें हर बार हार का सामना करना पड़ा। अंततः खलीफा के आदेश पर हज्जाज ने अपने भतीजे और दामाद, इमादुद्दीन मुहम्मद बिन क़ासिम को एक विशाल सेना के साथ सिंध पर तीसरी बार हमले के लिए भेजा।
सिंध पर विजय, बर्बरता और भारत का पहला जौहर
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मुहम्मद बिन क़ासिम ने सिंध पर आक्रमण के लिए रणनीति तैयार की, जिसमें एक विश्वासघाती व्यक्ति ने दुश्मन को महत्वपूर्ण जानकारियां दीं। इसके बाद, अरब सेना ने सिंध पर हमला किया और नरसंहार किया। लोगों को इस्लाम स्वीकार करने या मौत के बीच चयन करने को मजबूर किया गया, जिसमें हजारों हिंदू बेरहमी से मारे गए।
ऐसा कहा जाता है कि राजा दाहिर सिंध के अंतिम हिंदू शासक थे।अरोर की लड़ाई में पति के मृत्यु के बाद, उनकी पहली पत्नी रानीबाई ने कासिम की सेना के साथ कुछ महीनों तक संघर्ष किया, लेकिन युद्ध में अपनी हार को देखते हुए, दुश्मन के हाथों से बचने के लिए, रानीबाई राजघराने की बाकी महिलाओं के साथ जौहर की आग में कूद गई ।और इस तरह भारत का पहला जौहर हुआ। जबकि राजा दाहिर की दूसरी पत्नी और उनकी दो बेटियां सूर्या देवी(Surya Devi) और प्रेमला देवी(Pramila Devi)मुहम्मद बिन क़ासिम की सेना के कब्जे में आ गईं। इतिहास में दर्ज कुछ विवरणों के अनुसार कासिम ने उनके साथ बर्बरता की सारी हदे पार की और उनके साथ अत्याचार और यौन शोषण करते हुए उनका यौन दसियों(Sex Slaves) की तरह इस्तेमाल किया।
राजा दाहिर का परिचय
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प्राचीन और समृद्ध सभ्यताओं से परिपूर्ण सिंधु नदी घाटी सांस्कृतिक धरोहर और प्राकृतिक संपदा से भरपूर है। सिंध क्षेत्र सिंधु नदी और थार रेगिस्तान के पास स्थित है। इस क्षेत्र पर लंबे समय तक शासन करने वाला पुष्करन ब्राह्मण राजवंश था ।और राजा दाहिर का संबंध भी इसी राजघराने से था।राजा दाहिर, थेराजा दाहिर सेन के पुत्र थे।उनका जन्म 663 ईस्वी में हुआ था।और वे 679 ईस्वी में सिंध की गद्दी पे बैठे।वे अफ़गानिस्तान, बलूचिस्तान, पाकिस्तान और ईरान के कुछ हिस्सों के शासक थे। इतिहासकारों के अनुसार उनका शासनकाल 695 - 712 ईसा पूर्व के बीच रहा।
भारत पर आक्रमण करने वाला पहला इस्लामिक कमांडर
मुहम्मद बिन क़ासिम, उमय्यद ख़िलाफ़त के एक अरब सैन्य कमांडर थे, जिन्होंने भारत में उमय्यद अभियान की नींव रखी। उन्होंने सिंध और पंजाब के क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की। क़ासिम का जन्म 31 दिसंबर, 695 को हुआ था, और मात्र 17 वर्ष की आयु में उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप पर आक्रमण कर सफलता हासिल की।
भारत पर इस्लामिक आक्रमण: असफल प्रयासों से क़ासिम की सफलता तक
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि भारत पर पहला इस्लामिक आक्रमण 638 ईस्वी में खलीफाओं की सेना द्वारा किया गया था। उनके अनुसार, 638 से 711 ईस्वी तक के 74 वर्षों में कुल 9 खलीफाओं ने भारत पर लगभग 15 बार आक्रमण किया। इनमें से 15वां और सबसे प्रभावी आक्रमण मुहम्मद बिन क़ासिम ने किया ।कुछ इतिहासकार इसे पहला सफल आक्रमण मानते है, क्योकि उनके अनुसार इससे पहले के 14 आक्रमण असफल रहे थे, लेकिन क़ासिम ने सिंध और पंजाब पर विजय प्राप्त कर इस्लामिक शासन की नींव रखी।