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UP Famous Temple: मैनपुरी में है भीमसेन मंदिर, यहां भीम ने स्थापित किया था शिवलिंग
Uttar Pradesh Famous Temple: मैनपुरी में भीमसेन मंदिर काफी विख्यात है और इसका संबंध पांडव पुत्रों से बताया जाता है।
Uttar Pradesh Famous Temple : उत्तर प्रदेश का मैनपुरी एक शानदार जगह है जो अपनी ऐतिहासिक धरोहरों की वजह से पहचाना जाताहै। यहां पर प्राचीन पवन धाम श्री भीमसेन जी महाराज का मंदिर है जिसे महाभारत काल में पांडव भाइयों ने अज्ञातवास के दौरान स्थापित किया था। बताया जाता है कि महाबली भीम ने इस स्थान पर शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव की पूजा की थी। चलिए आज हम आपको इस मंदिर के बारे में बताते हैं।
भीमसेन के नाम से है प्रसिद्ध
यह मंदिर भीमसेन के नाम से प्रसिद्ध है। जिवन दतियों के मुताबिक नगर के निकटवर्ती ग्राम मंचना में जन्मे शिव भक्त ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। शास्त्रों में इस मंदिर को लेकर जो प्रमाण मिलते हैं उसके आधार पर मैनपुरी नगर के मुहल्ला गाड़ीवान के स्थित पवन धाम मंदिर श्री भीमसेन जी महाराज के गर् गृह म में जो शिवलिंग स्थापित है उसे महाभारत काल में पांडव अनुज भी ने अपने अज्ञातवास के दौरान गुजरते समय शिवलिं स्थापना की थी। समय-समय पर इसका कायाकल्प होता रहा और वर्तमान में भीमसेन जनपद ही नहीं अन्य जनपदों में भी यह सिद्ध पीठ के नाम से विख्यात है।
ऐसी है मान्यता
इस मंदिर से लोगों की कई तरह की मान्यता जुड़ी हुई है। मान्यताओं के मुताबिक जो शिव भक्त 40 दिन तक लगातार मंदिर जाकर शिवलिंग की विधि विधान से पूजन करता है उसकी सारी मनोकामना निश्चित रूप से पूर्ण होती है। इसी मान्यता के चलते हजारों की संख्या में भक्त यहां पर पहुंचते हैं और मनोकामना सिद्ध करने के लिए विधि विधान से पूछना अर्चन करते हैं।
ऐसी है पौराणिक कथा
मैनपुरी से 7 किमी दूर स्थित ग्राम मंछना में एक कायस्थ परिवार के यहां पुत्र का जन्म हुआ था। जिसका नाम भीमसेन रखा गया था। भीमसेन के पिता दुर्व्यसनों से बुरी तरह ग्रसित थे। एक बार गांव से होकर एक साधु निकल रहे थे। बालक भीमसेन के पिता ने साधु से भोजन करने के लिए आग्रह किया। उनका आग्रह मान साधु ने कहा कि तू मुझे अपना पुत्र दे दे तो मैं भोजन करने को तैयार हूं। भीमसेन के पिता ने साधु की बात स्वीकार कर ली और भोजन व्यवस्था के लिए घर चले गए। बालक भीमसेन साधु के पास ही खड़े रहे। साधु ने बालक के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। जिसे देख ग्रामवासी दौड़ पड़े और उसकी पिता को सूचना दी। जिस पर उसके माता-पिता साधु के सामने रो-रोकर अपने बालक को पुर्नजीवित करने की प्रार्थना करने लगे। जिस पर साधु ने कहा कि आज तुझे अपने पुत्र की मृत्यु पर शोक है लेकिन पूर्व में तूने कितने जीवों की हत्या कर अपने उदर का पोषण किया है। कभी तूने उन जीवों की हत्या के बारे में सोचा। तूने अपने पुत्र को मुझे दे दिया मैं उसका क्या करूं। यह अधिकार मेरा है। तब भीमसेन के पिता साधु के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करने लगे तो साधु ने बालक को घर के आंगन में देखने को कहा तो पिता को बालक खेलते मिला। इसी बालक ने आगे चलकर भीमसेन मंदिर का निर्माण कराया। ऐसा कुछ लोगों का मानना है।