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Chaitra Navratri 2024: ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तमिल नाडु में स्थित शक्ति पीठ

Chaitra Navratri 2024: इस ब्रह्मांड को बचाने और भगवान शिव को वास्तविक दुनिया में वापस लाने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से मृत सती के शरीर को 51 टुकड़ों में काट दिया।

Sarojini Sriharsha
Published on: 11 April 2024 9:25 AM IST (Updated on: 11 April 2024 12:06 PM IST)
51 Shakti peeths in india
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51 Shakti peeths in india   (photo: social media ) 

Chaitra Navratri 2024: दुनिया के उपमहाद्वीप में 51 शक्तिपीठ हैं, जहां देवी को दक्षिणायनी-सती माता के रूप में पूजा जाता है। बाद में इस माता को पार्वती या दुर्गा के नाम से जाना गया।

इन शक्तिपीठों के अस्तित्व में आने की सबसे लोकप्रिय कहानी सती के पिता और शिव के ससुर दक्ष द्वारा किए जा रहे यज्ञ में दक्ष द्वारा भगवान शिव के अपमान पर सती के आत्मदाह करने से देवी सती की मृत्यु पर आधारित है। सती की मृत्यु के बाद शोक और क्रोध में आकर भगवान शिव ने सती के शरीर को उठाया और उसके साथ ब्रह्मांड में घूमते रहे जिसे तांडव भी कहा गया।

इस ब्रह्मांड को बचाने और भगवान शिव को वास्तविक दुनिया में वापस लाने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से मृत सती के शरीर को 51 टुकड़ों में काट दिया। ये टुकड़े पृथ्वी पर कई स्थानों पर गिरे और शक्तिपीठ के रूप में पूजे जाने लगे। ये सभी 51 शक्तिपीठ पवित्र तीर्थ स्थल माने जाते हैं। आज हम आपको भारत देश के ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु राज्य के शक्ति पीठों के बारे में जानकारी देंगे।

ओडिशा में शक्ति पीठ :

तारा तेरणी :

ऐसा माना जाता है कि माता सती का स्तन ओडिशा के कुमारी पहाड़ियों पर गिरा जिसे तारा तेरणी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाने लगा। यह मंदिर मशहूर शक्ति पीठ है और हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थानों में से एक माना जाता है। यह मंदिर ओडिशा के ब्रह्मपुर जिले में स्थित है।

कैसे पहुंचें ?

हवाई मार्ग से यहां पहुंचने के लिए ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर का बीजू पटनायक हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है। यह हवाई अड्डा देश के प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। यहां से इस मंदिर तक टैक्सी, बस और रेल मार्ग द्वारा पहुंच सकते हैं। ब्रह्मपुर से यह मंदिर 35 किमी, भुवनेश्वर से 165 किमी और पुरी से 220 किमी की दूरी पर स्थित है।

रेल मार्ग से आने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन दक्षिण-पूर्व रेलवे का ब्रह्मपुर या बेरहमपुर स्टेशन है।

विमला शक्तिपीठ :

विमला शक्ति पीठ भारत के उड़ीसा राज्य में पुरी जिले में जगन्नाथ मंदिर परिसर के भीतर स्थित है। कहा जाता है कि यहां माता सती के पैर गिरे थे। यहां की शक्ति महादेवी और भैरव जगन्नाथ कहे जाते हैं। उड़ीसा के पुरी मंदिर में जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की स्थापना से कई युगों पहले सतयुग से स्थित है यह माता सती का विमला शक्तिपीठ। हालांकि यह मंदिर छोटा है और इसे भगवान के मंदिर के आकार में ही बनाया गया है। मां विमला को भगवान जगन्नाथ की तांत्रिक पत्नी भी कहा जाता है। यहां देवी के मन्दिर मे शरद ऋतु में मनाया जाने वाला नवरात्रि या दुर्गा पूजा का त्योहार महालया के 7 दिन पहले अष्टमी से गुप्त नवरात्रि के रूप में शुरू होकर महालया के बाद प्रकट नवरात्रि के रूप में नवमी तक यानी 16 दिनों तक मनाया जाता है जो पूरे भारत में अनोखा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान विष्णु मां आदिशक्ति को अपनी बहन मानते हैं और उनका प्रेम पुरी के श्रीजगन्नाथ मंदिर में अभी भी दिखता है। भगवान जगन्नाथ जी को लगने वाले 56 प्रकार के नैवेद्यों का भोग जिसे महाप्रसाद कहते हैं , सबसे पहले भगवान विष्णु की बहन विमला देवी चखती है फिर वो भोग जगन्नाथ जी को खिलाया जाता है। इस शक्तिपीठ में तांत्रिक विद्या का भी चलन है। विमला देवी मंदिर में ब्राह्मी, माहेश्वरी, आंद्री, कौमारी, वैष्णवी, वराही और मां चामुंडा के अनेकों रूपों की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं।

कैसे पहुंचें ?

हवाई मार्ग से पहुंचने के लिए यहां का निकटतम हवाई अड्डा भुवनेश्वर का बीजू पटनायक हवाई अड्डा है जो पुरी से 56 किमी की दूरी पर स्थित है। यहां से टैक्सी या स्थानीय वाहन से पुरी पहुंचा जा सकता है। यह हवाई अड्डा देश के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।

रेल मार्ग से पुरी रेलवे स्टेशन कोलकाता, नई दिल्ली, अहमदाबाद और विशाखापत्तनम जैसे शहरों से आसानी से पहुंचा जा सकता है। यहां आकर स्थानीय वाहन से मंदिर पहुंचा जा सकता है।

विरजा क्षेत्र :

उड़ीसा के विराज में उत्कल स्थित इस जगह पर माता सती की नाभि गिरी थी। इसकी शक्ति को विमला और शिव को जगन्नाथ कहते हैं। वर्तमान विरजा मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी में हुआ था। यहां की मुख्य मूर्ति देवी दुर्गा हैं जिन्हें महिषासुरमर्दिनी के रूप में पूजा जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि जाजपुर में लगभग एक करोड़ शिव लिंग हैं और भगवान शिव के मंदिर को आदि शंकराचार्य ने स्थापित किया गया था।

इस मुख्य मंदिर के पास एक कुआं है, जिसमें श्रद्धालु अपने पूर्वजों का पिंड दान या अनुष्ठान करते हैं। ऐसी मान्यता है कि ये पिंड सीधे काशी पहुंचते हैं । कहा जाता है कि लगभग 4 से 5 फीट गहरे इस कुएं का जल कभी सूखा नहीं है।

कैसे पहुंचें ?

हवाई मार्ग से यहां पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा भुवनेश्वर है। कटक, भुवनेश्वर, कोलकाता और ओड़िशा के अन्य छोटे शहरों से बस या टैक्सी द्वारा भी यहां पहुंच सकते हैं।

रेल मार्ग से यहां पहुंचने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन जाजपुर रोड, क्योंझर रेलवे स्टेशन है।

आंध्र प्रदेश का शक्तिपीठ

सर्वेशेल या गोदावरीतीर :

आंध्रप्रदेश राज्य के राजामुंद्री जिले में गोदावरी नदी के तट पर स्थित इस जगह पर सती माता का बायां गाल गिरा था। यह मंदिर को कोटिलिंगेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। इसकी शक्ति को विश्वेश्वरी और रा‍किनी और शिव या भैरव को वत्सनाभम के रूप में पूजा जाता है।

गोदावरी तीर शक्ति पीठ प्राचीन मंदिरों में से एक है और इस विशाल मंदिर की वास्तुकला बहुत शानदार एवं अदभुत है। हर बारह साल में गोदावरी नदी के तट पर पुष्करम मेला का आयोजन होता है।

कैसे पहुंचें ?

हवाई मार्ग से यहां पहुंचने के लिए मधुरपुड़ी स्थित राजमुंदरी हवाई अड्डा है जो शहर से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर है। इसके अलावा विजयवाड़ा और विशाखापत्तनम हवाई अड्डे से भी यहां रेल या सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है।

रेल मार्ग से आने के लिए राजमुंदरी रेलवे स्टेशन, आंध्र प्रदेश के सबसे बड़े रेलवे स्टेशनों में से एक है। राजमुंदरी स्टेशन से मंदिर बहुत कम दूरी पर है। रेलवे स्टेशन से स्थानीय बस सेवा या वाहन लेकर मंदिर पहुंच सकते हैं।

तमिलनाडु के शक्ति पीठ

कन्याश्री - सर्वाणी या कन्याकुमारी :

इस स्थान पर माता सती की पीठ गिरी थी। इस शक्तिपीठ को सर्वाणी , कन्याश्राम, कालिकशराम या कन्याकुमारी शक्ति पीठ के रूप में भी जाना जाता है।

इस मंदिर में देवी मूर्ति की स्थापना भगवान परशुराम ने की थी। इस मंदिर की स्थापना लगभग 3000 वर्ष पूर्व हुई है। इतिहास के अनुसार वर्तमान मंदिर आठवीं शताब्दी में पांड्या सम्राटों ने बनवाया था। इस मंदिर का पुनर्निर्माण चोला, चेरी, वेनाड और नायक राजवंशों के शासन काल में हुआ।

शुचि - नारायणी :

तमिलनाडु के कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर स्थित शुचितीर्थम शिव मंदिर स्थान में सती माता के ऊपरी दांत (ऊर्ध्वदंत) गिरे थे। इसकी शक्ति नारायणी और भैरव संहार या संकूर के रूप में जाने जाते हैं।

कैसे पहुंचें ?

ये स्थान भारत के सबसे दक्षिणी छोर तमिलनाडु में स्थित हैं। हवाई मार्ग से यहां पहुंचने के लिए तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डा निकटतम हवाई अड्डा है जो 90 किमी की दूरी पर है। यह हवाई अड्डा देश के सभी प्रमुख शहरों के हवाई अड्डों और कुछ अंतरराष्ट्रीय शहरों जैसे सिंगापुर, कोलंबो और कई खाड़ी देशों से भी अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। हवाई अड्डे से कन्याकुमारी तक पहुंचने के लिए टैक्सी और निजी वाहन ले सकते हैं।

रेल मार्ग से यह कन्याकुमारी देश के सभी बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है। स्टेशन से कन्याकुमारी तक पहुंचने के लिए टैक्सी और बस ले सकते हैं। सड़क मार्ग द्वारा केरल और तमिलनाडु के शहरों से नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं।



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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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