Chennai Ka Famous Gav Ka Itihas: आस्था एक ऐसा गहरा समंदर हैं जिसके भीतर असंख्य परंपराएं और रीतिरिवाज समाहित रहते हैं। ऐसी ही एक कठोर आस्था का केंद्र बना हुआ है भारत में स्थित एक गांव। जहां पूरे गांव को इतना पवित्र माना जाता है कि किसी को भी एक तिनका बराबर भी गंदगी फैलाने की इजाजत नहीं हैं। स्वच्छता का संदेश देते इस गांव की सबसे अनोखी परंपरा देखने को मिलती है, वो है इस गांव में बच्चे से लेकर बुजुर्ग किसी को भी पैरों में चप्पल, जूता पहनकर चलने की इजाजत नहीं है। लेकिन इसका यह मतलब ये बिल्कुल भी नहीं है कि यहां लोग गरीब हैं या उनके पास इतने पैसे नहीं हैं कि वे अपने लिए जूता चप्पल खरीद सकें। इस गांव में सभी संपन्न लोग रहते हैं। लेकिन गांव के भीतर नंगे पांव ही चलना अच्छा मानते हैं। इसके पीछे एक धार्मिक मान्यता है, जिसके चलते यहां के लोग हमेशा बिना जूते और चप्पल के रहते हैं।
यह है इस अजूबे गांव का नाम
Village Worshiped As Temple (Image Credit-Social Media)
यहां हम जिस गांव का जिक्र कर रहे हैं वो दक्षिण भारत के छोटे से गांव अंडमान से जुड़ा हुआ है। तमिनाडु की राजधानी चेन्नई से लगभग 450 किलोमीटर दूर बसे इस गांव में जाकर आप खुद देख सकते हैं कि इस गांव का कोई भी व्यक्ति घर से बाहर निकलते वक्त नंगे पांव रहता हैं। उसके पैरों में कोई जूता चप्पल नहीं होता। फिर वो मौसम चाहे कोई भी हो। इस गांव के लोगों द्वारा जूता-चप्पल न पहनने का नाता एक धार्मिक मान्यता से जुड़ा है। जिसके अंतर्गत गांव के लोगों का मानना है कि उनकी और उनके पूरे इस गांव की रक्षा उनकी कुल देवी मुथ्यालम्मा करती है। इस तरह की आस्था के चलते देवी मुथ्यालम्मा के प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए यहां के लोग गांव के भीतर कभी भी जूते या चप्पल नहीं पहनते। आम तौर पर हम लोग मंदिर के भीतर जूते चप्पल नहीं पहनकर जाते। उसी तरह यहां के लोग अपने गांव को एक मंदिर की तरह मानते हैं। इसीलिए मंदिर के भीतर जूते या चप्पल पहनने पर लोगों की श्रद्धा को चोट पहुंचती है। तमिलनाडु के इस गांव में करीब 130 परिवार रहते हैं। इनमें अधिकतर लोग खेती बाड़ी करते हैं या मजदूरी करके अपना जीवन चलाते हैं। गांव के कम लोग ही गांव से बाहर रहते हैं।
7 दशकों से भी ज्यादा समय से लागू है यह परंपरा
Village Worshiped As Temple (Image Credit-Social Media)
बता दें कि गांव में यह प्रथा सालों से चली आ रही है। जानकारी के अनुसार, गांव में यह परंपरा आज से नहीं, बल्कि पिछले 70 वर्षों से जारी है। गांव में 70 साल पहले एक नीम के पेड़ के नीचे देवी मुथियालम्मा की मूर्ति स्थापित की गई थी, जिसके बाद से गांव वालों द्वारा नंगे पैर रहने का नियम माना जा रहा है। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि उन्होंने अपने पूर्वजों से यह परंपरा सीखी है और इसे अब अगली पीढ़ियों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी कंधों पर लेकर चल रहें है।
स्वेच्छा से जुड़ी है यह परंपरा, नहीं रहता कोई दबाव
Village Worshiped As Temple (Image Credit-Social Media)
यहां नंगे पैर चलने के लिए लोगों पर किसी प्रकार का दबाव नहीं दिया जाता है। लोग आस्था का सम्मान करते हुए स्वेच्छा से चप्पल-जूते उतारते हैं। वहीं, जब गांव में बाहर से कोई मेहमान आता है तो वे उसे भी इस प्रथा के बारे में बताते हैं।लेकिन इस परम्परा को मानने के लिए बाध्य नहीं करते।
कुछ खास मौकों पर रहती है पैरों में जूता पहनने की छूट
Village Worshiped As Temple (Image Credit-Social Media)
तमिनाडु की राजधानी चेन्नई के पास स्थित अंडमान में गर्मी के समय में हालात काफी कठिन हो जाते हैं। सूर्य से निकलने वाली तेज किरणे जब इस गांव की धरती पर पड़ती हैं, तो जमीन आग उगलने लग जाती है। ऐसी स्थिति में यह मान्यता थोड़ी बदल जाती है। जब जमीन बहुत अधिक गर्म हो जाती है तो कुछ लोग जो इस तपिश को बर्दाश्त नहीं कर सकते अस्थाई रूप से पैरों में कुछ समय के लिए देवी के सम्मुख क्षमा मांगकर अपने पैरों में चप्पल पहन लेते हैं। लेकिन यह बदलाव सिर्फ गर्मी के मौसम के दौरान ही देखने को मिलता है। चप्पलों को भी इतना स्वच्छ रखा जाता है ताकि देवी के प्रति आस्था को ठेस न पहुंचे। इसके अलावा बुजुर्ग और बीमार लोगों को भी चप्पल जूते पहनने की छूट रहती है।