TRENDING TAGS :
Chitrakoot Dharmik Sthal: यहां आज भी मौजूद हैं भगवान राम और सीता के वनवास के दौरान के साक्ष्य
Chitrakoot Ghoomne Ke Dharmik Sthal: आज हम आपको चित्रकूट के धार्मिक स्थलों के बारे में बताने जा रहे हैं ऐसे में अगर आप यहाँ घूमने जाने की प्लानिंग कर रहे हैं तो इस आर्टिकल को ज़रूर पढ़ लें।
Chitrakoot Ghoomne Ke Dharmik Sthal: सनातनी संस्कृति जितनी पुरानी है उतने ही सुदृढ़ इस संस्कृति से जुड़े साक्ष्य हैं। जो सैकड़ों वर्षों के बीत जाने के उपरांत आज भी हमारे बीच मौजूद हैं। जिनमें से के एक नाम धार्मिक नगरी का भी आता है जहां भगवान राम और सीता के वनवास ने दौरान के साक्ष्य आज भी मौजूद हैं। हम बात कर रहें हैं उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के मध्य में स्थित बेहद दर्शनीय धार्मिक स्थलों में शामिल चित्रकूट की। वाल्मीकि रामायण, महाभारत, पुराण, स्मृति, उपनिषद व साहित्यक पौराणिक साक्ष्यों में खासकर कालिदास कृत मेघदूतम में चित्रकूट का विशद विवरण प्राप्त होता है। त्रेतायुग का यह तीर्थ अपने गर्भ में संजोय स्वर्णिम रामायण काल की दृश्यावलियों के कारण प्रसिद्ध है। चित्रकूट का विकास राजा हर्षवर्धन के जमाने में हुआ था। मुगल काल में खासकर स्वामी तुलसीदास के समय में यहां की प्रतिष्ठा एक बार फिर मुखरित हो उठी। भारत के तीर्थों में चित्रकूट को इसलिए भी गौरव प्राप्त है क्योकि इसी तीर्थ में भक्तराज हनुमान की सहायता से भक्त शिरोमणि तुलसीदास को प्रभु श्रीराम के दर्शन हुए। यही मंदाकिनी, पयस्विनी और सावित्री के संगम पर श्रीराम ने पितृ तर्पण किया था।
श्रीराम व भ्राता भरत के मिलन का साक्षी यह स्थल श्रीराम के वनवास के दिनों का साक्षात गवाह है, जहां के असंख्य प्राच्यस्मारकों के दर्शन के रामायण युग की परिस्थितियों का ज्ञान हो जाता है। यहीं भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता ने अपने वनवास के दौरान का लंबा समय व्यतीत किया था। कहा जाता है अपने 14 बर्षों के वनवास के दौरान 11 वर्ष भगवान राम ने चित्रकूट में ही बिताए थे। जिनसे जुड़ी कई ऐसी निशानियां चित्रकूट मे मौजूद हैं जो असंख्य श्रद्धालुओं के लिए सैकड़ों वर्षों से आस्था का केंद्र बनी हुईं हैं।आइए जानते हैं रामायण काल से जुड़ी उन खूबसूरत जगहों के बारे में जहां जाकर धार्मिक भावना से ओत प्रोत होने के साथ ही मन मस्तिष्क को अद्भुत शांति की अनुभूति भी होती है।
चित्रकूट कामदगिरी पर्वत
चित्रकूट में स्थित कामदगिरि पर्वत को लेकर मान्यता है कि इसकी परिक्रमा करने से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस पर्वत के चारों ओर का परिक्रमा पथ लगभग 5 किलोमीटर लंबा है। ग्रीष्म ऋतु के अलावा, पूरे वर्ष इस पहाड़ी का रंग हरा रहता है। यहां अमावस्या, मकर संक्रांति और दीपावली जैसे बड़े त्योहारों पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। चित्रकूट के सबसे खूबसूरत स्थानों में शुमार कामदगिरी पर्वत अपनी खूबसूरती के लिए विश्व विख्यात है। पौराणिक कथाओं के अनुसार चित्रकूट के इस पवित्र जगह पर ब्रह्मा जी ने संसार की रचना करते समय एक साथ 108 अग्नि कुंडों के साथ हवन किया था। इसके अलावा रामायण काल में श्री राम जी ने अपने वनवास के समय कुछ पल यहीं पर गुजारे थे। इस पर्वत के चार मुख्य द्वार हैं, जिनमें अलग-अलग भगवानों का वास माना जाता है। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं और नंगे पैर परिक्रमा लगाते हैं।
चित्रकूट हनुमान धारा
इस स्थल से जुड़ी एक पौराणिक कथा है, जिसके अनुसार श्रीराम के अयोध्या में राज्याभिषेक होने के बाद एक दिन हनुमानजी ने भगवान श्रीरामचंद्र से कहा ‘हे प्रभु, लंका को जलाने के बाद तीव्र अग्नि से उत्पन्न गरमी मुझे बहुत कष्ट दे रही है। मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मैं इससे मुक्ति पा सकूं। इस कारण मैं कोई अन्य कार्य करने में बाधा महसूस कर रहा हूं। कृपया मेरा संकट दूर करें।’ तब प्रभु श्रीराम ने मुस्कराते हुए कहा, ‘चिंता मत करो। भगवान श्रीराम ने हनुमानजी को यह स्थान बताया। आप चित्रकूट पर्वत पर जाइये। वहां आपके शरीर पर अमृत तुल्य शीतल जलधारा के लगातार गिरने से आपको इस कष्ट से मुक्ति मिल जाएगी।’
हनुमान जी ने चित्रकूट आकर विंध्य पर्वत श्रंखला की एक पहाड़ी में श्री राम रक्षा स्त्रोत का पाठ 1008 बार किया। जैसे ही उनका अनुष्ठान पूरा हुआ ऊपर से एक जल की धारा प्रकट हो गयी। जलधारा शरीर में पड़ते ही हनुमान जी के शरीर को शीतलता प्राप्त हुई। आज भी यहां वह जल धारा निरंतर गिरती है। जिस कारण इस स्थान को हनुमान धारा के रूप में जाना जाता है। धारा का जल पहाड़ में ही विलीन हो जाता है। उसे लोग प्रभाती नदी या पातालगंगा कहते हैं।चित्रकूट शहर से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हनुमान धारा जो कि एक रोमांचक पर्यटन स्थल है। यह मंदिर हनुमान धारा जी के नाम से प्रसिद्ध है। प्रसिद्ध होने की वजह इसकी 360 सीढियां हैं जिन्हें पर्यटकों को चढ़ कर जाना होता है।
चित्रकूट सती अनुसुइया आश्रम
सती अनुसूया आश्रम चित्रकूट के प्रसिद्ध पर्यटक आकर्षण रामघाट से लगभग 18 किमी दूर स्थित है। यह इस क्षेत्र के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है और इसे ‘चित्रकूट चार धाम’ का एक हिस्सा माना जाता है। इस स्थान का नाम इस कथानक से पड़ा है कि, यह महर्षि अत्रि और उनकी पत्नी महासती अनसूया का आश्रम था। उन्हें हिंदू धर्म के पवित्र ग्रंथों में उनके भक्त, शुद्ध और पवित्र चरित्र के कारण महासतियों में से एक मानते हैं। उनके नाम के पीछे भी एक रोचक कहानी है। ऐसा माना जाता है कि दस साल तक बारिश न होने के कारण यह क्षेत्र सूखाग्रस्त था। तब अनसूया ने कठोर तपस्या की और आखिरकार मंदाकिनी नदी को धरती पर लाने में सफल रहीं। अपने सर्वोच्च बलिदान और तपस्या के दौरान अपार कष्ट सहने के कारण उन्हें सती कहा गया। चित्रकूट को उसकी देश विदेश में पहचान दिलाने के लिए चित्रकूट का प्रसिद्ध और धार्मिक पर्यटन स्थल माता सती अनुसूइया आश्रम का एक बहुत बड़ा योगदान है जो कि चित्रकूट शहर से मात्र 16 किलोमीटर की दूरी पर एक हरे भरे क्षेत्र में मौजूद है।
चित्रकूट जलप्रपात
प्राकृतिक सौंदर्य से घिरे हुए चित्रकूट में सबसे खूबसूरत स्थल चित्रकूट जलप्रपात नाम से विख्यात है। इस जलप्रपात से झर झर करके निरंतर सुनाई देने वाली गूंज के बीच खूबसूरत पंछियों का कलरव इस स्थान को अलौकिक नजारा प्रदान करता है। जो कि यहाँ आने वाले हर प्रकृत्ति प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। चित्रकूट से मात्र तीन घंटे की दूरी पर स्थित है दंतेवाड़ा माँ काली का आलौकिक मंदिर, जहां श्रद्धालु मां काली का दर्शन करने जरूर जाते हैं।
चित्रकूट शबरी फाल्स
लगभग 300 मीटर (984 फीट) की चौड़ाई वाला यह भारत का सबसे बड़ा झरना है और इसका आकार नियाग्रा फॉल्स जैसा है। इस झरने का नाम शबरी के नाम पर रखा गया है, जो भारतीय महाकाव्य रामायण की एक पात्र हैं और माना जाता है कि वे आसपास के जंगलों में निवास करती थीं। वाटर फाल के दिवानों के लिए शबरी फाल्स एक बेहद रोमांचकारी स्थान है जो कि चित्रकूट के मारकुंडी गांव से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर जमुनीहाई गांव के पास मंदाकिनी नदी के एक खूबसूरत स्थान पर स्थित है।
चित्रकूट जानकी कुंड
अपने खास महत्व को समेटे इस स्थल पर पर्यटक दूर दूर से इस कुंड में स्नान करने के लिए आते हैं और अपने आप को धन्य महसूस करते हैं। मंदाकिनी नदी का जानकी कुंड एक बेहद खूबसूरत और धार्मिक दार्शनिक स्थल के तौर पर चर्चित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यहाँ माता सीता जी के पैरों के निशान आज भी विद्यमान हैं। वनवास के समय माता सीता इसी कुंड पर स्नान करने आतीं थी। इसी कुंड में माता सीता जी के आज भी पैरों के निशान देखने को मिल जाएंगे। इसी कुंड के पास मौजूद भगवान राम जी का एक अद्वितीय मंदिर भी इस स्थान को दिव्यता प्रदान करता है जिसकी महत्ता श्रद्धालुओं के बीच देखते ही बनती है।
कैसे पहुंचे
- सड़क मार्ग से -चित्रकूट के लिए इलाहाबाद, बांदा, झांसी, महोबा, कानपुर, छतरपुर,सतना, फैजाबाद, लखनऊ, मैहर आदि शहरों से नियमित बस सेवाएं हैं। दिल्ली से भी चित्रकूट के लिए बस सेवा उपलब्ध है।
- वायु मार्ग से -चित्रकूट का नजदीकी विमानस्थल इलाहाबाद है। खजुराहो चित्रकूट से 185 किलोमीटर दूर है। चित्रकूट में भी हवाई पट्टी बनकर तैयार है। यहां से आप बस या टैक्सी ले कर चित्रकूट आराम से पहुंच सकते हैं।
- रेल मार्ग से - चित्रकूट से 8 किलोमीटर की दूर करवी निकटतम रेलवे स्टेशन है। यहां से आप टैक्सी या कैब ले कर चित्रकूट आराम से आ सकते हों।