×

Daulatabad Fort History: वो किला जिसमें दुश्मनों के लिए घड़ियाल और मगरमच्छ छोड़ दिए जाते थे, आइए जानते हैं दौलताबाद किले के बारे में

Aurangabad Daulatabad Kila Ki Kahani: दौलताबाद का किला केवल एक सैन्य दुर्ग नहीं था, बल्कि यह एक ऐसी ऐतिहासिक धरोहर है जिसने युगों-युगों तक शासकों के उत्थान और पतन को देखा है। आइए जानते हैं इस किले के बारे में।

Akshita Pidiha
Written By Akshita Pidiha
Published on: 15 Feb 2025 2:19 PM IST
Aurangabad Daulatabad Fort History and Mystery In Hindi
X

Aurangabad Daulatabad Fort History and Mystery In Hindi

Daulatabad Fort History: भारत एक ऐसा देश है जो अपने समृद्ध इतिहास, भव्य स्थापत्य कला और बहुआयामी संस्कृति के लिए जाना जाता है। यहाँ अनेक किले हैं, जो भारतीय इतिहास के गौरवशाली अतीत की झलक प्रस्तुत करते हैं। इन्हीं में से एक है दौलताबाद का किला (Daulatabad Ka Kila), जिसे कभी 'देवगिरी' (Deogiri Fort) के नाम से जाना जाता था। यह किला महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले (Aurangabad) में स्थित है और इसकी गणना भारत के सबसे मज़बूत और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण किलों में की जाती है।

यह किला केवल एक सैन्य दुर्ग नहीं था, बल्कि यह एक ऐसी ऐतिहासिक धरोहर है जिसने युगों-युगों तक शासकों के उत्थान और पतन को देखा है। इस किले का महत्व केवल इसकी अभेद्यता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक, राजनीतिक और स्थापत्य कला का भी एक अनूठा उदाहरण है।

दौलताबाद किला 12वीं शताब्दी में यादव राजाओं द्वारा बनवाया गया था। पहले इसे 'देवगिरि' कहा जाता था, जिसका अर्थ है "देवताओं का पर्वत"। यादव वंश के राजा भिलमा ने इसकी नींव रखी थी, लेकिन इस किले को वास्तविक स्वर्णिम काल तब मिला जब यादव राजा रामचंद्र देव यादव ने इसे अपनी राजधानी बनाया। देवगिरि किला अपने समय में एक अत्यंत समृद्ध और संपन्न राज्य का केंद्र था। यहाँ व्यापार, कृषि और संस्कृति का उत्कर्ष था। यादव राजाओं ने इस किले को इतना मजबूत बनाया कि यह कई वर्षों तक अपराजेय बना रहा।

अलाउद्दीन खिलजी का हमला (1296 ई.)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

देवगिरि की अपार संपत्ति और उसकी सामरिक स्थिति के कारण यह दिल्ली सल्तनत के शासकों की नज़रों में आ गया। 1296 ईस्वी में दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी (Alauddin Khalji) ने देवगिरि पर आक्रमण किया और इसे लूट लिया। हालांकि, यादव राजा ने खिलजी के अधीनता स्वीकार कर ली और इसे एक सल्तनत के जागीर के रूप में चलाया गया। इसके बाद देवगिरि ने दिल्ली सल्तनत के कई और शासकों की अधीनता स्वीकार की, लेकिन यह अपनी स्वतंत्रता पूरी तरह से खो चुका था।

राजधानी परिवर्तन और तुगलक का प्रयोग (1327 ई.)

14वीं शताब्दी में तुगलक वंश के शासक मुहम्मद बिन तुगलक ने इस किले को और भी अधिक प्रसिद्धि दिलाई। 1327 ईस्वी में, उसने दिल्ली से अपनी राजधानी देवगिरि स्थानांतरित करने का निर्णय लिया और इसका नाम बदलकर दौलताबाद रख दिया। मुहम्मद बिन तुगलक ने यह निर्णय इसलिए लिया क्योंकि दिल्ली से दौलताबाद अधिक सुरक्षित स्थान था। दक्षिण भारत को बेहतर नियंत्रण में लाने के लिए यह स्थान सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था। यहाँ जलवायु दिल्ली की अपेक्षा अधिक अनुकूल थी। हालांकि, इस निर्णय ने पूरे साम्राज्य में असंतोष फैला दिया।

राजधानी स्थानांतरित करने के लिए तुगलक ने दिल्ली की पूरी आबादी को जबरन दौलताबाद भेजने का आदेश दिया। लेकिन वहाँ पानी की कमी और अन्य समस्याओं के कारण यह योजना असफल हो गई। 1347 ईस्वी में बहमनी सल्तनत के गठन के बाद दौलताबाद पर मुस्लिम शासकों का पूर्ण नियंत्रण हो गया।

मुगलों का शासन

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

17वीं शताब्दी में मुगलों ने इस किले पर कब्जा कर लिया। औरंगजेब ने इसे अपने साम्राज्य में शामिल किया और इसे दक्षिण में अपनी शक्ति बनाए रखने के लिए एक सैन्य चौकी के रूप में विकसित किया।जब मुगलों की शक्ति कमजोर होने लगी, तब मराठों ने इस किले को जीतने के लिए कई प्रयास किए। अंततः छत्रपति शिवाजी महाराज के उत्तराधिकारी संभाजी महाराज ने इसे जीत लिया और इसे मराठा साम्राज्य का हिस्सा बना दिया।

दौलताबाद किले का वास्तुशिल्प और संरचना

यह किला एक पहाड़ी पर स्थित है और इसे प्राकृतिक चट्टानों को काटकर बनाया गया है। इसकी सुरक्षा व्यवस्था इतनी मजबूत थी कि इसे लगभग अजेय माना जाता था। किले के चारों ओर तीन मजबूत दीवारें हैं, जिनकी ऊंचाई 40 फीट तक है। किले के चारों ओर एक गहरी खाई बनाई गई थी, जिसमें मगरमच्छ छोड़े जाते थे ताकि कोई भी शत्रु आसानी से किले में प्रवेश न कर सके। किले में एक संकरी और घुमावदार भूलभुलैया जैसी संरचना है, जिससे अजनबी को प्रवेश करने में मुश्किल होती थी। किले में गुप्त सुरंगें भी बनी हुई थीं, जो संकट के समय निकलने के लिए उपयोग होती थीं।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

दौलताबाद अपने दुर्जेय पहाड़ी किले के लिए प्रसिद्ध है। 190 मीटर ऊंचाई का यह किला शंकु के आकार का है. इसमें बहुत से भूमिगत गलियारे और कई सारी खाईयां हैं। ये सभी चट्टानों को काटकर बनाए गए हैं। इस दुर्ग में एक अंधेरा भूमिगत मार्ग भी है, जिसे ‘अंधेरी’ कहते हैं। इस मार्ग में कहीं-कहीं पर गहरे गड्ढे भी हैं, जो शत्रु को धोखे से गहरी खाई में गिराने के लिए बनाये गये थे। दुश्मन को इस किले पर चढ़ने के लिए कई दिन क्या है, कई महीने लग जाते थे। शायद यहीं वजह रहा है कि आज तक इस किले पर कोई भी आक्रमण नहीं कर सका। इस किले के चारों तरफ बड़े-बड़े खाई भी खोद कर उसमें मगरमच्छों को छोड़ा जाता था ताकि शत्रु अन्दर नहीं आ सके

चांद मीनार: यह मीनार दौलताबाद किले का प्रमुख आकर्षण है। इसे सुल्तान अलाउद्दीन बहमन शाह ने बनवाया था। इसकी ऊंचाई लगभग 64 मीटर है।

बारादरी: यह एक विशाल हॉल है, जहां राजा और उनके दरबारी बैठकें किया करते थे।

कन्नन और मेंढा तोप: यह विशाल तोपें किले की सुरक्षा के लिए उपयोग की जाती थीं। इनका निर्माण ऐसा किया गया था कि दुश्मन की तोपों से बचाव हो सके।

आज दौलताबाद का किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित किया गया है। यह महाराष्ट्र के प्रमुख ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों में से एक है।

वर्तमान स्थिति और पर्यटन स्थल के रूप में महत्त्व

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

दौलताबाद किला आज एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। हर साल हजारों पर्यटक यहाँ आते हैं। यह औरंगाबाद से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और अजंता-एलोरा गुफाओं के नजदीक होने के कारण इसे देखने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। भारतीय पुरातत्व विभाग इस किले को संरक्षित करने के लिए लगातार कार्य कर रहा है।

दौलताबाद किला, जिसे देवगिरि किले के नाम से भी जाना जाता है, भारत के महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले में स्थित है। यह किला अपनी अभेद्य सुरक्षा, अद्भुत वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व के कारण प्रसिद्ध है। यह किला न केवल मध्यकालीन भारत के गौरवशाली अतीत का प्रतीक है, बल्कि इसकी संरचना और निर्माण शैली इसे भारत के सबसे महत्वपूर्ण किलों में से एक बनाती है।

दौलताबाद किले का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व

यह किला भारतीय स्थापत्य कला और सुरक्षा प्रणाली का उत्कृष्ट उदाहरण है। यह हमें मध्यकालीन भारत की राजनीति, युद्ध और प्रशासनिक नीतियों की झलक देता है। मुहम्मद बिन तुगलक के राजधानी स्थानांतरण के प्रयोग का यह किला एक साक्षी है।

दौलताबाद किला क्यों प्रसिद्ध है?

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

इसकी मजबूत दीवारें, गहरी खाइयां और भूलभुलैया इसे अभेद्य बनाती थीं। यह किला कई राजवंशों के उत्थान और पतन का गवाह रहा है। राजधानी स्थानांतरण की विफलता के कारण यह ऐतिहासिक घटनाओं का प्रमुख केंद्र बना। यह किला न केवल एक दुर्ग था बल्कि एक शानदार शहर भी था।

दौलताबाद किला भारत के मध्यकालीन इतिहास का एक अनमोल धरोहर है। इसकी सुरक्षा, निर्माण शैली और ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ाव इसे एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्मारक बनाते हैं। यह न केवल महाराष्ट्र बल्कि पूरे भारत के गौरव का प्रतीक है। आज भी यह किला अपने भव्य स्वरूप के कारण भारत के सबसे मजबूत और आकर्षक किलों में से एक माना जाता है।

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

दौलताबाद का किला भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुका है। यह किला न केवल अपनी अद्भुत स्थापत्य कला के लिए जाना जाता है, बल्कि इसके साथ जुड़े ऐतिहासिक किस्से इसे और भी रोचक बनाते हैं। चाहे वह यादवों की राजधानी के रूप में इसकी पहचान हो, तुगलक द्वारा इसे नई राजधानी बनाए जाने की घटना हो, या फिर मराठों और मुगलों के बीच इसके लिए हुए संघर्ष- यह किला भारत की ऐतिहासिक गाथाओं का साक्षी रहा है। आज यह किला अपने गौरवशाली इतिहास के साथ खड़ा है और भारत के समृद्ध अतीत की झलक प्रस्तुत करता है।



Shreya

Shreya

Next Story