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Kanyakumari Devi Temple: रहस्यों से भरा यह मंदिर, यहां अनाज जैसे कंकड़ बिखरे मिलते हैं
Devi Kanyakumari Amman Temple History: यहां समुद्र के किनारे कन्याकुमारी का एक प्राचीनकालीन मंदिर भी है। इसे देवी कन्या, देवी कुमारी और देवी अम्मन मंदिर भी कहते हैं।
Kanyakumari Devi Temple History: भारत के सुदूर दक्षिणी छोर पर स्थित है कन्याकुमारी। अरब सागर, हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी से घिरा यह क्षेत्र जितना प्राकृतिक खूबसूरती के लिए जाना जाता है, उतना ही अपने धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व के लिए भी। इसका नाम आदिशक्ति देवी पार्वती के कन्यारूप कन्याकुमारी के नाम पर पड़ा है। यहां समुद्र के किनारे कन्याकुमारी का एक प्राचीनकालीन मंदिर भी है। इसे देवी कन्या, देवी कुमारी और देवी अम्मन मंदिर भी कहते हैं।
क्या है मान्यता
कन्याकुमारी को देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
देवी कन्या कुमारी की पूजा कुमारी कंदम से भी जुड़ी हुई है जो एक पौराणिक खोया हुआ महाद्वीप है। मान्यताओं के अनुसार, कन्या कुमारी को वह देवी माना जाता है जिसने राक्षस बाणासुर का वध किया था। बाणासुर एक राक्षस और कन्याकुमारी की भूमि का शासक था। वह एक बहुत शक्तिशाली राजा था। उसने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया कि उसकी मृत्यु केवल एक किशोरी लड़की के कारण ही हो सकती है। शक्तिशाली वरदान के साथ, वह निडर हो गया। उसने इंद्र तक को हराकर उसके सिंहासन से बेदखल कर दिया। उसने सभी देवताओं को उनके निवास से निर्वासित कर दिया। इससे तबाही मच गई। फिर भगवती ने बाणासुर को मारने और प्रकृति के संतुलन को बहाल करने के लिए उपमहाद्वीप के दक्षिणी सिरे पर कुमारी के रूप में खुद को प्रकट किया।
यह भी कहा जाता है कि ब्रह्म पुत्र राजा दक्ष प्रजापति ने शिव को अपमानित करने के उद्देश्य से शत कुंडी यज्ञ का आयोजन किया। इसमें सती बिना निमंत्रण के पहुंचीं। उन्होंने जब अपने पति शिव का अपमान देखा, तो क्रोध में आकर यज्ञशाला में अपने प्राणों की आहुति दे दी। सती की मृत्यु के बाद क्रोधित शिव उनका शव लेकर धरती पर घूमने लगे। भगवान विष्णु ने सोचा कि जब तक देवी सती का शरीर शिव के सामने रहेगा, तब तक उनका क्रोध नहीं शांत होगा। इसलिए नारायण ने सुदर्शन चक्र चलाकर माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। सती का अंग जहां-जहां पर गिरा, वहां शक्तिपीठ बन गए। मान्यता है कि कन्याकुमारी में उनकी रीढ़ और कुंडलिनी गिरी थी। अध्यात्म में कुंडलिनी का ख़ास महत्व है, जो रीढ़ की हड्डी से होकर ही गुजरती है। यही कारण है कि यह जगह अध्यात्म की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है।
अनोखा मंदिर
कन्याकुमारी मंदिर में मूल रूप से दक्षिणी परम्परा के अनुसार चार द्वार थे। वर्तमान समय में तीन दरवाजे हैं। एक दरवाजा समुद्र की ओर खुलता था। उसे बंद कर दिया गया है। कहा जाता है कि कन्याकुमारी की नाक में हीरे की जो सींक है उसकी रोशनी इतनी तेज थी कि दूर से आने वाले नाविक यह समझ कर कि कोई दीपक जल रहा है, तट के लिए इधर आते थे। किंतु रास्ते में शिलायें हैं जिनसे टकराकर नावें टूट जाती थीं। मंदिर के कई द्वारों के भीतर देवी कन्याकुमारी की मूर्ति प्रतिष्ठित है। यह बड़ी भव्य देवी मूर्ति है। दर्शन करते समय आदमी अपने को साक्षात् देवी के सम्मुख नतमस्तक समझता है।
मुख्य मंदिर के सामने पापविनाशनम् पुष्करिणी है। यह समुद्र तट पर ही एक ऐसी जगह है, जहां का जल मीठा है। इसे मंडूक तीर्थ कहते हैं। यहां लाल और काले रंग की बारीक रेत मिलती है जिसे यात्री प्रसाद मानते हैं।इस मंदिर की एक विशेषता यह है कि इसमें विवाहित पुरुषों का जाना सख्त मना है। इस मंदिर में केवल महिलाएं ही देवी की पूजा अर्चना कर सकती हैं। अविवाहित पुरुष भी मन्दिर में जा सकते हैं।
मंदिर को लेकर मान्यता है कि चूंकि यहां पर देवी पार्वती का शिव जी से सही समय पर विवाह नहीं हो पाया था सो विवाह में प्रयोग होने वाले चावल और अन्य अनाज बिना पकाए रखे रह गए। कहा जाता है कि वह अनाज पत्थरों में परिवर्तित हो गए। धार्मिक मान्यता के अनुसार मंदिर के तट के निकट जो छोटे छोटे कंकड़ हैं वह इसी अनाज का प्रारूप हैं। श्रद्धालु इन्हीं कंकड़ों को प्रसाद मान कर ले भी जाते हैं।