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Chidambaram Nataraja Temple: दक्षिण भारत का टेंपल टाउन, चिदंबरम नटराज के रुप में पूजे जाते हैं शिव

Chidambaram Nataraja Temple History: प्राचीन द्रविड़ शैली सांस्कृतिक विरासत के साथ यह नगर चोल साम्राज्य से जुड़ा रहा है। 40 एकड़ के परिसर में शहर के बीचोबीच फैला यह मंदिर चोल वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है।

Sarojini Sriharsha
Published on: 28 Sept 2023 8:06 AM IST (Updated on: 28 Sept 2023 8:13 AM IST)
Chidambaram Nataraja Temple
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Chidambaram Nataraja Temple  (photo: social media )

Chidambaram Nataraja Temple History: भारत देश के तमिलनाडु राज्य की राजधानी चेन्नई से लगभग 250 किमी दूरी पर स्थित एक छोटा सा शहर चिदंबरम , दक्षिण भारत के टेम्पल टाउन यानि ‘मंदिरों का शहर’ के रूप में मशहूर है। यह जगह मुख्यत: भगवान शिव के नटराज मंदिर और मैंग्रोव के जंगलों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। प्राचीन द्रविड़ शैली सांस्कृतिक विरासत के साथ यह नगर चोल साम्राज्य से जुड़ा रहा है। 40 एकड़ के परिसर में शहर के बीचोबीच फैला यह मंदिर चोल वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। भगवान शिव सभी जगह लिंग के रूप में पूजे जाते हैं, लेकिन देश में यही एक ऐसा मंदिर है जहां शिव की पूजा एक मूर्ति नटराज के रूप में की जाती है। इसमें भगवान शिव को भरतनाट्यम नृत्य की मुद्रा में दर्शाया गया है । भगवान नटराज का यह लौकिक नृत्य भगवान शिव द्वारा बनाए गए ब्रह्मांड की गति का प्रतीक है। हजारों की तादाद में श्रद्धालु और पर्यटक इस जगह साल भर दर्शन को आते हैं।

आइये जाने यहां का इतिहास

ऐसा माना जाता है की भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक नटराज मंदिर का निर्माण चोल शासन में 5 वीं शताब्दी के दौरान हुआ था। 6 वीं और 7 वीं शताब्दी के शुरुआती ग्रंथों में अपार और सांभर द्वारा नटराज का उल्लेख मिलता है।

कुछ लोगों का कहना है कि जब से यह नगर थिलाई नाम से जाना जाता था, तबसे यहां भगवान शिव की मूर्ति मौजूद है और आज भी इस मंदिर को थिलाई नटराज मंदिर के नाम से पुकारा जाता है। मंदिर की दीवारों पर भरत मुनी के नाट्यशास्त्र का चित्रण है।


चिदंबरम मंदिर में शिव सोने की छत के नीचे गर्भगृह में तीन रूपों में विराजमान हैं:

मूर्त रूप – भगवान नटराज की एक आकृति नृशंस रूप, जिन्हें सकल थिरुमनी कहा जाता है।

अर्ध-रूप – चंद्रमौलेश्वरर के क्रिस्टल लिंग के अर्ध-मानवशास्त्रीय रूप, जिसे सकला निश्क्कल थिरुमनी कहा जाता है।

और निराकार – चिदंबरम रहस्यम में अंतरिक्ष के रूप में, गर्भगृह के भीतर एक खाली स्थान, जिसे निशंक थिरुमनी कहा जाता है।

भगवान का आनंद तांडव मुद्रा जिसे मंदिर में विराट ह्रदय पद्म स्थलम कहा जाता है। यह वह स्थान है जहाँ भगवान शिव आकाशीय नृत्य करते हुए ब्रह्मांड को नियंत्रित करते हैं।

मंदिर के अंदर की दीवारों पर भरत मुनि द्वारा भारतीय शास्त्रीय नृत्य शैली, भरतनाट्यम की नींव रखने वाली मुद्राओं द्वारा की गई नक्काशी और कलाकृतियां देखते ही बनती हैं। हर वर्ष महा शिवरात्रि के अवसर पर इस मंदिर के अंदर वार्षिक नृत्य महोत्सव का आयोजन किया जाता है।

इस मंदिर में मुख्य देवता नटराज के अलावा देवी, विष्णु, सुब्रह्मण्यर, गणेश, नंदी और अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित है। मंदिर में कई सभा हॉल भी हैं, जिन्हें दो प्रमुख मुर्गे कहा जाता है।


नटराज की मूर्ति का महत्त्व और रहस्य:

नटराज मूर्ति के मूर्तिकार महान तमिल सिद्धार ऋषि बोगर थे। यह मूर्ति सोने और तांबे के मिश्रण से बनी है। वे सोने की धातु से मूर्ति बनाने वाले थे।लेकिन आरती के दौरान मूर्ति की चमक से भक्तों की आंखे अंधी ना हो जाए इसलिए तांबे का मिश्रण किया।

नटराज के पैरों के नीचे दैत्य मुयालका है, जिसे अप्समारा के नाम से भी जाना जाता है , यह बताता है कि अहंकार और अज्ञान भगवान के पैरों के नीचे दबा है। वहीं उनके

एक हाथ में आग जिसे विनाश की शक्ति भी कह सकते हैं, इसका मतलब है बुराई का नाश करने वाला। वहीं दूसरा हाथ वर मुद्रा स्थिति में यह दर्शाता है कि वह सभी लोगों के जीवन के उद्धार कर्ता हैं। नटराज के पीछे स्थित रिंग पूरे ब्रह्मांड का प्रतीक है। शिव के हाथ में डमरू जीवन की उत्पत्ति के लिए प्राणमय किरण को दर्शाता है। ब्रह्माण्ड के सिलसिले और संतुलन को बनाए रखने के लिए नटराज दिव्य मुस्कान और अनंत शांति के साथ नृत्य करते हैं । यही जीवन के सभी अस्तित्व का सार है।

चिदंबरम में नटराज मंदिर के अलावा भी कई अन्य दर्शनीय स्थल जहां आप घूम सकते हैं -


पिचवारम मैंग्रोव वन:

दक्षिण भारत के लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में एक पिचवारम मैंग्रोव वन सैलानियों का खास आकर्षण केंद्र है। 1,100 हेक्टेयर में फैले मैंग्रोव के ये जंगल बंगाल की खाड़ी तक विस्तृत है। एक रेतीला भाग इन मैंग्रोव जंगल को बंगाल की खाड़ी से अलग कर द्वीप में बांट देता है। ये द्वीप के रूप में रेतीले तट पर्यटकों को काफी आकर्षित करते हैं। यहां सैकड़ों प्रजाति के पक्षियों के अलावा कई जलीय जीवों को भी देख सकते हैं।

प्रकृति प्रेमी और रोमांचकारी पर्यटकों के लिए यहां बोटिंग की सुविधा उपलब्ध है। बोटिंग के द्वारा आप मैंग्रोव के जंगल की सैर कर सकते हैं। इस नौका विहार में सैलानी अपने को शुद्ध और प्राकृतिक वातावरण में पाकर सुकून का अनुभव करते हैं।


शिवगंगा टैंक:

यह शिवगामी अम्मन मंदिर के सामने एक भूमिगत जल स्रोत है। ऐसी मान्यता है कि इसका जल गंगा की एक अदृश्य धारा से आकाश से सीधे जमीन पर आता है।


शिवगामी अम्मन मंदिर:

यह दक्षिण भारत का प्राचीन देवी मंदिर है। ऐसा कहा जाता है की देवी की मूर्ति दिन के दौरान अपनी उपस्थिति बदल देती है । देवी मूर्ति की मुस्कान और कभी-कभी उसके भ्रूभंग लोगों को मंत्रमुग्ध कर देती है। इसी जगह पर देवी ने शुक ब्रह्म महर्षि को अपने दिव्य रूप में दर्शन दिए थे और उन्हें एक श्री यंत्र भेंट किया था जो इस मंदिर के परिसर में स्थापित है। शुकदेव को व्यास का पुत्र और आदि शंकराचार्य के महान गुरु माना जाता है। इस मंदिर परिसर में भगवान शंकराचार्य और श्री यंत्र की एक मूर्ति स्थापित है।


थिलाई काली अम्मन मंदिर:

इस मंदिर में मां काली विराजमान है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव से नृत्य प्रतियोगिता हारने के बाद देवी काली इस जगह पर आई थी । दरअसल एक प्रचलित कहानी के अनुसार देवी पार्वती भगवान शिव के साथ एक नृत्य प्रतियोगिता हार गई और क्रोधित हो काली का रूप धारण कर लिया और इस जगह अवतरित हुई। यह मंदिर चिदंबरम नटराज मंदिर के उतरी भाग में स्थित है। मंदिर में कुछ प्राचीन शिलालेख भी मौजूद हैं। हर शुक्रवार औऱ रविवार को इस मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। मां काली के अलावा मां दुर्गा, भगवान मुर्गन की भी मूर्तियां इस मंदिर में स्थापित हैं।


तिरुवेटकलम मंदिर:

इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा की जाती है, भगवान शिव को यहां पसुपथेस्वरार के नाम से पुकारा जाता है। करीब 2 एकड़ क्षेत्र में यह मंदिर जिले के अन्नामलाई विश्वविद्यालय के अंदर स्थित है। मंदिर की वास्तुकला देखते ही बनती है।

इस मंदिर का संबंध महाभारत काल से है। एकबार भगवान शिव ने युद्ध के दौरान अपने धनुष को तोड़कर अर्जुन को हराया था। ऐसा भी कहा जाता है कि अर्जुन ने भगवान शिव से यहीं पशुपति प्राप्त किया था। इस मंदिर में, भगवान शिव पसुपेश्वरा के रूप में पूजे जाते हैं।

कैसे पहुंचें ?

नटराज मंदिर पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा पांडिचेरी है। यहां से सड़क मार्ग द्वारा 65 किमी की दूरी पर यह पवित्र स्थल स्थित है। चेन्नई या बैंगलोर एयरपोर्ट से भी सड़क मार्ग द्वारा यहां पहुंच सकते हैं। चेन्नई एयरपोर्ट से चिदंबरम लगभग 184 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

रेल मार्ग से चिदंबरम पहुंचने के लिए चेन्नई, रामेश्वरम, तिरुपति, कुड्डालोर और मनमदुरई के साथ-साथ मयिलादुथुराई, कुड्डलोर, विल्लुपुरम, नागोर और बैंगलोर जैसे प्रमुख शहरों से ट्रेन द्वारा यहां पहुंचकर स्थानीय परिवहन से मंदिर पहुंच सकते हैं।

सड़क मार्ग से बस या टैक्सी के माध्यम से आसपास के शहरों से आप यहाँ आ सकते है।

यहां रहने के लिए सुविधानुसार होटल या गेस्ट हाउस ऑनलाइन बुक कर सकते हैं। अगर आप पांडिचेरी की यात्रा करना चाहते हैं तो भी एक दिन की यात्रा में इसे शामिल कर सकते हैं।

चिदंबरम बंगाल की खाड़ी के तट के पास स्थित है और मध्यम जलवायु होने के कारण साल में कभी भी घूमने आ सकते हैं। लेकिन फिर भी यहां जाने के लिए नवंबर से मार्च तक का मौसम सबसे अच्छा रहता है। वैसे साल भर यह जगह सैलानियों के आकर्षण का केंद्र रहती है। कई राज्यों में अब सर्दियों के मौसम शुरू होने वाले हैं, तो देर किस बात की यहां जाने की तैयारी अभी से शुरू कर सकते हैं।


( लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं ।)




Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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