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Famous Tiruchirapalli Mandir: भारत के इस मंदिर में प्रतिमा की जगह पर विद्यमान है इंसान, जो है ध्यान मग्न
South Famous Tiruchirapalli Mandir: भर की कई संस्कृतियों में मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए कई प्रथाएँ हैं। मृतकों को दफनाने और जलाने के अलावा, शव को विभिन्न तरीकों से संरक्षित करने की संस्कृति भी है, ऐसी एक कहानी हमारे भारतवर्ष में भी देखने की मिलती है।
Tamilnadu Famous Temple Details: हिंदू धर्म दुनिया के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है, जो जन्म और मृत्यु के चक्र में पूर्णतः विश्वास करता है। जो तब तक बार-बार होता रहता है जब तक कि व्यक्ति मुक्ति प्राप्त नहीं कर लेता। जहाँ शरीर प्रकृति की ओर से एक उपहार है वह पाँच सिद्धांतों 'भूतों' से मिलकर बना है; जिसमे अग्नि, जल, पृथ्वी, आकाश और वायु शामिल है। इसलिए यह माना जाता है कि शरीर द्वारा प्राप्त सभी पाँच प्रमुख तत्वों को मृत्यु के बाद प्रकृति को वापस दे दिया जाना चाहिए। इस प्रकार, हिंदू मृतकों के शरीर का दाह संस्कार करते हैं, जबकि ईसाई और मुसलमान उन्हें दफनाते हैं।
फिर भी, दुनिया भर की कई संस्कृतियों में मृतकों के अंतिम संस्कार के लिए कई प्रथाएँ हैं। मृतकों को दफनाने और जलाने के अलावा, शव को विभिन्न तरीकों से संरक्षित करने की संस्कृति भी है, ऐसी एक कहानी हमारे भारतवर्ष में भी देखने की मिलती है।
विष्णु जी के मंदिर में रामानुज भी जाते है पूजे
श्री रामानुजाचार्य को रामानुज के नाम से भी जाना जाता है। वे हिंदू धर्म में श्री वैष्णव परंपरा के प्रवर्तक थे और श्री रंगनाथस्वामी मंदिर में उन्हें समर्पित एक अलग मंदिर है। जहां उनके वास्तविक शरीर के होने की बात कही जाती है। श्रीरंगम मंदिर या थिरुवरंगम के नाम से भी जाना जाने वाला यह मंदिर रंगनाथ को समर्पित एक हिंदू मंदिर है, जो हिंदू देवता विष्णु के लेटे हुए रूप हैं।
दक्षिण भारत का प्रमुख वैष्णव मंदिर
यह मंदिर श्रीरंगम, तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु, भारत में स्थित है। तमिल वास्तुकला शैली में निर्मित, इस मंदिर को थिविया पीरबंधम में महिमामंडित किया गया है, जो 6वीं से 9वीं शताब्दी ईस्वी तक अलवर संतों के प्रारंभिक मध्ययुगीन तमिल साहित्य का संग्रह है और इसे विष्णु को समर्पित 108 दिव्य देसमों में गिना जाता है। मंदिर में पूजा की थैंकलाई परंपरा का पालन किया जाता है। यह दक्षिण भारत के सबसे शानदार वैष्णव मंदिरों में से एक है, जो किंवदंतियों और इतिहास से समृद्ध है।
अपना अधिकतर जीवन रामानुज ने यही बिताया
वर्ष 1017 ई. में श्री रामानुज का जन्म मद्रास से लगभग पच्चीस मील पश्चिम में पेरुम्बुदूर गांव में हुआ था। उनके पिता केशव सोमयाजी और उनकी माता कांतिमति थीं, जो बहुत ही धर्मपरायण और सदाचारी महिला थीं। रामानुज का तमिल नाम इलया पेरुमल था। जीवन के बहुत कम समय में ही रामानुज ने अपने पिता को खो दिया। फिर वे अद्वैत दर्शन के शिक्षक यादवप्रकाश के अधीन वेदों का अध्ययन करने के लिए कांचीपुरम आ गए। उन्होंने अपने 120 वर्षों में से 80 वर्ष श्रीरंगम में बिताए और बीस वर्षों तक वे श्रीरंगम मंदिर के मुख्य पुजारी रहे।
मंदिर में है भौतिक शरीर
श्रीरंगम के श्री रंगनाथस्वामी मंदिर के अंदर उदयवर/ याधिराजर/रामानुजर मंदिर में जो देवता दिखाई देते हैं, वे श्री रामानुज का वास्तविक शरीर हैं। उनका भौतिक शरीर श्रीरंगम मंदिर के अंदर पाँचवें चक्कर में दक्षिण-पश्चिम कोने में रखा गया है, जैसा कि स्वयं भगवान रंगनाथ ने आदेश दिया था।
नाम: श्री रंगनाथस्वामी मंदिर
लोकेशन: श्रीरंगम, तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु
समय: सुबह 6-7:30 बजे
सुबह 9 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक
फिर 2:30-5:30 शाम तक फिर 7-8:30 तक
रामानुजाचार्य जी का 1000 साल पुराना मृत शरीर
ये कोई मूर्ति नहीं बल्कि एक जीवित व्यक्ति है, जो करीब एक हजार साल पहले का है। इनका नाम रामानुजाचार्य जी है, और ये उनका वास्तविक शरीर है, जो आज भी मंदिर में सुरक्षित रखा हुआ है। अगर आप इन्हें छुएंगे या सामने से देखेंगे तो आपको ऐसा लगेगा जैसे आप वाकई किसी जीवित व्यक्ति के शरीर को छू रहे हैं। रामानुजाचार्य के हाथ और पैरों के नाखून आज भी वैसे ही हैं, जैसे हजारों साल पहले थे।
इस तरीके से रखा जाता है रामानुजन के शरीर को
ये मंदिर तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली के श्रीरंगम में स्थित है, इस मंदिर के पुजारी कहते हैं कि रामानुजाचार्य के शरीर को सुरक्षित रखने के लिए वो हर रोज उस पर हल्दी का लेप लगाते हैं, जिससे उनका शरीर बैक्टीरिया और फंगस से पूरी तरह मुक्त रहता है। इससे भारत सुरक्षित रहता है और यह परंपरा करीब नौ सौ वर्षों से चली आ रही है और रामानुजाचार्य जी जिन्होंने पूरे देश में भ्रमण कर हमारे सनातन धर्म का ज्ञान लोगों तक पहुंचाया और 1137 में उन्होंने पद्मासन अवस्था में स्वयं समाधि ली थी तो आइए हम सब मिलकर बोलें जय रामानुजाचार्य जी की।