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Farrukhabad History: द्रौपदी के स्वयंवर से लेकर इन कार्यों की भूमि है फर्रुखाबाद, इतिहास जानकार रह जायेंगे दंग

Farrukhabad History: फर्रुखाबाद जनपद का इतिहास बहुत ही दूरस्थ प्राचीनकाल का है। कांस्य युग के दौरान कई पूर्व ऐतिहासिक हथियार और उपकरण यहां मिले थे।

Dilip Katiyar
Report Dilip KatiyarPublished By Shweta
Published on: 3 July 2021 2:35 PM IST
Farrukhabad History: द्रौपदी के स्वयंवर से लेकर इन कार्यों की भूमि है फर्रुखाबाद, इतिहास जानकार रह जायेंगे दंग
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Farrukhabad History: फर्रुखाबाद जनपद का इतिहास बहुत ही दूरस्थ प्राचीनकाल का है। कांस्य युग के दौरान कई पूर्व ऐतिहासिक हथियार और उपकरण यहां मिले थे। संकिसा और कम्पिल में बड़ी संख्या में पत्थर की मूर्तियां मिलती हैं। फर्रुखाबाद जनपद मूर्तिकला में महान पुरातनता का दावा कर सकता है, इस क्षेत्र में आर्यन बसे हुए थे, जो कुरुस के करीबी मित्र थे। महाभारत युद्ध के अंत तक प्राचीन काल से जिले का पारंपरिक इतिहास पुराणों और महाभारत से प्राप्त होता है। कहते है अमावासु' ने एक राज्य की स्थापना की, जिसके बाद की राजधानी कान्यकुब्ज (कन्नौज) थी।

जाहनु एक शक्तिशाली राजा था, क्योंकि गंगा नदी के नाम पर उन्हें जहनुई के दिया गया था। महाभारत काल के दौरान यह क्षेत्र महान प्रतिष्ठा में उदय हुआ। काम्पिल्य, दक्षिण पांचाल की राजधानी थी और द्रौपदी के प्रसिद्ध स्वयंमवर यहीं हुआ था। पूरे क्षेत्र को काम्पिल्य कहा जाता था और जिसका मुख्य शहर कम्पिल हुआ करता था, जो दक्षिण पंचाल की राजधानी थी। महावीर और बुद्ध के समय में सोलह प्रमुख राज्यों की सूची में पांचाल दसवें स्थान के रूप में शामिल था और यह भी कहा जाता है की इसका क्षेत्र, वर्तमान जनपद बरेली, बदायूं और फर्रुखाबाद तक फैला हुआ था। चौथी शताब्दी बी.सी. के मध्य में शायद महापद्म के शासनकाल में, इस क्षेत्र को मगध के नंद साम्राज्य से जोड़ा गया था। अशोक ने संकिसा में में एक अखंड स्तम्भ का निर्माण किया था, जो चीनी यात्री, फा-हिएन एफए-हियान द्वारा देखा गया था। मथुरा और कन्नौज एवं पंचाल्या क्षेत्र में बड़ी संख्या में सिक्के पाए गए और जिसको मित्र शासकों के साथ जुड़ा होना बताया गया है।

सिक्कों को आमतौर पर सी.100 बी.सी. एवं सी.200 ए.डी. माना गया है। 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद, जिले का नाम कई बार आया। मुगल साम्राज्य के क्षय के कारण उत्तर भारत में कई स्वतंत्र राज्यों स्थापना हुई, जिसमें फर्रखाबाद क्षेत्र ने जिले के बाद के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1665 में मऊ-रशीदाबाद (कायमगंज क्षेत्र का एक छोटा कस्बा) में एक पठान का बच्चा पैदा हुआ था, जिनका नाम मोहम्मद खान रखा गया था। जब मोहम्मद खान 20 साल के थे तब वह पठान फ्रीबूटर्स के बैंड में शामिल हुए थे। अपने चचेरे भाई जहांबर शाह को दबाने के लिए सम्राट फरुखशियर के निमंत्रण पर,उनके साथ सेना में शामिल हो गया होने के लिए वह उनके साथ शामिल हो गए। जब जहांबर शर पराजित हो गया तब, मोहम्मद खान को पुरस्कृत किया गया और नवाब का खिताब से नवाज़ा गया। उसके बाद मोहम्मद खां अवकाश लेकर घर वापस गए और उन्होंने कायमगंज और मोहम्मदबाद कस्बों की स्थापना की। काल-का-खेड़ा नामक एक स्थान पर, उसने एक किला बनाया, जिसमें से अब केवल खंडहर ही रह गए हैं।

किला बना खंडहर

ऐसा कहा जाता है कि फरुखशियर तब क्रोधित हो गया था, जब उसने सुना कि मोहम्मद खान ने अपने नाम पर एक शहर की स्थापना की थी। अपने संरक्षक के क्रोध को कम करने के लिए, नवाब ने एक अन्य शहर की स्थापना के इरादे की घोषणा की और यह कहा के उसका नाम सम्राट के नाम पर होगा । मोहम्मद खान ने नए शहर के रूप में फरुखशियर नाम पर फर्रुखाबाद की स्थापना 1714 में की । मोहम्मद खान, अहमद खान के दूसरे बेटे को विद्रोह के नेता के रूप में चुना गया था। अहमद खान को अमीर-उल-उमर और शाही वेतन मास्टर बनाया गया था, उसने पानीपत की लड़ाई में सम्राट की का खूब साथ दिया था।

1769 में मराठों ने फिर से महादाजी सिंधिया और होलकर के साथ मिलकर एपीआई उपस्थिति दर्ज करते हुए फर्रुखाबाद पर हमला किया। हाफिज रहमत जिसका इलाका इटावा था, उसको उसके क्षेत्र के इलाके में भी धमकी दी गई, उसने अहमद खान के साथ हाथ मिलाकर और फतेहगढ़ और फर्रखाबाद के बीच में अपना डेरा डाला। अहमद खान की जुलाई 1771 में मृत्यु हो गई। शाह आलम कन्नौज में थे और फर्रुखाबाद क्षेत्र को फिर से शुरू करने का फैसला किया। 1773 में, शूजा उद्दौला, मराठों को क्षेत्र से निकालने में सफल रहा और जिले के दक्षिण परगना में छिबरामउ के अलावा काली नदी के दक्षिण तक सभी भाग फर्रुखाबाद में शामिल थे। 1780 से 1785 तक एक ब्रिटिश निवासी को जिले में नियुक्त किया गया था, संभवतः फतेहगढ़ में। वॉरेन हेस्टिंग्स ने फर्रुखाबाद के निवासी को वापस लेने का भी वादा किया है, लेकिन ऐसा नहीं किया। 1857 के शुरुआती दिनों से, जिले में बहुत उत्साह था अफवाहों के रूप में सरकार चांदी के साथ चांदी के लेपित रुपये जारी कर रहा था। 10 मई को स्वतंत्रता संग्राम मेरठ में शुरू हुआ और समाचार 14 मई को फतेहगढ़ में पहुंचा । फतेहगढ़ में ( फर्रुखाबाद से कुछ किमी दूर ) 10 वीं भारतीय इन्फैन्ट्री को कर्नल स्मिथ द्वारा कमांड किया जा रहा था ।

01 जून को, अलीगढ़ पुलिस स्टेशन के अधिकारी ने फतेहगढ़ में जानकारी दी की कि स्वतंत्रता संग्राम के तहत ट्रांस गंगा क्षेत्र में विद्रोह हुआ है । दो ब्रिटिश रेजिमेंट ने गुरसहायगंज और छिबरामउ पर ग्रांड ट्रंक रोड के रास्ते चढ़ाई की, इन जगहों पर पुलिस स्टेशनों को बर्खास्त कर दिया। 18 तारीख को अवध स्वतंत्रता सेनानियों ने फतेहगढ़ रेजिमेंट लाइनों में प्रवेश किया। सितंबर 1857 तक, दिल्ली ब्रिटिश हाथों में वापस आ गया था, जिसने विद्रोश को पूरी तरह बदल दिया था । नियाज़ मोहम्मद ने कई वर्षों तक मक्का की यात्रा के दौरान कई वर्षों तक भटकते हुए जीवन का त्याग किया। 19 वीं शताब्दी के अंत में फर्रुखाबाद और अन्य शहरों में आर्य समाज की गतिविधियों का उदय हुआ।20 वीं शताब्दी में देश में राष्ट्रवाद में कमी देखी गयी । 1905 के बंगाल आंदोलन के विभाजन के विरोध में हुए आंदोलनों के दौरान, सार्वजनिक सभा, हमलों और विरोध प्रदर्शन हुए । मोहन दास करम चंद गांधी जी के द्वारा विदेशी सामानों के बहिष्कार के आन्दोलन को आगे बढ़ाया गया ।


अगस्त, 1920 में महात्मा गांधी जी द्वारा शुरू हुआ असहयोग आन्दोलन का भी जिले में खूब असर हुआ। बैठकों और हड़तालों का दौर फर्रुखाबाद , फतेहगढ़, कम्पिल , शमसाबाद, कन्नौज, इंदरगढ़ और अन्य शहरों ख्होब चला । 1928 में एक पूर्ण हड़ताल आयोजित किया गया था, बड़ी संख्या में लोगों ने जुलूस में चलते हुए, काले झंडे लहराते हुए और "गो बैक साइमन", "साइमन कमीशन गो बैक " शब्दों के साथ बैनर ले कर प्रदर्शन किया। 1930 में, फर्रुखाबाद में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ था। नमक का निर्माण सिकंदरपुर, भोलेपुर, छिबरामउ और कन्नौज में भी हुआ था। नवंबर 30, 1931 को कानपुर जाते समय मार्ग में , जवाहर लाल नेहरू जी के द्वारा बड़े पैमाने पर भीड़ द्वारा प्रत्येक स्टेशन सभी से मिला गया । सुभाष चंद्र बोस के द्वारा जनवरी 25, 1940 को फर्रुखाबाद का दौरा किया गया। अगस्त 15, 1947 को देश विदेशी शासन से मुक्त हुआ था। जनपद आज भी उन लोगों के बारे में याद करता है, जिन्होंने आजादी के संघर्ष में भाग लिया था।

जनपद फर्रुखाबाद रोड एवं रेल के नेटवर्क से अच्छे से जुड़ा हुआ है । जनपद से कानपूर की दूरी लगभग 140 कि० मी० है। हरदोई की दूरी लगभग 70 कि० मी० है । राज्य की राजधानी लखनऊ लगभग 190 कि० मी० है दूर है । देश की राजधानी नई दिल्ली 350 कि०मी० दूर है। पांच हजार वर्ष के महाभारतकालीन गौरव व विरासत को सहेजे पांचाल प्रदेश को 27 दिसंबर 1714 के दिन फर्रुखाबाद का नाम मिला। जिले के 83.79 किलोमीटर की सीमा तक जीवन रेखा बनी मां गंगा के आंचल में हमारा जिला धर्म अध्यात्म, संस्कृति, साहित्य व ज्ञान की विरासत से समृद्ध रहा। 1857 की क्रांति हो या फिर देश के लिए कोई आंदोलन, हर बार यहां से क्रांति की धारा फूटी। भगवान गौतम बुद्ध की पद रज से सुगंधित संकिसा हो या पांचाल देश की राजधानी और जैन तीर्थंकरों के उपदेशों का गवाह कंपिल। पूरा क्षेत्र जीवंतता से जगमग पुरातन धरोहरों को आंचल में समेटे है। बस आस है इनके संरक्षण और विकास की। पर्यटन मानचित्र पर प्रभावी ढंग से स्थापित हो अपना फर्रुखाबाद। स्थापना पर्व पर ऐसी ही आकांक्षा पली है, जनमानस ने। तारीखी नजर से फर्रुखाबाद 307 वर्ष पूरे कर चुका है। नवाब मोहम्मद खां बंगश ने दिल्ली के शासक फर्रुखशियर के नाम पर इसे बसाया था । नवाबी दौर से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए यह निरंतर प्रगति के हस्ताक्षर अंकित कर रहा है। वस्तुत: फर्रुखाबाद का इतिहास तो पौराणिक काल से समृद्ध है। उस समय यह पांचाल क्षेत्र कहलाता था, यह शहर पांचाल प्रदेश का एक भाग।

किला ( फोटो सोशल मीडिया)

फर्रुखाबाद की स्थापना से पहले ही कंपिल, संकिसा, कन्नौज (अब अलग जनपद), श्रंगीरामपुर और शमसाबाद प्रसिद्ध थे। पांचाल देश की राजधानी कंपिल में द्रोपदी का स्वयंवर हुआ। राजा द्रुपद की सेना की छावनी शहर में ही थी। ¨हदू और जैन दोनों धर्मावलंबियों के लिए कंपिल का खास महत्व है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभ देव ने यहां पहला उपदेश दिया। 13वें तीर्थंकर विमल देव ने अपना जीवन व्यतीत किया। महात्मा गौतम बुद्ध ने संकिसा में धर्मोपदेश दिया। चीनी यात्री ह्वेन्सांग, फाह्यान, इब्नबतूता और अलबरूनी का भी आगमन हुआ। नवाब बंगश के समय यहां के इतिहास ने 18वीं शताब्दी के प्रारंभ में एक नई करवट ली। दिल्ली के तत्कालीन शासक के नाम पर बसाया गया यह शहर नवाब की राजनीतिक सूझबूझ को दर्शाता है। 1857 के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में फर्रुखाबाद के पौरुष ने मशाल जलाई। यहां के 161 लोगों ने फांसी, 246 ने कालापानी की सजा को गले लगाया। काशी की ही तरह यहां गली-गली में शिवालय हैं तो नाम अपराकाशी भी पड़ गया।

बनारसी तबला घराने को पूर्वी बाज में वर्गीकृत किया गया, जिसमें लखनऊ और बनारस घराने के साथ फर्रुखाबाद घराना भी शामिल है। काशी में गंगा किनारे आबादी और घाटों का सांस्कृतिक महत्व है तो यहां भी गंगा के पश्चिमी तट पर आबादी प्राचीनकाल से है। गंगा तट पर घटियाघाट(अब पांचाल घाट), टोकाघाट में ऐतिहासिक विश्रांतें प्राचीन निर्माण भी धरोहर हैं, पर हैं सब उपेक्षा की शिकार। कविवर वचनेश की कर्मभूमि और छायावाद की दीपशिखा महादेवी वर्मा की जन्मभूमि के रूप में साहित्य जगत को गौरव मिला। ठुमरी सम्राट ललनपिया ने देश भर में शास्त्रीय संगीत को समृद्धता दी। गंगा तट पर लगने वाला माघ मेला श्री रामनगरिया इलाहाबाद के बाद सबसे बड़ा मेला है। स्थापना के बाद से बहुत कुछ प्रगति हुई। वहीं काफी कुछ समय के साथ नष्ट हो गया। जो बचा है उसे भावी संततियों के लिए सुरक्षित व संरक्षित करने की आवश्यकता है। ऐतिहासिक धरोहरें मात्र ईंट-चूने के ढेर नहीं हैं, अपितु अतीत के मौन प्रत्यक्षदर्शी हैं।


जिले की संस्कृति का गंगा नदी एवं इसके धार्मिक महत्त्व से अटूट रिश्ता है। यहां का इतिहास भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है। फर्रूखाबाद में कम्पिल से प्राचीन धारा बूढी गंगा से लेकर खुदागंज तक लगभग 36 विश्रांत घाट बने हुए थे। इन विश्रांतो का मुख्य उ़़देदश ब्रिटिश शासन काल के व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जाता था। जिसमे कलकत्ता से लेकर गढमुक्तेश्वर तक व्यापारिक बडी नावें चला करती थी। जिनमे नमक,नील,सोरा, अफीम, कपड़ा, बर्तन के उद्योग का व्यापार होता उसी के साथ-साथ धार्मिक महत्व सांस्कृतिक गतिविधियों में मुगल बादशाहों सेठ, धन्ना सेठों ने विश्रांत घाटों का निर्माण कराया था। विशेष पर्व जैसे गंगा मेला, माघ मेला, सामाजिक उत्सव शादी-विवाहों में इन घाटों पर अपार भीड लगा करती थी।कम्पिल का घाट मुगल बादशाह ने बनाया था। इसी प्रकार शमसाबाद की विश्रांत फर्रूखाबाद में झुन्नीलाल, सेठ शाह जी की विश्रांत, टोका घाट, पांचाल घाट, किला घाट, रानी घाट, सुन्दरपुर घाट, सिंगीरामपुर में मराठा परिवार की विश्रांते बहुत ही सुन्दर थी। लेकिन आज खण्डर पड़ी है।



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Shweta

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