First Heritage Village: भारत का पहला हेरिटेज विलेज, आखिर क्यों मिली इस जगह को ये उपाधि

First Heritage Village of India: हिमाचल प्रदेश में एक ऐसा गांव है, जिसे हेरिटेज विलेज के नाम से जाना जाता है। यह गांव अपने आप में खास है, चलिए जानते है इस खास जगह के बारे में....

Yachana Jaiswal
Written By Yachana Jaiswal
Published on: 21 May 2024 2:30 AM GMT (Updated on: 21 May 2024 2:31 AM GMT)
First Heritage Village of India
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First Heritage Village of India (Pic Credit-Social Media)

India's First Heritage Village: गाँव में घूमना ऐसा लगता है मानो हम किसी बीते युग में कदम रख रहे हों। शहर के शोर शराबा से दूर एक अलग ही शांति और सुकून मिलता है। वही अगर बात करें हम पहाड़ों पर बसने वाले गांव के बारे में तो, पथरीली रास्तों पर चलते हुए, प्रकृति के बीच गुम हो जाते है। हिमाचल प्रदेश में एक ऐसा गांव है, जिसे हेरिटेज विलेज के नाम से जाना जाता है। हिमाचल में गरली का पड़ोसी गांव को वर्ष 1997 में हिमाचल प्रदेश राज्य सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर "हेरिटेज विलेज" के रूप में नामित किया गया था।

भारत का पहला विरासत गांव(First Heritage Village of India)

प्रागपुर हेरिटेज विलेज यात्रियों को अपने इतिहास और विरासत की परतों को जानने के लिए आमंत्रित करता है। भारत के पहले हेरिटेज विलेज के रूप में, प्रागपुर इस क्षेत्र की स्थायी विरासत के लिए एक जीवित प्रमाण के रूप में देखा जाता है। 16वीं सदी के अंत में स्थापित, प्रागपुर को, इसके पड़ोसी गांव गरली के साथ, वर्ष 1997 में हिमाचल प्रदेश राज्य सरकार द्वारा आधिकारिक तौर पर "हेरिटेज विलेज" के रूप में नामित किया गया था, जिससे यह भारत का पहला विरासत गांव(Heritage Village)बन गया।



ये है गांव का इतिहास(History of Village)

जसवान शाही परिवार की राजकुमारी पराग देई के सम्मान में पटियालों द्वारा प्रागपुर की स्थापना 16वीं शताब्दी के अंत में की गई थी। प्रागपुर को शाही विरासत से परिपूर्ण इतिहास के साथ एक सजावटी गांव के रूप में निर्माण किया गया था। इस गांव के वास्तुशिल्प आकर्षण की बात करें तो, गांव में जजेज कोर्ट जैसी कुछ इमारतें प्रागपुर में हैं। जो वास्तुकला की यूरोपीय शैली को प्रदर्शित करती हैं। कई अन्य सदियों पुराने पुनर्स्थापित घर समान प्रकार की वास्तुकला साझा करते हैं। एक त्वरित नज़र और वे पुराने यूरोपीय गांवों की याद दिलाते हैं।



यूरोपीय वास्तुकला की झलक

यहां कर बने घर की संरचना यूरोपीय महलों को ध्यान में रखते हुए बनाई गई थी। इस इमारत का लुक और अहसास आपको फ्रांस या स्विट्जरलैंड के पुराने गांवों में ले जाएगा। अब वहां पर एक पुनर्स्थापित होटल है। आज उस गाँव में घूमना ऐसा लगता है मानो हम किसी बीते युग में कदम रख चुके हों। पथरीली पगडंडियों पर चलते हुए, उन पुरानी दुकानों, स्लेट की छतों और मिट्टी से पुती दीवारों वाले घरों और कई हवेलियों के पीछे से, कोई भी देख सकता है कि इस गाँव में समय ठहर गया है।



गांव में साधारण जिंदगी जीते है लोग

प्रागपुर आने वाले पर्यटकों को पड़ोसी गांव गरली ये भी विरासत क्षेत्र के अंतर्गत आता है, का पता लगाने और क्षेत्र के वास्तुशिल्प चमत्कारों का अनुभव करने का मौका भी मिलता है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि प्रागपुर अब एक सजावटी गाँव नहीं है। यह एक रहने योग्य उचित गाँव है, जहाँ लोग रहते हैं। यहां पर पारंपरिक कला और शिल्प में संलग्न रहते हैं। आप जो देख रहे हैं वह एक वास्तविक गाँव है वहां जीवन है, इसलिए पर्यटकों के लिए विशेष रूप से तैयार की गई हर चीज़ देखने की उम्मीद से वहाँ न जाएं। प्रागपुर गांव के निवासी कुशल शिल्पकार, बुनकर, टोकरी बनाने वाले, चांदी बनाने वाले, चित्रकार, संगीतकार और दर्जी के रूप में अपना जीवन यापन करते हैं।



Yachana Jaiswal

Yachana Jaiswal

Content Writer

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